शीर्षक: गर्भपात कानून: महिलाओं के अधिकार, नैतिक दुविधाएं और भारत सहित विश्वभर का कानूनी परिप्रेक्ष्य
🔹 भूमिका:
गर्भपात (Abortion) पर दुनिया भर में तीखी बहस जारी है — एक ओर यह महिलाओं के शरीर पर उनके अधिकार से जुड़ा है, वहीं दूसरी ओर यह जीवन के अधिकार, धार्मिक मान्यताओं और नैतिक मूल्यों के खिलाफ भी खड़ा होता है।
भारत में, जहां जनसंख्या का बड़ा हिस्सा अभी भी रूढ़ियों से प्रभावित है, वहीं दूसरी तरफ कानूनी रूप से गर्भपात को कई परिस्थितियों में मान्यता दी गई है। परंतु क्या भारत का कानून महिलाओं की सुरक्षा और स्वतंत्रता के लिए पर्याप्त है? और वैश्विक स्तर पर गर्भपात को लेकर क्या रुख अपनाया जा रहा है? आइए विस्तार से समझते हैं।
🔹 गर्भपात क्या है? (What is Abortion?)
गर्भपात का अर्थ है — गर्भस्थ शिशु का जानबूझकर चिकित्सा के माध्यम से समापन करना, जिसे अंग्रेजी में “Medical Termination of Pregnancy (MTP)” कहते हैं। यह प्रक्रिया तब अपनाई जाती है जब:
- गर्भ महिला के जीवन के लिए खतरा हो,
- भ्रूण में कोई गंभीर विकृति हो,
- गर्भ अनैच्छिक यौन संबंध (बलात्कार) से हुआ हो,
- सामाजिक या मानसिक कारणों से महिला गर्भ को नहीं रखना चाहती।
🔹 भारत में गर्भपात कानून (Abortion Law in India)
1. मेडिकल प्रेग्नेंसी समापन अधिनियम, 1971 (MTP Act, 1971):
भारत ने 1971 में गर्भपात को अपराध की श्रेणी से निकालते हुए इसे नियंत्रित और वैध परिस्थितियों में मान्यता दी। इसके प्रमुख बिंदु:
- 12 सप्ताह तक के गर्भ को एक पंजीकृत चिकित्सक की सलाह पर समाप्त किया जा सकता है।
- 12 से 20 सप्ताह तक के गर्भ के लिए दो डॉक्टरों की सहमति जरूरी है।
- इसके लिए महिला की स्वास्थ्य, बलात्कार, अवांछित गर्भधारण, आदि को आधार माना गया।
2. संशोधन 2021: (MTP Amendment Act, 2021)
यह संशोधन ऐतिहासिक माना गया क्योंकि इसमें:
- गर्भपात की समयसीमा 24 सप्ताह तक कर दी गई, विशेषकर बलात्कार पीड़िता, नाबालिग, या मानसिक रूप से अक्षम महिलाओं के लिए।
- गोपनीयता को कानूनी संरक्षण मिला — महिला की पहचान उजागर नहीं की जा सकती।
- अविवाहित महिलाओं को भी गर्भपात की छूट मिली — यह बड़ा बदलाव था।
3. मेडिकल बोर्ड की भूमिका:
यदि गर्भावस्था 24 सप्ताह से अधिक है और भ्रूण में गंभीर असामान्यता है, तो मेडिकल बोर्ड की अनुमति से गर्भपात संभव है।
🔹 सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण:
2022 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि:
“महिला की गर्भपात करने की इच्छा उसके निजता के अधिकार का हिस्सा है। विवाहित और अविवाहित महिला में भेदभाव नहीं किया जा सकता।”
यह फैसला महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों को मजबूती देने वाला रहा।
🔹 वैश्विक परिप्रेक्ष्य (Global Perspective on Abortion Law):
देश | स्थिति |
---|---|
अमेरिका | 2022 में Roe v. Wade को पलटने के बाद कई राज्यों में गर्भपात पर प्रतिबंध। |
पोलैंड | गर्भपात पर लगभग पूर्ण प्रतिबंध। |
अर्जेंटीना | 14 सप्ताह तक बिना कारण गर्भपात वैध। |
आयरलैंड | 2018 में जनमत संग्रह के बाद कानूनी मान्यता। |
भारत | कुछ मामलों में 24 सप्ताह तक गर्भपात वैध, मेडिकल बोर्ड के आधार पर अधिक भी संभव। |
भारत का कानून महिलाओं के अधिकारों की दृष्टि से कई पश्चिमी देशों से अधिक लचीला और संवेदनशील माना जाता है।
🔹 सामाजिक और नैतिक पक्ष:
गर्भपात केवल कानून का मामला नहीं है — यह धर्म, संस्कृति, नैतिकता और व्यक्तिगत मूल्यबोध से भी जुड़ा है।
- कई धार्मिक मान्यताएं गर्भपात को पाप मानती हैं।
- समाज में अब भी “अबॉर्शन क्लिनिक” को कलंक की दृष्टि से देखा जाता है।
- लैंगिक भेदभाव के चलते भारत में कई बार लिंग चयन के लिए अवैध गर्भपात कराए जाते हैं — यह एक अपराध है।
🔹 चुनौतियाँ:
- ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की कमी
- फर्जी और अवैध क्लिनिकों की भरमार
- महिलाओं के खिलाफ सामाजिक दबाव
- लिंग-निर्धारण के कारण भ्रूण हत्या
🔹 निष्कर्ष:
गर्भपात कानून महिला के शारीरिक आत्मनिर्णय, स्वास्थ्य, और सम्मान से जुड़े हैं। भारत ने कानूनों को समय के साथ अद्यतन किया है, लेकिन व्यवहारिक स्तर पर अब भी जागरूकता, सुलभ चिकित्सा सुविधा, और सामाजिक समर्थन की कमी है।
सही जानकारी, कानूनी समर्थन और सामाजिक संवेदनशीलता के साथ ही गर्भपात जैसे विषयों को संवैधानिक और मानवीय तरीके से संभाला जा सकता है