गर्भपात और मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट: महिला के प्रजनन अधिकार और कानूनी सीमाएं
प्रस्तावना
गर्भपात (Abortion) विश्वभर में एक संवेदनशील और विवादास्पद विषय रहा है। यह केवल चिकित्सा का ही नहीं बल्कि सामाजिक, धार्मिक, नैतिक और कानूनी दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। महिलाओं के प्रजनन अधिकार (Reproductive Rights) मानवाधिकारों का अभिन्न हिस्सा हैं, जिनमें उन्हें अपनी इच्छानुसार मातृत्व चुनने, गर्भधारण करने या गर्भपात करने का अधिकार शामिल है। भारत में इस विषय को लेकर मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 (Medical Termination of Pregnancy Act, 1971) लागू किया गया, जिसे समय-समय पर संशोधित किया गया ताकि महिलाओं की सुरक्षा, स्वास्थ्य और अधिकारों का संरक्षण हो सके।
इस लेख में हम गर्भपात और एमटीपी एक्ट (MTP Act) का विस्तृत विश्लेषण करेंगे, इसके कानूनी प्रावधानों, महिला के प्रजनन अधिकारों तथा कानूनी सीमाओं पर प्रकाश डालेंगे।
गर्भपात का अर्थ और संदर्भ
गर्भपात का अर्थ है गर्भावस्था को चिकित्सा प्रक्रिया द्वारा समाप्त करना। इसे दो श्रेणियों में बाँटा जाता है—
- स्वाभाविक गर्भपात (Miscarriage) – जब भ्रूण प्राकृतिक कारणों से गर्भाशय से बाहर आ जाता है।
- कृत्रिम गर्भपात (Induced Abortion) – जब गर्भावस्था को चिकित्सकीय उपायों से समाप्त किया जाता है।
भारत में गर्भपात को कानूनी मान्यता केवल तभी है जब यह MTP एक्ट के तहत निर्धारित शर्तों के अनुरूप हो।
भारत में MTP एक्ट का ऐतिहासिक विकास
भारत में गर्भपात को लेकर कानून का इतिहास महत्वपूर्ण है। 1971 से पहले गर्भपात करना भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 312 से 316 के अंतर्गत अपराध माना जाता था और इसके लिए दंड का प्रावधान था। लेकिन सामाजिक वास्तविकताओं और महिलाओं के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को देखते हुए सरकार ने शांता समिति (Shantilal Shah Committee) का गठन किया। समिति ने सुझाव दिया कि सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की अनुमति दी जाए ताकि महिलाओं को असुरक्षित गर्भपात से बचाया जा सके।
इन सुझावों के आधार पर मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 पारित किया गया।
MTP एक्ट, 1971 के प्रमुख प्रावधान
- गर्भपात की अनुमति का आधार –
- जब गर्भ से महिला के जीवन को खतरा हो।
- जब गर्भ से महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर हानि पहुँचने की संभावना हो।
- जब गर्भ बलात्कार का परिणाम हो।
- जब गर्भनिरोधक साधन असफल हो जाए और गर्भ अवांछित हो।
- जब भ्रूण में गंभीर असामान्यता हो और वह जन्म के बाद जीवित न रह सके।
- गर्भपात की समयसीमा (1971 अधिनियम में) –
- 20 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति दी गई थी।
- 12 सप्ताह तक एक पंजीकृत डॉक्टर की राय पर्याप्त मानी गई।
- 12 से 20 सप्ताह तक दो डॉक्टरों की सहमति आवश्यक थी।
- गोपनीयता का प्रावधान – महिला की पहचान और गर्भपात की प्रक्रिया को गोपनीय रखना कानूनी रूप से आवश्यक है।
- अधिकृत चिकित्सक और केंद्र – केवल पंजीकृत चिकित्सक ही सरकारी या स्वीकृत निजी अस्पताल में गर्भपात कर सकते हैं।
MTP संशोधन अधिनियम, 2021
समय के साथ समाज में परिवर्तन और प्रौद्योगिकी की प्रगति को देखते हुए इस अधिनियम में संशोधन किया गया। 2021 के संशोधन ने महिलाओं को और अधिक अधिकार प्रदान किए—
- समय सीमा बढ़ाई गई –
- गर्भपात की सीमा 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह की गई।
- विशेष परिस्थितियों (जैसे बलात्कार पीड़िता, नाबालिग लड़की, विकलांग महिला आदि) में यह लागू होता है।
- गोपनीयता को और मजबूत किया गया –
- महिला की पहचान बिना अनुमति के उजागर करना दंडनीय अपराध है।
