“गोकर्णा की गुफा में पली पोती मासूमियाँ: सुप्रीम कोर्ट ने ‘पिता’ से पूछा — ‘बेटियाँ गुफा में थीं, आप कहाँ थे?’”
परिचय
2025 की दूसरी छमाही में एक असाधारण और चिंताउठाने वाली ख़बर सामने आई, जिसने न केवल मीडिया का ध्यान खींचा बल्कि न्यायपालिका की कार्रवाई को भी प्रेरित की — कर्नाटक के गोकर्णा में एक रूसी महिला और उसकी दो नाबालिग बेटियों का जंगल की गुफा में रहना। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहाँ एक व्यक्ति ने “पिता” होने का दावा करते हुए बच्चों के स्वदेश वापसी (repatriation) की प्रक्रिया को रोके जाने की गुहार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने इस दावे की सच्चाई पर गंभीर प्रश्न उठाए, और “पितृत्व” की वैधता, बच्चों के हितों, देश की विस्थापना नीतियों और विदेशी नागरिकों के अधिकारों सहित कई महत्वपूर्ण कानूनी-नैतिक मुद्दों पर विचार किया गया। इस लेख में हम घटना का पूरा विवरण, न्यायालय की सुनवाई, कानूनी प्रावधान, न्यायिक दृष्टिकोण, चुनौतियाँ और इस मामले से जो सीख मिलती है, उसका विश्लेषण करेंगे।
1. घटना का विवरण
- महिला, बच्चे और गुफा की खोज:
11 जुलाई, 2025 को कर्नाटक के उत्तरा कन्नड़ जिले में गोकर्णा के पास रामतीराहा (Ramatirtha) Hills की एक जंगल-गुफा में रूसी नागरिक नीना कुटिना नामक महिला एवं उनकी दो बेटियाँ (Prema, 6 वर्ष की वय, और Ama, 4 वर्ष) पाए गए। यह स्थान जंगलों में, खड़ी पहाड़ियों में और बारिश/भूस्खलन जोखिम वाले क्षेत्र में है।- पुलिस टीम को जंगल की गश्त के दौरान बर्तन धोने के कपड़ों आदि लटकाकर सूखाने के निशान मिले।
- महिला ने बताया कि उन्होंने जंगल-गुफा जीवन को आध्यात्मिक यात्रा (spiritual journey), प्रकृति में रहने, तपस्विता या साधना के रूप में अपनाया है।
- वास्तविक स्थिति और निवास दस्तावेज़:
नीना कुटिना भारत में 2016 में व्यापार वीज़ा पर आई थीं, जो अप्रैल 2017 में समाप्त हो गया। बाद में कुछ कड़ियाँ बता रही हैं कि उन्होंने भारत छोड़ कर नेपाल गए, वापस आये वर्ष 2018 में, लेकिन वैध दस्तावेज़ों की अनुपस्थिति लगातार बनी रही।
बच्चों की देखभाल, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि का नज़ारा जंगल जीवन की परिस्थितियों में सीमित था, लेकिन महिला का दावा था कि उनके बच्चों के लिए जीवन “भयानक” नहीं था, बल्कि शांत और आनंदपूर्ण था। - पहचान व पितृत्व का दावा और कानूनी कदम:
Dror Shlomo Goldstein नामक व्यक्ति, कथित रूप से बच्चों के पिता, ने हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें केंद्र सरकार से आग्रह किया कि यात्रा दस्तावेज़ जारी करने से पहले न्यायालय यह सुनिश्चित करे कि बच्चों का पुनः देश वापसी (repatriation) उनके सर्वोत्तम हित में हो। उसने UN Convention on Rights of the Child (UNCRC) का हवाला दिया।
राज्य की ओर से यह बताया गया कि रूस सरकार ने आपातकालीन यात्रा दस्तावेज़ (emergency travel documents) जारी कर दिए हैं, उनके चार्ज/निर्यात/रवाना करने की अवधि कुछ दिनों की है।
2. न्यायालय की सुनवाई और निर्णय
- कर्नाटक हाई कोर्ट का निर्णय:
हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार के अनुरोध को स्वीकृति दी कि महिला और उनके बच्चों को रूस जाने के लिए यात्रा दस्तावेज़ जारी किए जाएँ। हाई कोर्ट ने यह देखा कि बच्चे गुफा में थे, जीवन सुविधाएँ सीमित थीं, और मां स्वयं लौटना चाहती है।
उसने यह भी कहा कि यात्रा दस्तावेज़ों की प्राप्ति हो चुकी है, रूस सरकार तैयार है, और वीज़ा उल्लंघन की स्थिति बरकरार है। - संयुक्त राष्ट्र के अधिकारों का हवाला (UNCRC):
पिता के वकील ने दलील दी कि बच्चों के सर्वोत्तम हित (best interest of the child) को ध्यान में रखते हुए कार्रवाई होनी चाहिए, और सरकारी निर्णयों से पहले न्यायालय द्वारा समुचित समीक्षा होनी चाहिए। - सुप्रीम कोर्ट में याचिका:
Dror Goldstein की याचिका सुप्रीम कोर्ट में विशेष लीगल प्रार्थना (SLP) के रूप में दाखिल हुई, जिसमें उसने हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी कि केंद्र सरकार को यात्रा दस्तावेज़ जारी कराने से रोके। - सुनवाई में उठाए गए प्रश्न एवं न्यायालय की टिप्पणियाँ:
सुप्रीम कोर्ट के बेंच — न्यायमूर्ति सुर्या कांत और न्यायमूर्ति जॉयमलया बागची — ने पिता की ओर से प्रस्तुत किए गए दावों को कठोर दृष्टिकोण से देखा:- पितृत्व का आधिकारिक साक्ष्य: न्यायालय ने पिता से पूछा, “आप कौन हैं? आपका अधिकार क्या है?” यह माँग कि कोई आधिकारिक दस्तावेज़ दिखाएं जिसमें वे बच्चों के पिता होने की पुष्टि हो।
- पूछा गया कि “गुफा में रहते समय आप क्या कर रहे थे?”, और “गोवा में रहते हुए आप कहां थे?” यह प्रश्न पिता की सक्रियता और ज़िम्मेदारी पर शक व्यक्त करते हैं।
- न्यायालय ने इस प्रकरण को “publicity litigation” की श्रेणी में डालने की जाँच की — अर्थात संभावित दावे जो सामाजिक ध्यान आकर्षित करने के लिए हो सकते हैं।
- निवर्तन (Withdrawal) और फ़ैसला:
सुनवाई के बाद पिता (petitioning party) ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। - न्यायालय की व्यापक टिप्पणी:
न्यायमूर्ति सुर्या कांत ने ये टिप्पणी भी की कि भारत “हैवन बन गया है … कोई आता है और यहाँ रहते हैं।” यह कथन संदेश देता है कि भारत में विदेशी नागरिकों द्वारा वीज़ा नियमों और अन्य कानूनी प्रावधानों के उल्लंघन के मामलों में न्यायिक एवं सरकारी निगरानी अधिक सुसंगत होनी चाहिए।
3. कानूनी एवं संवैधानिक विश्लेषण
3.1 पितृत्व (Parentage) और दायित्व
- पिता होने का दावा तभी कानूनी रूप से स्वीकार्य है जब आधिकारिक/प्रमाणिक दस्तावेज़ हों (जन्म प्रमाणपत्र, पितृत्व परीक्षण/DNA रिपोर्ट, कानूनी स्वीकृति आदि)। न्यायालय ने पिता से इसी आधार पर साक्ष्य माँगे। बिना सॉलिड प्रमाणों के दावे का स्वीकार करना न्याय प्रक्रिया के सिद्धांतों के खिलाफ है।
- पितृत्व के दायित्व केवल भावनात्मक या निजी नहीं; कानूनी है। पिता को चाहिए कि वह बच्चों की देखभाल, शिक्षा, सुरक्षा आदि जिम्मेदारियाँ पूरी करे। यदि इन जिम्मेदारियों में अनियमितता थी या पिता ने सक्रिय भूमिका नहीं निभाई, तो न्यायालय उनकी दावेदारी को गंभीरता से नहीं लेता।
3.2 बच्चों के सर्वोत्तम हित (Best Interests of the Child)
