क्रेडिट क्रिएशन (Credit Creation) की प्रक्रिया क्या है? बैंकिंग सेक्टर में इसका क्या महत्व है?

क्रेडिट क्रिएशन (Credit Creation) की प्रक्रिया और बैंकिंग सेक्टर में इसका महत्व:

क्रेडिट क्रिएशन बैंकिंग क्षेत्र की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसके द्वारा वाणिज्यिक बैंक अपने पास जमा धनराशि से कई गुना अधिक धन को उधार देने के रूप में सृजित करते हैं। यह प्रक्रिया न केवल बैंकों के लिए लाभकारी होती है, बल्कि यह राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में तरलता, निवेश और विकास को बढ़ाने के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। इस प्रक्रिया को समझने के लिए हम इसे दो हिस्सों में विभाजित कर सकते हैं: क्रेडिट क्रिएशन की प्रक्रिया और इसका बैंकिंग सेक्टर में महत्व


1. क्रेडिट क्रिएशन की प्रक्रिया:

क्रेडिट क्रिएशन की प्रक्रिया को समझने के लिए सबसे पहले हमें बैंकिंग प्रणाली के आधारभूत तत्वों को समझना होगा:

  1. प्राथमिक जमा (Primary Deposit): यह वह धनराशि है जो ग्राहक सीधे बैंक में जमा करता है। मान लीजिए एक ग्राहक ₹10,000 बैंक में जमा करता है। इस जमा राशि को प्राथमिक जमा कहा जाता है, जो बैंक के पास धन के रूप में उपलब्ध होती है।
  2. आरक्षित निधि (Reserve Requirement): केंद्रीय बैंक (जैसे भारतीय रिजर्व बैंक) बैंक को यह निर्देश देता है कि वे कुल जमा का एक निश्चित प्रतिशत अपने पास रखें, जिसे रिजर्व रेशियो (Reserve Ratio) कहते हैं। यह राशि बैंकों के पास नहीं रह सकती है और इसे केंद्रीय बैंक में जमा करना होता है। उदाहरण के लिए, अगर आरक्षित निधि 10% है, तो बैंक ₹10,000 का 10% यानी ₹1,000 केंद्रीय बैंक के पास रखेगा।
  3. ऋण देने की प्रक्रिया: अब बैंक के पास ₹9,000 शेष रहते हैं (₹10,000 में से ₹1,000 आरक्षित निधि के रूप में)। बैंक इस शेष राशि को बाजार में ऋण के रूप में उधार दे सकता है। मान लीजिए बैंक ₹9,000 का ऋण किसी ग्राहक को दे देता है।
  4. ऋण की पुनः जमा प्रक्रिया: जब बैंक ने ₹9,000 का ऋण किसी ग्राहक को दिया, तो यह राशि आमतौर पर उपभोक्ता के खाते में जमा हो जाती है। मान लीजिए यह ₹9,000 ग्राहक के खाते में जमा हो गया। अब यह ₹9,000 बैंक के पास एक नया प्राथमिक जमा बन जाता है, और बैंक को फिर से 10% आरक्षित निधि के रूप में ₹900 रखना होगा, जिससे ₹8,100 की और क्रेडिट दी जा सकती है।
  5. मल्टीप्लायर इफेक्ट (Multiplier Effect): इस प्रक्रिया को पुनः दोहराने से, बैंक कई गुना अधिक धन का सृजन कर सकते हैं। यदि बैंक आरक्षित निधि 10% रखता है, तो प्रत्येक नए ऋण देने के बाद, बैंकिंग प्रणाली में जितना धन जमा होता है, वह मूल जमा राशि का 10 गुना हो सकता है। इसे क्रेडिट मल्टीप्लायर कहा जाता है।

उदाहरण के तौर पर, अगर बैंक के पास प्रारंभ में ₹10,000 जमा होते हैं, तो बैंकों द्वारा किए गए ऋण और पुनः जमा के कारण कुल क्रेडिट सृजन कई गुना बढ़ सकता है। यदि आरक्षित निधि 10% है, तो कुल क्रेडिट सृजन की मात्रा ₹1,00,000 तक पहुंच सकती है।


