क्या हिंदू पति भी मांग सकता है भरण-पोषण? – हिंदू विवाह अधिनियम की धाराओं 24 और 25 का विश्लेषण

 क्या हिंदू पति भी मांग सकता है भरण-पोषण? – हिंदू विवाह अधिनियम की धाराओं 24 और 25 का विश्लेषण


🔷 परिचय:

भारत में जब ‘मेंटेनेन्स’ या भरण-पोषण (Maintenance) की बात आती है, तो आम धारणा होती है कि केवल पत्नी ही पति से आर्थिक सहायता मांग सकती है। परंतु यह पूरी तरह से सही नहीं है। हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धाराएं 24 और 25 इस विषय में लैंगिक समानता को मान्यता देती हैं। यदि पति वास्तव में असमर्थ है और पत्नी आर्थिक रूप से सक्षम है, तो पति भी पत्नी से भरण-पोषण मांग सकता है।


⚖️ धारा 24 – मुकदमे के दौरान अंतरिम भरण-पोषण (Interim Maintenance):

नियतार्थ:
अगर पति या पत्नी में से कोई एक इस स्थिति में नहीं है कि वह मुकदमे के दौरान अपना खर्च उठा सके, तो वह अदालत से अंतरिम भरण-पोषण (interim maintenance) और मुकदमे का खर्च मांग सकता है।

👉 यह धारा लिंग-निरपेक्ष (gender-neutral) है – यानी यह केवल पत्नी नहीं, बल्कि पति पर भी लागू होती है।

शर्तें:

  • संबंधित पक्ष खुद का खर्च वहन करने में असमर्थ हो।
  • दूसरा पक्ष आर्थिक रूप से सक्षम हो।
  • मामला अदालत में विचाराधीन हो (जैसे – तलाक, पृथक्करण, परित्याग आदि)।

उदाहरण:
अगर कोई पति बेरोजगार है या बीमार है और पत्नी अच्छी नौकरी करती है, तो वह मुकदमे के दौरान धारा 24 के अंतर्गत अंतरिम मेंटनेंस मांग सकता है।


⚖️ धारा 25 – अंतिम भरण-पोषण (Permanent Alimony):

नियतार्थ:
धारा 25 के तहत अदालत विवाह समाप्त होने के बाद, पति या पत्नी में से किसी एक को स्थायी भरण-पोषण (permanent alimony) देने का आदेश दे सकती है।

अदालत इन बातों पर विचार करती है:

  • दोनों पक्षों की आय और संपत्ति
  • याचिकाकर्ता की आवश्यकता और जीवन-शैली
  • विवाह की अवधि
  • दोनों पक्षों का आचरण

👉 इस धारा के तहत भी पति या पत्नी कोई भी स्थायी भरण-पोषण के लिए आवेदन कर सकता है


📚 महत्वपूर्ण निर्णय (Case Laws):

1. Kanchan v. Kamalendra (1992):

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि अगर पत्नी आय अर्जित कर रही है और पति असमर्थ है, तो पति को भी मेंटनेंस का अधिकार है

2. Shailja & Anr. v. Khobbanna (2018, SC):

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि महिलाएं कमाती हैं या नहीं – यह महत्वपूर्ण है, लेकिन अगर पुरुष असमर्थ है तो वह भी मेंटनेंस मांग सकता है।


🧾 कानूनी प्रक्रिया:

  1. संबंधित पति परिवार न्यायालय में धारा 24 या 25 के तहत आवेदन देता है।
  2. कोर्ट दोनों पक्षों की आय, खर्च, संपत्ति, ज़रूरत आदि का परीक्षण करती है।
  3. न्यायाधीश अपनी विवेकशीलता से अंतरिम या स्थायी भरण-पोषण तय करता है।

📌 महत्वपूर्ण बातें:

  • यह एक लैंगिक समानता पर आधारित प्रावधान है।
  • भरण-पोषण की मांग केवल महिला का अधिकार नहीं है।
  • अदालत सिर्फ इस बात को देखती है कि कौन असमर्थ है और कौन सक्षम है

गलतफहमी से बचें:

मिथक सच्चाई
मेंटनेंस सिर्फ पत्नी को मिलती है। पति भी मांग सकता है यदि वह असमर्थ हो।
कमाने वाला पुरुष कभी मेंटनेंस नहीं मांग सकता। यदि पत्नी अधिक कमा रही है और पति असहाय है, तो मांग सकता है।
कोर्ट हमेशा पत्नी को ही भरण-पोषण देती है। कोर्ट दोनों पक्षों की परिस्थिति देखकर निर्णय लेती है।

🔚 निष्कर्ष:

हिंदू विवाह अधिनियम की धाराएं 24 और 25 लिंग आधारित नहीं, बल्कि योग्यता आधारित हैं। ये प्रावधान सुनिश्चित करते हैं कि पति या पत्नी में से जो भी असमर्थ हो, उसे न्याय मिले और उसकी गरिमा बनी रहे। ऐसे मामलों में अदालत की भूमिका संतुलन बनाए रखने की होती है, न कि किसी पक्ष को विशेषाधिकार देने की।