गवाह को पुनः बुलाना (Recall of Witness) – गवाह को दोबारा बुलाने का अधिकार केवल अदालत का, पक्षकारों को नहीं
विधिक प्रणाली में गवाहों का महत्व अत्यधिक है। न्यायालय में किसी भी मुकदमे की सुनवाई में गवाह द्वारा प्रस्तुत तथ्य और साक्ष्य अक्सर केस का निर्णय तय करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इसके बावजूद, कई बार यह सवाल उठता है कि क्या गवाह को दोबारा बुलाने का अधिकार किसी पक्षकार को है या केवल अदालत के पास है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय ने इस विषय में स्पष्टता प्रदान की है।
1. कानूनी प्रावधान
सीपीसी (Civil Procedure Code) के तहत गवाह को पुनः बुलाने का नियम मुख्यतः Order 18 Rule 17 और Section 151 के तहत आता है। इन प्रावधानों का सार इस प्रकार है:
- O.18 R.17 (Order 18, Rule 17):
यह नियम न्यायालय को यह अधिकार देता है कि वह किसी भी गवाह को पुनः बुला सकता है। इसके अनुसार, गवाह को पुनः बुलाने और उससे पूछताछ करने का अधिकार केवल न्यायालय का है। - Section 151 ( inherent powers of court):
यह धारा अदालत को यह अधिकार देती है कि वह न्याय के हित में कोई भी कार्रवाई कर सकती है जो कानून में विशेष रूप से न दी गई हो, बशर्ते वह न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध न हो। इस धारा के अंतर्गत अदालत यह तय कर सकती है कि किसी गवाह से पुनः प्रश्न पूछे जाएँ या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि किसी भी पक्षकार के अनुरोध पर गवाह को केवल जांच (examination), जिरह (cross-examination) या पुनः जांच (re-examination) के लिए दोबारा नहीं बुलाया जा सकता। यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया में पक्षपात से बचाव और न्याय के त्वरित निष्पादन को सुनिश्चित करता है।
2. गवाह को पुनः बुलाने का उद्देश्य
गवाह को पुनः बुलाने का उद्देश्य निम्नलिखित हो सकता है:
- अपर्याप्त या अधूरी जानकारी पूरी करना:
कभी-कभी गवाह के प्रारंभिक बयान में कुछ तथ्य अधूरे रह जाते हैं या महत्वपूर्ण जानकारी छूट जाती है। - नए साक्ष्यों के प्रकाश में:
यदि मुकदमे में बाद में नया साक्ष्य प्रस्तुत किया जाता है, तो गवाह से इसके बारे में स्पष्टीकरण लेना आवश्यक हो सकता है। - साक्ष्य में विसंगतियों का समाधान:
प्रारंभिक बयान और अन्य गवाहों के बयानों के बीच किसी प्रकार की असंगति होने पर, अदालत गवाह को पुनः बुला कर असंगति को स्पष्ट कर सकती है।
इन परिस्थितियों में केवल अदालत का यह अधिकार है कि वह गवाह को पुनः बुलाए या न बुलाए। पक्षकारों के लिए यह विकल्प उपलब्ध नहीं है।
3. पुनः बुलाए गए गवाह पर जिरह (Cross-examination) का नियम
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि गवाह को पुनः बुलाने पर, उसके द्वारा दिए गए उत्तरों पर सामान्यतः जिरह की अनुमति नहीं होती। यदि पक्षकारों को जिरह करनी हो, तो इसके लिए अदालत से विशेष अनुमति (leave of court) लेनी अनिवार्य है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि गवाह पर बार-बार दबाव न डाला जाए और न्यायालय की प्रक्रिया समयबद्ध बनी रहे।
उदाहरण:
मान लें कि कोई सिविल मुकदमा चल रहा है और गवाह ने अपने बयान में कुछ विवरण अधूरे छोड़े हैं। अदालत उचित समझते हुए गवाह को पुनः बुलाती है। इस स्थिति में:
- गवाह से केवल आवश्यक तथ्य पूछे जा सकते हैं।
- पक्षकार सीधे गवाह से जिरह नहीं कर सकते, जब तक कि अदालत विशेष अनुमति न दे।
- इस प्रक्रिया का उद्देश्य न्याय की निष्पक्षता बनाए रखना है।
4. न्यायिक दृष्टिकोण
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार:
- गवाह को दोबारा बुलाने और पूछताछ करने का अधिकार केवल अदालत के पास है।
- किसी भी पक्षकार के अनुरोध पर केवल गवाह को पुनः बुलाना या उसके बयान की जिरह करना संभव नहीं है।
- यह निर्णय न्यायालय को मुकदमे में नियंत्रण और अनुशासन बनाए रखने की शक्ति प्रदान करता है।
अदालत के अधिकार का यह सिद्धांत न्यायिक प्रणाली की संपूर्णता और निष्पक्षता की रक्षा करता है। यदि पक्षकारों को यह अधिकार दिया जाए, तो यह प्रक्रिया को लंबा और पक्षपाती बना सकता है।
प्रमुख उद्धरण:
“किसी भी पक्षकार के कहने पर गवाह को केवल जांच, जिरह या पुनः जांच के लिए दोबारा नहीं बुलाया जा सकता। गवाह को दोबारा बुलाने और पूछताछ करने का अधिकार केवल उस अदालत को है जो मुकदमे की सुनवाई कर रही है।”
