“क्या विक्रेता को बिना हानि के बयाना राशि जब्त करने का अधिकार है? – केरल हाईकोर्ट के निर्णय की व्यापक व्याख्या”

शीर्षक: “क्या विक्रेता को बिना हानि के बयाना राशि जब्त करने का अधिकार है? – केरल हाईकोर्ट के निर्णय की व्यापक व्याख्या”


भूमिका
भारतीय संविदा कानून (Indian Contract Act) के अंतर्गत जब दो पक्ष आपस में किसी संपत्ति के लेनदेन हेतु करार करते हैं, तो क्रेता द्वारा अक्सर एक बयाना राशि (Earnest Money) दी जाती है, जो यह संकेत देती है कि वह संपत्ति खरीदने के प्रति गंभीर है। यह प्रथा आमतौर पर सभी संपत्ति अनुबंधों में अपनाई जाती है और लगभग हर एग्रीमेंट में यह शर्त जोड़ी जाती है कि यदि क्रेता सौदे को पूरा नहीं करता है, तो विक्रेता बयाना राशि को जब्त कर सकता है।

लेकिन क्या विक्रेता को यह अधिकार हर परिस्थिति में प्राप्त है, चाहे उसे कोई वास्तविक क्षति हुई हो या नहीं? केरल हाईकोर्ट के हालिया निर्णय Dr. Mathew Jo बनाम Lijo Joseph (RFA No. 477/2016, दिनांक 28.07.2025) में इस सवाल का महत्वपूर्ण उत्तर दिया गया है।


प्रकरण का सार
इस मामले में क्रेता ने एक संपत्ति की खरीद के लिए बयाना राशि दी थी। बाद में, किसी कारणवश उसने करार की पूर्ति नहीं की। विक्रेता ने यह कहकर बयाना राशि जब्त कर ली कि करार के अनुसार उसे ऐसा करने का अधिकार था। लेकिन, अदालत ने यह देखा कि:

  • विक्रेता को कोई वास्तविक हानि या नुकसान नहीं हुआ था।
  • संपत्ति का मूल्य बढ़ चुका था, जिससे विक्रेता को लाभ की स्थिति थी।
  • करार के उल्लंघन से कोई आर्थिक क्षति नहीं हुई थी।

इन तथ्यों के आधार पर केरल हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि:

“यदि विक्रेता को वास्तविक हानि नहीं हुई है, तो वह केवल करार की शर्त के आधार पर बयाना राशि को जब्त नहीं कर सकता।”


कानूनी सिद्धांत: Forfeiture of Earnest Money

यह सिद्धांत धारा 74 (Section 74) के अंतर्गत आता है, जो पूर्वनिर्धारित क्षतिपूर्ति (liquidated damages) के बारे में है। इसमें यह कहा गया है कि:

“यदि किसी अनुबंध में उल्लंघन पर एक निश्चित राशि तय की गई हो, तो अदालत उस नुकसान की भरपाई उतनी ही राशि तक कर सकती है, जितनी वास्तव में उस उल्लंघन से हुई हो।”

इसका अर्थ:
केवल करार में शर्त होने से बयाना जब्त नहीं की जा सकती। यह तभी न्यायसंगत होगा जब:

  • करार का उल्लंघन हो, और
  • विक्रेता को वास्तव में नुकसान या हानि हुई हो।

Dr. Mathew Jo बनाम Lijo Joseph: मुख्य बिंदु

  1. बिना हानि के राशि जब्ती अनुचित
    अदालत ने कहा कि बयाना राशि का उद्देश्य यह नहीं है कि विक्रेता अनुचित रूप से लाभ कमाए। यदि सौदे में असफलता से विक्रेता को कोई नुकसान नहीं होता, तो वह क्रेता द्वारा दी गई राशि को अपने पास नहीं रख सकता।
  2. मूल्य वृद्धि को माना गया लाभ
    अगर संपत्ति का मूल्य करार की विफलता के पश्चात बढ़ गया है, तो विक्रेता को असल में कोई नुकसान नहीं, बल्कि लाभ हुआ है।
  3. Specific Performance से इनकार
    चूंकि क्रेता करार के लिए तैयार नहीं था, Specific Performance का सवाल ही नहीं उठता, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि विक्रेता बयाना जब्त कर ले, बिना हानि सिद्ध किए।

व्यावहारिक दृष्टिकोण

भारत में अधिकतर विक्रेताओं द्वारा तैयार किए गए करारों में यह पंक्ति लगभग अनिवार्य रूप से होती है:

“यदि क्रेता करार की पालना नहीं करता है, तो विक्रेता बयाना राशि जब्त कर सकता है।”

हालाँकि, केरल हाईकोर्ट के इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि ऐसी शर्त स्वतः वैध नहीं है। हर ऐसे मामले में न्यायालय को देखना होगा कि क्या वास्तविक क्षति हुई है। यदि नहीं, तो राशि लौटाना होगा।


निष्कर्ष

केरल हाईकोर्ट का यह निर्णय बयाना राशि जब्ती के दुरुपयोग पर एक कानूनी रोक की तरह कार्य करता है। यह न केवल संपत्ति कानून में संतुलन लाता है बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि करार की शर्तों का प्रयोग अनुचित लाभ कमाने के लिए नहीं किया जाए

इस निर्णय का सार यह है:

“केवल करार की शर्त के आधार पर बयाना राशि को जब्त नहीं किया जा सकता जब तक कि विक्रेता को वास्तविक क्षति या हानि न हुई हो।”


न्यायिक दृष्टांत की शक्ति
Dr. Mathew Jo बनाम Lijo Joseph का यह फैसला आने वाले वर्षों में भारतीय संपत्ति लेनदेन और अनुबंध विवादों में प्रमुख संदर्भ बिंदु बनेगा।