- यह सिद्धांत अंतरराष्ट्रीय कानून (जैसे UNCRC) और भारतीय न्याय व्यवस्था दोनों में स्वीकार किया गया है। किसी निर्णय में, विशेषकर जब बच्चों को देश से बाहर भेजने / वापस भेजने का मामला हो, न्यायालय को यह सुनिश्चित करना होता है कि उन बच्चों की भलाई, सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि में कोई खतरा न हो।
- कोर्ट ने यह जाना कि माँ ने स्वेच्छा से पुनः भारत छोड़ने की इच्छा जताई है, यात्रा दस्तावेज़ रूस द्वारा जारी किये जा चुके हैं, तथा बच्चों के अस्तित्व और स्थिति की रिपोर्टों से यह संकेत मिल रहा है कि गुफा में जीवन संरक्षित सुविधाएँ नहीं प्रदान कर पा रहा था। ये तत्त्व बच्चों के हित में पुनर्वास की दिशा में जाते हैं।
3.3 वदेशी नागरिकों और विदेशी नागरिकों का अधिकार, आव्रजन कानून
- व्यक्ति यदि विदेशी है, वीज़ा नियम, आव्रजन कानून (immigration law) और विदेशी नागरिकों के कानूनों के अधीन है। यदि वीज़ा की अवधि समाप्त हो गयी हो, तो वह वीज़ा उल्लंघन (visa overstay) का मामला बनती है, और सरकार को यह तय करना होता है कि क्या निवास सुरक्षित/कानूनी है या नहीं।
- सरकार की जिम्मेदारी होती है कि विदेशी नागरिकों की स्थिति की जांच हो, जरूरत होने पर आव्रजन विभाग, विदेश मंत्रालय और विदेश प्रतिनिधिमंडल (consulate/embassy) के बीच समन्वय हो। इस मामले में रूस सरकार के माध्यम से यात्रा दस्तावेज़ जारी किये गए, DNA रिपोर्ट साझा की गयी।
3.4 न्यायालय की भूमिका — संवैधानिक प्रतिबद्धताएँ और न्यायिक विवेक
- न्यायालय को यह देखना है कि क्या कार्रवाई संवैधानिक अधिकारों और न्याय प्रक्रिया के अनुरूप है — विशेषकर व्यक्तिगत स्वतंत्रता, आव्रजन कानून का अनुपालन, और बच्चों के अधिकार।
- न्यायालय लोकतंत्र में एक संतुलनकर्ता की भूमिका निभाती है — जहाँ सार्वजनिक हित, मानवाधिकार, विदेशी नागरिकों के अधिकार, लेकिन साथ ही सुरक्षा, राज्य नीति और कानून व्यवस्था के पहलू भी देखें जाते हैं।
4. न्यायालय की टिप्पणियाँ — तीखे सवाल और सामाजिक संदेश
- न्यायालय ने पिता के दावे की वैधता पर सवाल उठाते हुए पूछा “What is your right? Who are you?” यह सिर्फ कानूनी रूप से सुनिश्चित करना है कि दांव किसने उठाया है, और क्या उसके पास वैधानिक अधिकार है। इस तरह की पूछताछ न्यायालय की जिम्मेदारी है ताकि दायर की गयी याचिका न्यायिक प्रक्रिया को बाधित न करे।
- “What were you doing when your children were living in a cave?” — यह न केवल एक व्यक्तिगत आचरण का सवाल है, बल्कि एक सामाजिक ज़िम्मेदारी, नैतिककरण और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यदि पिता बच्चों की परवरिश और सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम नहीं उठा रहे हों, तो न्यायालय उसे दर्शनीय मान नहीं लेती।
- “What were you doing staying in Goa?” — यह स्थिति की विसंगति को बताती है कि पिता जितना कानूनी दावा कर रहे हैं, उतना व्यवहारिक वा निजी प्रतिबद्धता दिखा नहीं पा रहे। यह न्यायालय का तरीका है यह जांचने का कि दावे सिर्फ कानूनी दावे हैं या उनकी वास्तविक जिम्मेदारियाँ भी निभाई गई हैं।
- “This country has become a haven… anybody comes and stays.” — यह टिप्पणी एक व्यापक सामाजिक और नीति-परिप्रेक्ष्य का संकेत है कि भारत के आव्रजन (immigration), वीज़ा उल्लंघन, विदेशी नागरिकों की देखभाल जैसे मामलों में सरकारी और न्यायालय की नीति क्या होनी चाहिए।
