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“खाता–पेयी चेक अनादरण मामलों में क्षेत्राधिकार का स्पष्ट सिद्धांत : ‘जय बालाजी इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड बनाम एम/एस एचईजी लिमिटेड’ में सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय”

“खाता–पेयी चेक अनादरण मामलों में क्षेत्राधिकार का स्पष्ट सिद्धांत : ‘जय बालाजी इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड बनाम एम/एस एचईजी लिमिटेड’ में सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय”


भूमिका

        व्यापारिक लेन–देन में चेक का उपयोग भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। विशेष रूप से Account Payee Cheque का उद्देश्य भुगतान की सुरक्षा, पारदर्शिता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करना होता है। किंतु जब ऐसे चेक अनादरित (Dishonour) हो जाते हैं, तब Negotiable Instruments Act, 1881 की धारा 138 के अंतर्गत आपराधिक कार्यवाही प्रारंभ होती है। वर्षों से यह प्रश्न विवाद का विषय रहा है कि ऐसे मामलों में किस न्यायालय को क्षेत्राधिकार (Jurisdiction) प्राप्त होगा।

        इसी महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न पर सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने Jai Balaji Industries Ltd. and Others Versus M/s HEG Ltd. मामले में एक स्पष्ट और निर्णायक सिद्धांत स्थापित किया है, जो न केवल निचली अदालतों बल्कि व्यापारिक समुदाय और वकीलों के लिए भी अत्यंत मार्गदर्शक है।


मामले की पृष्ठभूमि

       जय बालाजी इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड और एचईजी लिमिटेड के बीच व्यापारिक संबंध थे। भुगतान के लिए Account Payee Cheques जारी किए गए, जिन्हें एचईजी लिमिटेड ने अपने बैंक खाते में जमा किया। किंतु जब इन चेकों को बैंक के समक्ष प्रस्तुत किया गया, तो वे अनादरित हो गए।

       इसके पश्चात एचईजी लिमिटेड ने Negotiable Instruments Act, 1881 की धारा 138 के अंतर्गत आपराधिक शिकायत दर्ज कराई। विवाद इस बात को लेकर उत्पन्न हुआ कि शिकायत किस स्थान की अदालत में दायर की जानी चाहिए

  • क्या उस स्थान पर जहाँ चेक जारी किया गया था?
  • या जहाँ ड्रॉअर (Drawer) का बैंक स्थित है?
  • अथवा उस स्थान पर जहाँ पेयी (Payee) का बैंक खाता है?

कानूनी विवाद का मुख्य प्रश्न

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य प्रश्न यह था—

“जब Account Payee Cheque का अनादरण होता है, तो धारा 138 के अंतर्गत शिकायत किस न्यायालय में दायर की जानी चाहिए?”

यह प्रश्न इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा पूर्व में अलग–अलग दृष्टिकोण अपनाए गए थे, जिससे न्यायिक अनिश्चितता उत्पन्न हो रही थी।


सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में Negotiable Instruments Act में हुए संशोधनों और पूर्व निर्णयों का गहन विश्लेषण किया। विशेष रूप से न्यायालय ने—

  • धारा 138
  • धारा 142
  • और 2015 में लाए गए संशोधन

पर विशेष ध्यान दिया।

न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि Account Payee Cheque की प्रकृति ही यह दर्शाती है कि भुगतान केवल पेयी के खाते में ही जमा किया जा सकता है। अतः चेक के अनादरण की कानूनी कार्रवाई उसी स्थान से जुड़ी मानी जाएगी, जहाँ पेयी का बैंक खाता संचालित होता है।


निर्णय का सार

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से यह घोषित किया—

“Account Payee Cheques के अनादरण से उत्पन्न शिकायतें केवल उसी न्यायालय में संस्थित की जाएंगी, जिसे उस बैंक शाखा पर क्षेत्राधिकार प्राप्त है जहाँ पेयी अपना खाता रखता है।”

अर्थात्—

  • न तो चेक जारी करने का स्थान निर्णायक होगा
  • न ही ड्रॉअर के बैंक की शाखा
  • बल्कि पेयी के बैंक की शाखा ही क्षेत्राधिकार का निर्धारण करेगी

