खराब सड़कों पर टोल वसूली नहीं – केरल हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
प्रस्तावना
केरल हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण और जनहित से जुड़े फैसले में स्पष्ट कर दिया है कि यदि सड़क या राजमार्ग की स्थिति खराब है, तो जनता से टोल वसूला जाना अनुचित है। यह निर्णय न केवल सड़क उपयोगकर्ताओं के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) और उसके एजेंटों की जिम्मेदारियों को भी रेखांकित करता है। कोर्ट ने एनएच 544 के एडापल्ली-मन्नुथी खंड पर टोल वसूली को अस्थायी रूप से रोक दिया है, जिससे आम जनता को तत्काल राहत मिली है।
मामले की पृष्ठभूमि
एडापल्ली से मन्नुथी के बीच राष्ट्रीय राजमार्ग 544 का एक हिस्सा लंबे समय से निर्माण कार्य, अंडरपास, फ्लाईओवर, जल निकासी व्यवस्था और सर्विस रोड के रखरखाव की कमी के कारण बदहाल स्थिति में है।
- सड़क पर हर दिन भारी ट्रैफिक जाम लगता है।
- जल निकासी और सर्विस रोड की अव्यवस्था के कारण वाहन चालकों को असुविधा होती है।
- इसके बावजूद, वाहन चालकों से टोल वसूला जा रहा था, जो लोगों के लिए अन्यायपूर्ण और परेशान करने वाला था।
इन परिस्थितियों को देखते हुए कई रिट याचिकाएं केरल हाईकोर्ट में दाखिल की गईं, जिनमें तर्क दिया गया कि जब सड़क की गुणवत्ता और यातायात की सुगमता सुनिश्चित नहीं है, तो टोल वसूली वैध नहीं हो सकती।
कोर्ट की टिप्पणी और आदेश
जस्टिस ए. मुहम्मद मुश्ताक और जस्टिस हरिशंकर वी. मेनन की खंडपीठ ने कहा:
- टोल का उद्देश्य – टोल वसूली का मकसद सड़क की गुणवत्ता, सुरक्षा और यातायात की सुगमता बनाए रखना है। यदि इन शर्तों को पूरा नहीं किया जा रहा है, तो टोल वसूलना अनुचित है।
- NHAI की जिम्मेदारी – एनएचएआई और उसके एजेंटों का दायित्व है कि वे सड़क पर बाधाओं को दूर करें और सुरक्षित व निर्बाध यातायात उपलब्ध कराएं।
- अस्थायी रोक – एनएच 544 पर एडापल्ली-मन्नुथी खंड के बीच तत्काल प्रभाव से टोल वसूली चार सप्ताह के लिए रोक दी गई।
- केंद्र सरकार को निर्देश – चार सप्ताह के भीतर केंद्र सरकार को जनता की शिकायतों का समाधान करते हुए उचित निर्णय लेने का आदेश दिया गया।
कानूनी और जनहित महत्व
- न्याय का सिद्धांत – यह फैसला ‘सेवा के बिना शुल्क नहीं’ के सिद्धांत को मजबूत करता है। यदि सुविधा का स्तर न्यूनतम मानकों के अनुरूप नहीं है, तो शुल्क लेना अन्यायपूर्ण है।
- जनता के अधिकारों की रक्षा – वाहन चालक केवल उसी स्थिति में टोल चुकाने के लिए बाध्य हैं, जब उन्हें सुरक्षित, व्यवस्थित और समय की बचत करने वाली सड़क मिले।
- प्रशासनिक जवाबदेही – यह निर्णय सरकारी एजेंसियों और निजी टोल ऑपरेटरों पर जवाबदेही का दबाव बनाता है, ताकि वे सड़क रखरखाव को प्राथमिकता दें।
निष्कर्ष
केरल हाईकोर्ट का यह फैसला पूरे देश के लिए एक नजीर बन सकता है। यह न केवल जनता को राहत देता है, बल्कि टोल नीति में पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है। भविष्य में, सड़क उपयोगकर्ताओं को वही अधिकार मिलेंगे जिनका वे हकदार हैं—अच्छी सड़क, सुरक्षित सफर और उचित सेवाएं—तभी उनसे टोल शुल्क लिया जा सकेगा।