यह उद्धरण स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि अदालत की नियंत्रण शक्ति और पक्षकारों की सीमित भूमिका को स्थापित किया गया है।
5. प्रक्रिया (Procedure)
गवाह को पुनः बुलाने की प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में होती है:
- अदालत की स्वीकृति:
अदालत अपने विवेकानुसार यह निर्णय लेती है कि गवाह को पुनः बुलाना आवश्यक है या नहीं। - गवाह को आदेशित करना:
अदालत गवाह को विशेष तिथि पर हाजिर होने का आदेश देती है। - प्रश्नोत्तरी:
गवाह से न्यायालय स्वयं प्रश्न पूछती है। - जिरह की अनुमति:
यदि पक्षकारों को जिरह करनी हो, तो अदालत से विशेष अनुमति लेना अनिवार्य है।
यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि गवाह का दोबारा बयान न्यायपूर्ण, अनुशासित और समयबद्ध हो।
6. व्यावहारिक उदाहरण
मान लें कि किसी संपत्ति विवाद मामले में गवाह ने प्रारंभिक बयान दिया था, लेकिन बाद में संपत्ति का नया दस्तावेज प्रस्तुत किया गया। अदालत इस नए साक्ष्य को देखते हुए गवाह को पुनः बुलाती है ताकि वह नए दस्तावेज के बारे में स्पष्टीकरण दे सके।
- इस दौरान पक्षकार सीधे गवाह से जिरह नहीं कर सकते।
- यदि आवश्यक हो, तो अदालत अनुमति देती है।
- इससे यह सुनिश्चित होता है कि गवाह पर अत्यधिक दबाव न बने और न्याय प्रक्रिया बाधित न हो।
7. निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय और CPC के प्रावधान स्पष्ट रूप से यह स्थापित करते हैं कि:
- गवाह को पुनः बुलाने का अधिकार केवल अदालत का है, न कि पक्षकारों का।
- पुनः बुलाए गए गवाह पर सामान्य जिरह की अनुमति नहीं होती, इसके लिए विशेष अनुमति आवश्यक है।
- यह व्यवस्था न्यायिक प्रक्रिया को समयबद्ध, निष्पक्ष और प्रभावी बनाती है।
गवाह को पुनः बुलाने की शक्ति अदालत को यह सुनिश्चित करने में मदद करती है कि मुकदमा सच्चाई और न्याय के आधार पर चले। किसी भी पक्षकार को यह अधिकार मिलने पर प्रक्रिया लंबी, जटिल और पक्षपाती हो सकती है।
अतः, न्याय प्रणाली की स्वतंत्रता और गवाह सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय में स्पष्ट मार्गदर्शन प्रदान किया है।
इस प्रकार, यह निर्णय गवाहों के संरक्षण और न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता के लिए एक महत्वपूर्ण सिद्धांत स्थापित करता है। यह सभी सिविल और अपराधिक मामलों में अदालतों को यह अधिकार देता है कि वे विवेकपूर्ण तरीके से गवाह को पुनः बुलाएँ और केस की निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करें।
प्रश्न (Q):
गवाह को पुनः बुलाने (Recall of Witness) का अधिकार किसके पास है? क्या पक्षकार इसे अदालत से बिना अनुमति प्राप्त कर सकते हैं?
उत्तर (A):
- कानूनी प्रावधान:
- CPC के O.18 R.17 और S.151 के तहत गवाह को पुनः बुलाने का अधिकार केवल अदालत के पास है।
- पक्षकार अपने आग्रह पर गवाह को केवल जाँच (Examine), जिरह (Cross-Examine) या पुनः जाँच (Re-Examine) के लिए नहीं बुला सकते।
- अदालत का अधिकार:
- गवाह को पुनः बुलाना और उससे पूछताछ करना केवल अदालत कर सकती है।
- अदालत स्वयं गवाह से प्रश्न पूछती है।
- पक्षकार को गवाह से सामान्य जिरह की अनुमति नहीं होती। यदि आवश्यक हो, तो अदालत से विशेष अनुमति (leave of court) लेनी पड़ती है।
- उद्देश्य:
- अधूरी जानकारी पूरी करना।
- नए साक्ष्यों के आधार पर स्पष्टता प्राप्त करना।
- साक्ष्य में विसंगतियों को दूर करना।
- प्रक्रिया:
- अदालत विवेकानुसार गवाह को पुनः बुलाती है।
- गवाह को विशेष तिथि पर हाजिर होने का आदेश दिया जाता है।
- अदालत स्वयं आवश्यक प्रश्न पूछती है।
- जिरह के लिए अदालत की अनुमति आवश्यक है।
- न्यायिक दृष्टिकोण:
- सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि गवाह को दोबारा बुलाने का अधिकार केवल अदालत का है।
- पक्षकार केवल अपने अनुरोध पर गवाह को पुनः बुला नहीं सकते।
- यह न्याय प्रक्रिया को निष्पक्ष, समयबद्ध और अनुशासित बनाता है।
- निष्कर्ष:
- गवाह की सुरक्षा और न्यायिक निष्पक्षता के लिए पुनः बुलाने का अधिकार केवल अदालत को है।
- पक्षकारों को बिना अनुमति गवाह से पूछताछ करने का अधिकार नहीं है।
सारांश:
गवाह को पुनः बुलाने का अधिकार केवल अदालत का है; पक्षकार इसे अदालत की अनुमति के बिना नहीं कर सकते। जिरह के लिए विशेष अनुमति आवश्यक है।