2. बैंकिंग सेक्टर में क्रेडिट क्रिएशन का महत्व:

  1. आर्थिक विकास में योगदान: क्रेडिट क्रिएशन से बैंकों के पास अतिरिक्त धन होता है, जिसे वे औद्योगिक और वाणिज्यिक ऋणों के रूप में उद्योगों, व्यापारियों, किसानों और अन्य निवेशकों को प्रदान करते हैं। इससे नए परियोजनाओं और व्यवसायों को शुरू करने के लिए पूंजी मिलती है, जिससे आर्थिक विकास में वृद्धि होती है। उद्योगों के लिए पूंजी उपलब्ध होने से उत्पादन क्षमता बढ़ती है, जिससे रोजगार के अवसर भी उत्पन्न होते हैं।
  2. तरलता में वृद्धि: क्रेडिट क्रिएशन से बाजार में धन की तरलता बढ़ती है। अधिक धन उपलब्ध होने पर लोग और व्यवसाय अधिक आसानी से उधार ले सकते हैं और अपनी गतिविधियाँ चला सकते हैं। यह बाजार की मांग को बढ़ाता है और अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करता है।
  3. नौकरियों का सृजन: जब बैंकों द्वारा अधिक ऋण वितरित किया जाता है, तो उद्योगों को अधिक पूंजी मिलती है, जिससे उनके विस्तार और नए उद्यमों की स्थापना के अवसर पैदा होते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि अधिक नौकरी के अवसर उत्पन्न होते हैं, जिससे बेरोजगारी में कमी आती है।
  4. मुद्रास्फीति पर नियंत्रण: केंद्रीय बैंक द्वारा क्रेडिट क्रिएशन की प्रक्रिया पर नियंत्रण रखने के लिए, वह रिजर्व रेशियो को निर्धारित करता है। जब केंद्रीय बैंक चाहता है कि बाजार में ज्यादा धन न हो और मुद्रास्फीति पर नियंत्रण पाया जा सके, तो वह आरक्षित निधि के अनुपात को बढ़ा सकता है। इसी तरह, जब केंद्रीय बैंक चाहता है कि अर्थव्यवस्था में अधिक धन प्रवाहित हो और मंदी को रोका जा सके, तो वह इसे घटा सकता है।
  5. मौद्रिक नीति और नियंत्रण: केंद्रीय बैंक (जैसे भारतीय रिजर्व बैंक) द्वारा मौद्रिक नीति के अंतर्गत, क्रेडिट क्रिएशन पर नियंत्रण किया जाता है। रिजर्व रेशियो और बैंक दर जैसी नीतियों का उपयोग करके, केंद्रीय बैंक यह सुनिश्चित करता है कि क्रेडिट क्रिएशन संतुलित और स्थिर हो, ताकि मुद्रा प्रणाली में न तो अत्यधिक तरलता हो और न ही इसके अभाव का सामना करना पड़े।
  6. निर्यात और आयात को प्रभावित करना: क्रेडिट क्रिएशन से बैंकों के पास अधिक धन होता है, जिससे व्यापारियों और उद्योगपतियों को वाणिज्यिक लेन-देन के लिए पूंजी मिलती है। इससे निर्यात को बढ़ावा मिलता है, जिससे विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है। इसके विपरीत, अत्यधिक क्रेडिट क्रिएशन से आयात पर भी असर पड़ सकता है, क्योंकि सस्ती क्रेडिट सुविधा से उपभोक्ता अधिक विदेशी उत्पादों की खरीद कर सकते हैं।

निष्कर्ष:

क्रेडिट क्रिएशन बैंकों और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था दोनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यह आर्थिक विकास, तरलता, और रोजगार सृजन में योगदान देता है। हालांकि, इसे नियंत्रित करना और संतुलित रखना आवश्यक होता है, ताकि मुद्रास्फीति और अन्य आर्थिक संकटों से बचा जा सके। केंद्रीय बैंक और वाणिज्यिक बैंक दोनों की जिम्मेदारी है कि वे क्रेडिट क्रिएशन की प्रक्रिया को ऐसे तरीके से संचालित करें, जो राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के हित में हो।

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