“गिग वर्कर्स और फ्रीलांसर्स के लिए कानूनी सुरक्षा: लचीले काम के बदलते स्वरूप में श्रम अधिकारों की नई ज़रूरत”

लेख शीर्षक:
“गिग वर्कर्स और फ्रीलांसर्स के लिए कानूनी सुरक्षा: लचीले काम के बदलते स्वरूप में श्रम अधिकारों की नई ज़रूरत”


भूमिका:
भारत में कामकाज की दुनिया तेजी से बदल रही है। पारंपरिक ‘9 से 5’ की नौकरी की जगह अब गिग वर्क (Gig Work) और फ्रीलांसिंग (Freelancing) तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। लोग अब डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म, मोबाइल ऐप्स और प्रोजेक्ट आधारित अनुबंधों के माध्यम से स्वतंत्र रूप से काम कर रहे हैं।
लेकिन इस स्वतंत्रता के साथ-साथ कानूनी सुरक्षा, स्थायित्व और सामाजिक सुरक्षा जैसे गंभीर सवाल भी उठ रहे हैं।

क्या गिग वर्कर और फ्रीलांसर को भी वही अधिकार मिलते हैं जो किसी कंपनी के स्थायी कर्मचारी को मिलते हैं? क्या उनके लिए कोई अलग श्रम कानून या सामाजिक सुरक्षा ढांचा है? आइए जानते हैं।


🔹 गिग वर्कर और फ्रीलांसर: परिचय और भिन्नता

पहलू गिग वर्कर फ्रीलांसर
काम का स्वरूप प्लेटफॉर्म आधारित (उबर, स्विगी, ज़ोमैटो आदि) प्रोजेक्ट आधारित स्वतंत्र काम (डिजाइनर, लेखक, प्रोग्रामर)
संबद्धता ऐप/कंपनी के साथ जुड़ा हुआ ग्राहक/कंपनी के साथ स्वतंत्र अनुबंध
आय का माध्यम टास्क या ऑर्डर आधारित भुगतान अनुबंध या प्रोजेक्ट पर तय शुल्क
नियंत्रण प्लेटफॉर्म द्वारा निगरानी व नियम स्व-नियंत्रित, लचीलापन अधिक

🔹 भारत में मौजूदा कानूनी स्थिति

1. कोड ऑन सोशल सिक्योरिटी, 2020 (Code on Social Security, 2020)

  • पहली बार गिग वर्कर और प्लेटफ़ॉर्म वर्कर को कानूनी परिभाषा दी गई।
  • सरकार को उनके लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाएं बनाने की शक्ति दी गई।
  • गिग वर्कर को स्वास्थ्य बीमा, दुर्घटना बीमा, पेंशन आदि योजनाओं का लाभ देने की संभावनाएं खुली।

2. फ्रीलांसर के लिए कोई विशेष कानून नहीं

  • फ्रीलांसर आज भी ‘स्व-नियोजित (Self-Employed)’ माने जाते हैं।
  • उनके अधिकार अनुबंध पर निर्भर करते हैं, न कि किसी श्रम कानून पर।
  • कराधान, विवाद समाधान और भुगतान सुरक्षा के लिए कोई स्पष्ट ढांचा नहीं।

🔹 प्रमुख समस्याएं और कानूनी चुनौतियां

🔻 गिग वर्कर्स की समस्याएं:

  • न्यूनतम वेतन या आय की कोई गारंटी नहीं
  • स्वास्थ्य बीमा, पीएफ या पेंशन नहीं
  • रेटिंग आधारित अनुचित निष्कासन
  • यूनियन बनाने या सामूहिक मोलभाव का अधिकार नहीं

🔻 फ्रीलांसर की समस्याएं:

  • क्लाइंट द्वारा भुगतान रोकना या विलंब
  • स्पष्ट अनुबंधों की कमी
  • कर कानून की जटिलता
  • कानूनी सहारा महंगा और समय-consuming

🔹 हालिया प्रगतियाँ: सकारात्मक पहलें

राजस्थान गिग वर्कर वेलफेयर एक्ट, 2023

  • भारत का पहला कानून जो प्लेटफॉर्म श्रमिकों को अधिकार देता है।
  • गिग वर्कर्स वेलफेयर फंड की स्थापना की गई।
  • रजिस्ट्रेशन, दुर्घटना बीमा, सामाजिक सुरक्षा लाभ की व्यवस्था।
  • कंपनियों को हर ट्रांजेक्शन से वेलफेयर फंड में योगदान देना अनिवार्य।

नीति आयोग की रिपोर्ट (2021)

  • गिग और फ्रीलांस वर्क को औपचारिक मान्यता देने की सिफारिश।
  • ई-श्रम पोर्टल से गिग वर्कर्स का पंजीकरण और ट्रैकिंग।
  • डिजिटल श्रमिक कार्ड का प्रस्ताव।

🔹 अन्य देशों से तुलना

देश कानूनी संरक्षण
🇬🇧 यूनाइटेड किंगडम उबर ड्राइवरों को ‘वर्कर’ का दर्जा मिला – न्यूनतम वेतन और अवकाश का अधिकार
🇫🇷 फ्रांस गिग वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा में शामिल किया गया
🇺🇸 अमेरिका कुछ राज्यों में गिग वर्कर्स को कर्मचारी माने जाने की मांग जारी है

🔹 आवश्यक कानूनी सुधार और सुझाव

  1. फ्रीलांसरों के लिए ‘फ्रीलांस प्रोटेक्शन कानून’ बनना चाहिए
    • क्लाइंट के साथ लिखित अनुबंध अनिवार्य हो
    • भुगतान गारंटी, विवाद समाधान प्रणाली और कर सुविधा मिले
  2. गिग वर्कर्स को न्यूनतम सुरक्षा कानूनों के दायरे में लाया जाए
    • जैसे कार्य के घंटे, बीमा, दुर्घटना मुआवज़ा, आदि
  3. राष्ट्रीय स्तर पर गिग वर्कर्स का पंजीकरण
    • जिससे उन्हें योजनाओं का लाभ लक्षित रूप से मिले
  4. प्लेटफ़ॉर्म कंपनियों को श्रमिक कल्याण के लिए ज़िम्मेदार बनाया जाए
    • प्रत्येक कार्य के बदले एक निश्चित प्रतिशत वेलफेयर फंड में अनिवार्य योगदान हो
  5. ई-कॉर्ट या पोर्टल आधारित त्वरित विवाद निवारण प्रणाली
    • ताकि भुगतान और अनुबंध विवाद समय पर सुलझें

🔹 निष्कर्ष:

गिग वर्कर्स और फ्रीलांसर्स आज की अर्थव्यवस्था के केंद्र में हैं। वे तकनीकी दक्षता, लचीलापन और नवाचार के प्रतीक हैं, लेकिन कानूनी संरक्षण के मामले में सबसे असुरक्षित वर्ग भी हैं।
अब आवश्यकता है कि भारत एक ठोस और समग्र ‘डिजिटल श्रम नीति’ बनाए जो इन श्रमिकों को भी वही सम्मान, अधिकार और सुरक्षा प्रदान करे जो एक नियमित कर्मचारी को मिलती है।

एक समावेशी और न्यायपूर्ण भविष्य के लिए यह आवश्यक है कि श्रम कानून समय के साथ आगे बढ़ें — और gig वर्कर्स तथा फ्रीलांसर पीछे न छूटें।