धारा 138 और 2015 का संशोधन

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में यह भी रेखांकित किया कि 2015 में किए गए संशोधन का उद्देश्य ही यही था कि—

  • अनावश्यक क्षेत्राधिकार विवाद समाप्त हों
  • शिकायतकर्ता को अनावश्यक कठिनाई न हो
  • और मामलों की सुनवाई में स्पष्टता आए

इस संशोधन के बाद विधायिका की मंशा पूर्णतः स्पष्ट हो चुकी थी कि पेयी–केंद्रित दृष्टिकोण अपनाया जाए।


व्यापारिक और विधिक प्रभाव

इस निर्णय का प्रभाव अत्यंत व्यापक है—

  1. व्यापारिक निश्चितता
    कंपनियों को अब यह स्पष्ट है कि चेक अनादरण की स्थिति में मुकदमा कहाँ दायर होगा।
  2. फोरम शॉपिंग पर रोक
    शिकायतकर्ता अब मनमाने ढंग से किसी भी स्थान पर मामला दर्ज नहीं कर सकता।
  3. न्यायिक समय की बचत
    क्षेत्राधिकार को लेकर होने वाली प्रारंभिक आपत्तियों और पुनर्विचार याचिकाओं में कमी आएगी।

अभियुक्त और शिकायतकर्ता दोनों के लिए संतुलन

सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय के माध्यम से संतुलन बनाए रखा है—

  • शिकायतकर्ता को यह सुविधा दी गई कि वह अपने बैंक के स्थान पर ही शिकायत दर्ज करे
  • अभियुक्त को यह सुरक्षा दी गई कि उसे दूर–दराज के न्यायालयों में अनावश्यक रूप से घसीटा न जाए

पूर्व निर्णयों से सामंजस्य

यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के महत्वपूर्ण फैसलों, विशेषकर—

  • Dashrath Rupsingh Rathod v. State of Maharashtra
  • और उसके पश्चात आए विधायी संशोधनों

के साथ सामंजस्य स्थापित करता है।

न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि अब इस विषय पर कोई भ्रम शेष नहीं रहना चाहिए।


निचली अदालतों के लिए मार्गदर्शन

इस निर्णय के बाद—

  • मजिस्ट्रेट अदालतें
  • सत्र न्यायालय
  • और उच्च न्यायालय

सभी को यह निर्देश प्राप्त हो गया है कि वे केवल उसी न्यायालय में दायर शिकायतों पर संज्ञान लें, जहाँ पेयी का बैंक खाता स्थित है।


व्यवहारिक उदाहरण

यदि—

  • कंपनी ‘A’ ने दिल्ली में चेक जारी किया
  • ड्रॉअर का बैंक मुंबई में है
  • और पेयी का खाता कोलकाता में है

तो Account Payee Cheque के अनादरण की शिकायत केवल कोलकाता की अदालत में ही दायर की जा सकेगी।


न्यायपालिका का व्यापक संदेश

सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय के माध्यम से यह संदेश दिया कि—

  • कानून की व्याख्या व्यावहारिक और व्यापार–अनुकूल होनी चाहिए
  • अनावश्यक विवादों से न्याय प्रणाली को मुक्त किया जाना चाहिए
  • विधायिका की मंशा का सम्मान किया जाना चाहिए

निष्कर्ष

Jai Balaji Industries Ltd. बनाम M/s HEG Ltd. का यह निर्णय भारतीय चेक अनादरण कानून में एक मील का पत्थर है। इसने—

  • क्षेत्राधिकार के विवाद को निर्णायक रूप से सुलझा दिया
  • व्यापारिक लेन–देन में भरोसा बढ़ाया
  • और न्यायिक प्रक्रिया को अधिक सरल व प्रभावी बनाया

अंततः, यह फैसला यह सिद्ध करता है कि सुप्रीम कोर्ट न केवल कानून की रक्षा करता है, बल्कि उसे समय की आवश्यकता के अनुरूप स्पष्ट और व्यवहारिक भी बनाता है। यह निर्णय आने वाले वर्षों तक Negotiable Instruments Act के अंतर्गत मामलों में एक मजबूत मार्गदर्शक सिद्ध होगा।