5. चुनौतियाँ और जटिलताएँ
- दस्तावेज़ों की अनुपस्थिति —— पितृत्व का दावा, वीज़ा स्थिति, निवास के दस्तावेज़ आदि सभी महत्वपूर्ण हैं। यदि ये न हों, तो न्यायालय कठिनाई से दावे स्वीकार कर सकती है।
- बच्चों के मानसिक और शारीरिक कल्याण की स्थिति —— गुफा में जीवन, प्राकृतिक खतरों, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, भोजन-पानी, स्वच्छता आदि के संदर्भ में बच्चों को जोखिम हो सकता है।
- आव्रजन और विदेशी नागरिक नीति —— किसी विदेशी के overstaying, अनधिकृत निवास, दस्तावेज़ों की वैधता आदि मामलों को कैसे संभाला जाए, और बच्चों सहित परिवार को किस तरह से कार्यान्वित किया जाए।
- संवादहीनता और मीडिया दबाव —— “publicity litigation” की आशंका यह है कि मामला सिर्फ सुर्खियों के लिए उठाया गया हो, न कि बच्चों की भलाई के लिए। न्याय एक शांत, संतुलित और साक्ष्य-आधारित प्रक्रिया है, न कि चीख-पुकार या भावनात्मक बहाव से प्रेरित।
6. इस प्रकरण से क्या सीख मिलती है
- बच्चों के हितों को प्राथमिकता देना चाहिए, विशेषकर जब वे अस्थायी रहने की स्थिति में हों। न्यायालय और सरकारी एजेंसियाँ बच्चों के स्वास्थ्य, सुरक्षा और शिक्षा के बारे में सुनिश्चित करें कि उन्हें आवश्यक सुविधाएँ मिलें।
- माता-पिता या अभिभावकों को कानूनी जिम्मेदारियाँ निभाने की आवश्यकता है। यदि कोई व्यक्ति पिता होने का दावा करता है, तो उसे बच्चों के जीवन में सक्रिय भूमिका होनी चाहिए, और वैध दस्तावेज़ उपलब्ध होना चाहिए।
- विदेशी नागरिकों और आव्रजन मामलों की सरकारों के लिए स्पष्ट नीति होनी चाहिए कि निवास, वीज़ा, आव्रजन उल्लंघन, मानवीय स्थिति आदि मामलों को कैसे हैंडल किया जाए।
- न्यायपालिका को भी सावधानी बरतनी चाहिए कि किसी मामले में न्याय केवल सुर्खियों के कारण न हो, बल्कि सच्चाई, मानवाधिकार और सामाजिक न्याय की कसौटी पर हो।
7. निष्कर्ष
गोकर्णा की गुफा में पाई गई यह घटना सिर्फ एक मानव तस्करी, आव्रजन उल्लंघन, या जंगल में जीवन की कहानी नहीं है, बल्कि यह एक गहरी न्यायिक और नैतिक परीक्षा है। इसने प्रवासन कानून, अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार, बच्चों के हित, पितृत्व दावों की वैधता और न्यायपालिका की जिम्मेदारी — सभी को सामने खड़ा कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट की पूछताछ — “बेटियाँ गुफा में थीं, आप कहाँ थे?” — न केवल एक व्यक्ति से प्रश्न कर रही थी, बल्कि यह सार्वजनिक संवाद कर रही थी कि समाज, अभिभावक और राज्य — तीनों— बच्चों की देखभाल और सुरक्षा में क्या भूमिका निभाते हैं।
यह मामला यह बताते हुए समाप्त हुआ कि फ़ैसला बच्चों के हितों और मां की इच्छा, यात्रा दस्तावेज़ों की व्यवस्था और रूस सरकार की भागीदारी के आधार पर अत्यधिक संभावना है कि पुनर्रद्धार (repatriation) हो। पिता के दावे की वैधता साबित नहीं हुई, और याचिका वापस ले ली गई। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र एवं संबंधित विभागों को यह निर्देश नहीं दिया कि बच्चों की वापसी न हो, बल्कि यह तय करना कि कैसे सुरक्षित और कानूनी तरीके से किया जाए।