“गर्मी की छुट्टियों में भी न्याय की मशाल जल रही है: न्यायपालिका की तत्परता बनाम वकीलों की उदासीनता”

शीर्षक: “गर्मी की छुट्टियों में भी न्याय की मशाल जल रही है: न्यायपालिका की तत्परता बनाम वकीलों की उदासीनता”

प्रस्तावना:
भारतीय न्यायपालिका लंबे समय से मुकदमों की भारी पेंडेंसी (लंबित मामलों) से जूझ रही है। न्याय में देरी को अन्याय के रूप में देखा जाता है। ऐसे में जब सुप्रीम कोर्ट के पांच सीनियर मोस्ट न्यायाधीश गर्मी की छुट्टियों में भी मामलों की सुनवाई के लिए तैयार हों, तो यह एक सराहनीय कदम है। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ वकील इस दौरान काम नहीं करना चाहते। इससे न केवल न्याय की प्रक्रिया बाधित होती है, बल्कि पेंडेंसी के लिए सारा दोष न्यायपालिका पर डालना भी अनुचित बनता है।

मुख्य विषय-वस्तु:

1. न्यायपालिका की सक्रियता:
सुप्रीम कोर्ट के पांच सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों द्वारा अवकाश के दौरान भी सुनवाई करने का निर्णय यह दिखाता है कि न्यायपालिका लंबित मामलों को लेकर गंभीर है। यह पहल न्याय तक शीघ्र पहुंच को साकार करने की दिशा में बड़ा कदम है। यह उस धारणा को भी तोड़ता है कि न्यायालय सिर्फ लंबी छुट्टियों में व्यस्त रहते हैं।

2. वकीलों की निष्क्रियता पर सवाल:
जहां एक ओर न्यायधीश गर्मी की भीषणता को नजरअंदाज कर रहे हैं, वहीं कुछ वकील इस दौरान कार्य करने को तैयार नहीं हैं। वकीलों का यह रवैया न केवल उनके पेशेवर कर्तव्यों के प्रति लापरवाही को दर्शाता है, बल्कि उन लाखों litigants (विवादकारियों) की आशाओं पर भी पानी फेरता है जो वर्षों से न्याय का इंतजार कर रहे हैं।

3. पेंडेंसी का दोष किस पर?
अक्सर न्याय में देरी का दोष न्यायाधीशों की संख्या, अवकाश और न्यायिक प्रणाली की जटिलता पर मढ़ दिया जाता है। लेकिन जब न्यायाधीश स्वयं अवकाश में भी कार्य करने को तत्पर हों और वकील सहयोग न करें, तो यह स्पष्ट है कि समस्या बहुपक्षीय है। केवल न्यायपालिका को दोष देना न केवल अनुचित है बल्कि समस्या के समाधान में बाधा भी है।

4. कानूनी बिरादरी की जिम्मेदारी:
न्याय प्रणाली का मुख्य स्तंभ होने के नाते वकीलों का भी यह कर्तव्य बनता है कि वे न्यायाधीशों के साथ सहयोग करें और न्यायिक प्रक्रिया को गति देने में योगदान दें। अगर वकील भी न्यायपालिका की इस तत्परता का समर्थन करें, तो लंबित मामलों की संख्या में निश्चित ही कमी लाई जा सकती है।

5. एक साझा उत्तरदायित्व की आवश्यकता:
न्यायपालिका, वकील, सरकार और समाज – सभी को मिलकर न्याय व्यवस्था को अधिक उत्तरदायी, प्रभावशाली और संवेदनशील बनाना होगा। सिर्फ एक पक्ष पर दोषारोपण करने से समाधान नहीं निकलता। न्यायपालिका ने पहल की है, अब बार को भी सकारात्मक कदम उठाना होगा।

निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों द्वारा अवकाश में भी मामलों की सुनवाई करना न्यायिक समर्पण का उदाहरण है। वकीलों को भी इस पहल का सम्मान करते हुए सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। न्यायपालिका और बार के बीच सहयोग ही न्याय प्रणाली को सशक्त बना सकता है। न्यायालयों में पेंडेंसी का समाधान तभी संभव है जब हर पक्ष अपने हिस्से की जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी से निभाए।