शीर्षक: “गर्भपात पर वैश्विक बहस के बीच भारत में गर्भपात कानून क्या कहते हैं? — मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट का विश्लेषण”
भूमिका:
गर्भपात (Abortion) एक ऐसा विषय है, जो केवल चिकित्सा तक सीमित नहीं है — यह महिलाओं के अधिकारों, धार्मिक मान्यताओं, सामाजिक मूल्यों और कानून के गहरे प्रश्नों से जुड़ा हुआ है। अमेरिका, पोलैंड, अर्जेंटीना जैसे देशों में गर्भपात को लेकर विवाद और बदलाव जारी हैं। इस वैश्विक बहस के बीच यह जानना जरूरी है कि भारत में गर्भपात को लेकर क्या कानून हैं, किस हद तक महिलाओं को अधिकार मिले हैं, और इसमें क्या बदलाव हुए हैं।
भारत में गर्भपात का कानूनी ढांचा:
भारत में गर्भपात से संबंधित प्रमुख कानून है:
1. मेडिकल प्रेग्नेंसी समापन अधिनियम, 1971 (Medical Termination of Pregnancy Act, 1971):
यह अधिनियम पहली बार 1971 में लागू हुआ और यह निर्धारित करता है कि किन परिस्थितियों में, किस अवधि तक, और किसके परामर्श पर गर्भपात किया जा सकता है।
प्रारंभिक प्रावधान (1971 अधिनियम के अनुसार):
- 20 सप्ताह तक के गर्भ को समाप्त करना कानूनन अनुमेय था, यदि:
- गर्भावस्था महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरा है।
- गर्भ बलात्कार या अनैच्छिक यौन संबंध के परिणामस्वरूप है।
- भ्रूण में गंभीर असामान्यता है।
ध्यान दें: 12 सप्ताह तक एक डॉक्टर की सहमति पर्याप्त थी, जबकि 12 से 20 सप्ताह तक दो पंजीकृत चिकित्सकों की सहमति आवश्यक थी।
महत्वपूर्ण संशोधन: MTP Amendment Act, 2021
भारत सरकार ने 2021 में इस अधिनियम में बड़ा संशोधन किया। इसके प्रमुख प्रावधान:
1. गर्भसमापन की समयसीमा बढ़ाई गई:
- कुछ विशेष परिस्थितियों (जैसे रेप विक्टिम, नाबालिग, वैवाहिक बलात्कार आदि) में गर्भपात की सीमा 24 सप्ताह तक कर दी गई है।
- Medical Board की अनुशंसा पर, यदि भ्रूण में गंभीर असामान्यता है तो 24 सप्ताह से आगे भी गर्भपात अनुमेय है।
2. गोपनीयता की गारंटी:
- महिला की पहचान को पूर्ण रूप से गोपनीय रखा जाएगा। यदि कोई चिकित्सक इसका उल्लंघन करता है, तो यह दंडनीय अपराध है।
3. विवाह की शर्त हटी:
- अब गर्भपात की अनुमति केवल विवाहित महिलाओं तक सीमित नहीं है। अविवाहित महिलाएं भी अपने स्वास्थ्य या सामाजिक कारणों से गर्भसमापन का अधिकार रखती हैं।
कानूनी प्रक्रिया और ज़िम्मेदारियां:
- गर्भपात केवल मान्यता प्राप्त केंद्रों और योग्य डॉक्टरों द्वारा ही किया जा सकता है।
- गर्भपात की प्रक्रिया महिला की सहमति से ही की जाती है, जब तक वह अवयस्क (18 से कम) या मानसिक रूप से असमर्थ न हो।
- अनधिकृत गर्भपात या अवैध क्लीनिक में कराया गया गर्भपात अपराध की श्रेणी में आता है।
गर्भपात को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण:
2022 में एक ऐतिहासिक निर्णय में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
“महिला की शरीर पर आत्मनिर्णय का अधिकार गर्भपात का भी अधिकार है। विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच भेदभाव नहीं किया जा सकता।“
यह फैसला महिला अधिकारों की दिशा में बड़ा कदम माना गया।
वैश्विक दृष्टिकोण बनाम भारत:
देश | गर्भपात नीति |
---|---|
अमेरिका | कई राज्यों में सख्त प्रतिबंध (Post Roe v. Wade reversal) |
पोलैंड | लगभग पूर्ण प्रतिबंध, केवल खतरे की स्थिति में अनुमति |
अर्जेंटीना | 14 सप्ताह तक बिना कारण अनुमति |
भारत | 24 सप्ताह तक विशेष मामलों में अनुमति, मेडिकल बोर्ड की भूमिका |
भारत का कानून तुलनात्मक रूप से महिलाओं के लिए अधिक लचीला और सहानुभूतिपूर्ण माना जाता है, खासकर संशोधन के बाद।
समाज में भ्रांतियां और चुनौतियाँ:
- ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को गर्भपात के अधिकार और वैध क्लीनिक की जानकारी नहीं है।
- गोपनीयता की कमी, सामाजिक कलंक, और डॉक्टरों की व्यक्तिगत सोच के कारण कई बार गर्भपात सुविधा मिलना मुश्किल हो जाता है।
- कई अवैध क्लीनिकों में गर्भपात के मामले जानलेवा साबित होते हैं।
निष्कर्ष:
भारत ने अपने गर्भपात कानूनों को समय और सामाजिक यथार्थ के अनुसार बदला है। 2021 का संशोधन महिलाओं को सशक्त बनाता है, गोपनीयता सुनिश्चित करता है, और चिकित्सकीय दृष्टिकोण से भी व्यावहारिक संतुलन प्रदान करता है।
फिर भी ज़मीनी स्तर पर बदलाव की ज़रूरत है — ताकि हर महिला को न केवल कानूनी अधिकार मिले, बल्कि सुरक्षित और सम्मानजनक स्वास्थ्य सेवा भी।