“खजुरिया झील पुनर्स्थापना मामले में सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप: बीएमसी को बरी करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश रद्द”

“खजुरिया झील पुनर्स्थापना मामले में सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप: बीएमसी को बरी करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश रद्द”


पूरा लेख:

भूमिका:
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने Municipal Corporation of Greater Mumbai and Others बनाम पंकज बाबूलाल कोटेचा एवं अन्य (2024-2025) मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट के वर्ष 2018 के आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें मुंबई महानगरपालिका (BMC) को 100 साल पुरानी खजुरिया झील को पुनर्स्थापित करने का निर्देश दिया गया था। यह झील एक प्राकृतिक जलाशय थी, जिसे नगर निगम द्वारा भरकर एक सार्वजनिक बगीचा निर्मित किया गया था।


मामले की पृष्ठभूमि:

  • खजुरिया झील, जो कि दादर-पश्चिम, मुंबई में स्थित थी, एक प्राचीन और प्राकृतिक झील थी।
  • मुंबई महानगरपालिका (BMC) ने इसे भरकर उस पर एक नगर उद्यान (municipal garden) विकसित कर दिया।
  • इसके विरुद्ध स्थानीय नागरिकों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं द्वारा याचिका दायर की गई, जिसके बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2018 में झील को मूल स्वरूप में पुनर्स्थापित करने का निर्देश दिया।

सुप्रीम कोर्ट में चुनौती:
BMC ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी, यह तर्क देते हुए कि:

  • झील वर्षों पहले स्थायी रूप से समतल कर दी गई थी।
  • वर्तमान में उस स्थान का सार्वजनिक उपयोग हो रहा है।
  • झील को पुनर्स्थापित करना न केवल अव्यवहारिक है, बल्कि इससे जनहित और सार्वजनिक संसाधनों की भी हानि होगी।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और निर्णय:

  1. व्यवहार्यता और सार्वजनिक हित:
    सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि अदालतों को ऐसे निर्देश देने में संयम बरतना चाहिए, जो व्यवहारिक रूप से असंभव या जनहित के प्रतिकूल हों।
  2. वर्तमान यथास्थिति का महत्व:
    चूंकि झील अब मौजूद नहीं है और वर्षों से उसका उपयोग एक सार्वजनिक उद्यान के रूप में हो रहा है, ऐसे में झील की बहाली करने का निर्देश अव्यवहारिक और सार्वजनिक संसाधनों का अनुचित उपयोग होता।
  3. हाईकोर्ट का आदेश रद्द:
    अदालत ने बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश रद्द करते हुए कहा कि अब झील को पुनर्स्थापित करने की आवश्यकता नहीं है, और BMC को पुनर्निर्माण से मुक्त किया गया।

न्यायिक महत्व:
यह निर्णय पर्यावरण संरक्षण बनाम व्यावहारिकता और जनहित के संतुलन को स्पष्ट करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में यह संदेश दिया कि पुरानी पर्यावरणीय स्थितियों को हर हाल में पुनर्स्थापित करना जरूरी नहीं है, विशेषकर जब उसका स्वरूप बदल चुका हो और वर्तमान में वह जनहित में उपयोग हो रहा हो।


निष्कर्ष:
“Municipal Corporation of Greater Mumbai बनाम पंकज बाबूलाल कोटेचा” मामला पर्यावरण संरक्षण, नगरीय योजना और न्यायिक सीमाओं के बीच संतुलन की मिसाल बनकर सामने आता है। यह स्पष्ट करता है कि अदालतों को निर्देश देते समय जमीनी हकीकत, व्यावहारिक बाधाएं और वर्तमान उपयोगिता को ध्यान में रखना चाहिए।