- समान अधिकार –
- अब अविवाहित महिलाओं को भी गर्भपात का वही अधिकार है जो विवाहित महिलाओं को है।
- गर्भनिरोधक असफलता के आधार पर गर्भपात केवल विवाहित महिलाओं तक सीमित नहीं रहा।
- मेडिकल बोर्ड का गठन –
- यदि भ्रूण में गंभीर असामान्यता पाई जाती है तो 24 सप्ताह के बाद भी मेडिकल बोर्ड की अनुमति से गर्भपात संभव है।
महिला के प्रजनन अधिकार
- मातृत्व चुनने का अधिकार – महिला को यह तय करने का अधिकार है कि वह कब और कितने बच्चे पैदा करेगी।
- गर्भपात करने का अधिकार – यदि गर्भ अवांछित है, तो सुरक्षित और कानूनी ढंग से उसे समाप्त करने का अधिकार है।
- गोपनीयता और गरिमा का अधिकार – महिला की सहमति के बिना गर्भपात नहीं कराया जा सकता और उसकी पहचान को गोपनीय रखा जाना अनिवार्य है।
- स्वास्थ्य का अधिकार – महिला को सुरक्षित और आधुनिक स्वास्थ्य सेवाएं मिलना आवश्यक है ताकि असुरक्षित गर्भपात से उसकी जान को खतरा न हो।
कानूनी सीमाएं और चुनौतियां
हालांकि MTP एक्ट महिला को कई अधिकार देता है, लेकिन इसके कुछ कानूनी प्रतिबंध और व्यावहारिक कठिनाइयां भी हैं—
- समय सीमा – गर्भपात केवल 20 या 24 सप्ताह तक ही संभव है, इसके बाद कानूनी प्रक्रिया जटिल हो जाती है।
- चिकित्सकों की सहमति – महिला की इच्छा के साथ-साथ चिकित्सकों की राय भी आवश्यक है, जिससे कभी-कभी अनावश्यक देरी होती है।
- चिकित्सा सुविधाओं की कमी – ग्रामीण क्षेत्रों में सुरक्षित गर्भपात सेवाएं उपलब्ध न होने से महिलाएं असुरक्षित गर्भपात का शिकार हो जाती हैं।
- सामाजिक कलंक – अविवाहित महिलाओं या किशोरियों के लिए गर्भपात कराना अब भी सामाजिक दृष्टिकोण से कठिन होता है।
- लैंगिक भेदभाव और भ्रूण हत्या – प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन का दुरुपयोग कर भ्रूण लिंग निर्धारण और कन्या भ्रूण हत्या जैसी समस्याएं भी सामने आती हैं।
न्यायालय के महत्वपूर्ण निर्णय
- Suchita Srivastava v. Chandigarh Administration (2009) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रजनन अधिकार महिला की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा है।
- Justice K.S. Puttaswamy v. Union of India (2017) – निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया गया, जिसका सीधा संबंध प्रजनन अधिकारों से है।
- X v. Principal Secretary, Health (2022) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अविवाहित महिलाओं को भी विवाहित महिलाओं की तरह गर्भपात का समान अधिकार है।
सामाजिक और नैतिक दृष्टिकोण
गर्भपात पर समाज में अलग-अलग मत हैं। एक पक्ष इसे महिला की स्वतंत्रता और अधिकार मानता है, जबकि दूसरा पक्ष भ्रूण के जीवन के अधिकार की बात करता है। धार्मिक दृष्टिकोण से भी गर्भपात को पाप या अनैतिक माना जाता है। किंतु व्यावहारिक और कानूनी दृष्टिकोण से यह स्पष्ट है कि सुरक्षित गर्भपात महिला के जीवन और स्वास्थ्य की रक्षा के लिए आवश्यक है।
निष्कर्ष
गर्भपात और MTP एक्ट महिला के प्रजनन अधिकारों को मान्यता और संरक्षण प्रदान करते हैं। यह अधिनियम महिलाओं को मातृत्व चुनने और अवांछित गर्भ से मुक्त होने का संवैधानिक अधिकार देता है। हालांकि कानूनी सीमाएं, समयसीमा और सामाजिक दृष्टिकोण अब भी चुनौतियां बनी हुई हैं।
भविष्य में आवश्यक है कि—
- ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में सुरक्षित गर्भपात सेवाएं उपलब्ध कराई जाएं।
- महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया जाए।
- भ्रूण लिंग परीक्षण और भ्रूण हत्या पर कठोर नियंत्रण हो।
- समाज में गर्भपात से जुड़े कलंक को दूर करने के लिए सकारात्मक सोच विकसित की जाए।
इस प्रकार, MTP एक्ट न केवल महिलाओं की स्वतंत्रता और गरिमा की रक्षा करता है बल्कि उनके स्वास्थ्य और जीवन की सुरक्षा भी सुनिश्चित करता है।