“क्वांटम कंप्यूटिंग और साइबर सुरक्षा: भविष्य की शक्ति बनाम डिजिटल खतरे”

“क्वांटम कंप्यूटिंग और साइबर सुरक्षा: भविष्य की शक्ति बनाम डिजिटल खतरे”


भूमिका

क्वांटम कंप्यूटिंग कंप्यूटर विज्ञान और भौतिकी के संगम से उत्पन्न एक ऐसी क्रांतिकारी तकनीक है जो पारंपरिक कंप्यूटिंग की सीमाओं को पार करने की क्षमता रखती है। यह तकनीक जहां समस्याओं को हल करने की अभूतपूर्व गति प्रदान करती है, वहीं वर्तमान साइबर सुरक्षा ढांचे को चुनौती भी देती है। क्वांटम कंप्यूटर पारंपरिक एन्क्रिप्शन विधियों को आसानी से तोड़ सकते हैं, जिससे वैश्विक डेटा संरचनाओं, बैंकिंग प्रणालियों, रक्षा तंत्र और निजी संचार में भारी संकट उत्पन्न हो सकता है।


1. क्वांटम कंप्यूटिंग: एक परिचय

क्वांटम कंप्यूटर “क्यूबिट्स” (Qubits) पर आधारित होते हैं, जो 0 और 1 दोनों अवस्थाओं को एक साथ बनाए रख सकते हैं (सुपरपोजिशन), तथा आपस में गहराई से जुड़े होते हैं (एंटैंगलमेंट)। इससे ये कंप्यूटर किसी भी समस्या को अनेक संभावनाओं के साथ समानांतर रूप से हल कर सकते हैं। यह शक्ति विशेष रूप से क्रिप्टोग्राफी, डाटा एनालिटिक्स, और रक्षा तकनीकों के लिए उपयोगी है।


2. पारंपरिक साइबर सुरक्षा की वर्तमान स्थिति

आज की साइबर सुरक्षा मुख्यतः RSA, AES और SHA जैसे एन्क्रिप्शन एल्गोरिद्म पर आधारित है, जो गणितीय कठिनाई (जैसे बहुत बड़े प्राइम नंबर का गुणनखंड निकालना) पर निर्भर करते हैं। पारंपरिक कंप्यूटरों के लिए इन्हें तोड़ना लगभग असंभव है — लेकिन क्वांटम कंप्यूटर के लिए नहीं।


3. क्वांटम खतरा: Shor’s Algorithm और एन्क्रिप्शन का अंत

Shor’s Algorithm, एक क्वांटम एल्गोरिद्म, बड़े संख्याओं को तेजी से तोड़ सकता है, जिससे RSA और ECC जैसी एन्क्रिप्शन प्रणालियाँ असुरक्षित हो जाएँगी। इससे सरकारों, बैंकों, क्लाउड सेवाओं, और संचार प्रणालियों की गोपनीयता खतरे में पड़ सकती है। इसे “क्वांटम अपोकैलिप्स” भी कहा जा रहा है।


4. Post-Quantum Cryptography (PQC): भविष्य की रक्षा प्रणाली

भविष्य की साइबर सुरक्षा के लिए वैज्ञानिक “पोस्ट-क्वांटम क्रिप्टोग्राफी” विकसित कर रहे हैं, जो ऐसे एन्क्रिप्शन सिस्टम हैं जिन्हें क्वांटम कंप्यूटर भी आसानी से नहीं तोड़ सकते। NIST (National Institute of Standards and Technology, USA) ऐसे सुरक्षित एल्गोरिद्म के मानकीकरण की दिशा में कार्य कर रहा है, जिनमें Lattice-based cryptography, Hash-based, और Multivariate polynomial प्रणालियाँ प्रमुख हैं।


5. कानूनी और नियामकीय चुनौतियाँ

(i) डेटा संरक्षण कानूनों की पुनर्रचना

क्वांटम खतरे को देखते हुए भारत के डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023 सहित सभी गोपनीयता कानूनों को “क्वांटम-रेडी” बनाना आवश्यक है।

(ii) निजता का उल्लंघन और दायित्व

यदि क्वांटम तकनीक से डेटा लीक होता है, तो दायित्व किसका होगा — डेटा स्टोर करने वाले का, सुरक्षा प्रणाली प्रदाता का, या क्वांटम तक पहुँच रखने वाली संस्था का?

(iii) अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता

क्वांटम कंप्यूटिंग की वैश्विक प्रकृति के कारण देशों को एक अंतरराष्ट्रीय क्वांटम सुरक्षा समझौता बनाना चाहिए, जैसा कि पहले परमाणु हथियारों पर हुआ।


6. भारत की स्थिति और तैयारी

भारत सरकार ने “राष्ट्रीय क्वांटम मिशन (NQM)” की शुरुआत की है, जिसमें क्वांटम टेक्नोलॉजी पर अनुसंधान और सुरक्षा हेतु ₹6000 करोड़ की योजना बनाई गई है। साथ ही, CERT-In जैसे साइबर सुरक्षा निकायों को क्वांटम खतरों के प्रति सचेत किया जा रहा है।


7. नैतिकता और गोपनीयता के प्रश्न

क्वांटम तकनीक के अत्यधिक शक्ति-संपन्न होने से यह आशंका बनी रहती है कि सरकारें या निजी संस्थान इसका दुरुपयोग कर सकती हैं। इस पर साइबर नैतिकता, निगरानी की सीमा और मानवाधिकारों की रक्षा जैसे मुद्दे भी गंभीर रूप से उभरते हैं।


निष्कर्ष

क्वांटम कंप्यूटिंग विज्ञान की अद्भुत उपलब्धि है, लेकिन इसके साथ आने वाला साइबर सुरक्षा संकट एक गंभीर वैश्विक चुनौती है। आवश्यकता है तकनीकी तैयारी, कानूनी सुधार, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और नैतिक दृष्टिकोण की। भविष्य की डिजिटल दुनिया को सुरक्षित रखने के लिए हमें आज ही एक क्वांटम-प्रूफ विधिक और तकनीकी ढांचा तैयार करना होगा।