क्या भारत को एक समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) की आवश्यकता है? – विविधता में एकता बनाम व्यक्तिगत स्वतंत्रता की चुनौती

शीर्षक: क्या भारत को एक समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) की आवश्यकता है? – विविधता में एकता बनाम व्यक्तिगत स्वतंत्रता की चुनौती

परिचय
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 44 राज्य को निर्देश देता है कि वह नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने का प्रयास करे। यह विषय दशकों से भारत में राजनीतिक, सामाजिक और कानूनी बहस का केंद्र रहा है। समान नागरिक संहिता का उद्देश्य सभी धर्मों के लोगों के लिए विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और गोद लेने जैसे मामलों में एक समान कानून लागू करना है। यह लेख UCC की आवश्यकता, संभावनाएं और उससे जुड़ी चुनौतियों का व्यापक विश्लेषण करता है।

समान नागरिक संहिता की आवश्यकता क्यों?

  1. समानता का अधिकार – भारतीय संविधान सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समानता की गारंटी देता है। धार्मिक आधार पर विभिन्न व्यक्तिगत कानून लागू होना इस समानता का उल्लंघन करता है।
  2. लैंगिक न्याय – कुछ व्यक्तिगत कानूनों में महिलाओं के अधिकार सीमित हैं। UCC महिलाओं को समान अधिकार देकर लैंगिक न्याय सुनिश्चित कर सकता है।
  3. राष्ट्रीय एकता और अखंडता – एक समान कानून सभी नागरिकों को एक राष्ट्रीय पहचान से जोड़ता है और साम्प्रदायिक विभाजन को कम करता है।
  4. कानूनी सरलता और पारदर्शिता – अलग-अलग कानूनों के बजाय एक समरूप कानून नागरिकों के लिए अधिक सरल और समझने योग्य होगा।

विरोध के तर्क

  1. धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप – कुछ समुदाय इसे अपने धार्मिक अधिकारों पर हमले के रूप में देखते हैं।
  2. संविधान की मूल भावना – आलोचकों का तर्क है कि भारत की विविधता और बहुलता की भावना को UCC से खतरा है।
  3. राजनीतिक उद्देश्य – कई बार UCC के प्रस्ताव को एक विशेष राजनीतिक एजेंडा माना गया है, जिससे इसका उद्देश्य संदेह के घेरे में आ जाता है।
  4. संवेदनशीलता का प्रश्न – समाज के विभिन्न वर्गों में धार्मिक परंपराएं गहराई से जुड़ी होती हैं, जिनका एक झटके में परिवर्तन सामाजिक विद्रोह का कारण बन सकता है।

वर्तमान स्थिति और न्यायपालिका की भूमिका
सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में समान नागरिक संहिता को लागू करने की आवश्यकता पर बल दिया है, जैसे कि शाह बानो मामला (1985), सरला मुद्गल बनाम भारत संघ (1995) और जलीखां बनाम केरल राज्य (2022) आदि में। इसके बावजूद अभी तक कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है।

गोवा मॉडल
गोवा भारत का एकमात्र राज्य है जहाँ एक प्रकार की समान नागरिक संहिता लागू है। यह उदाहरण UCC के सफल कार्यान्वयन की एक मिसाल पेश करता है, जिसे बाकी देश में अपनाया जा सकता है।

समाधान और सुझाव

  1. चरणबद्ध क्रियान्वयन – पहले स्वैच्छिक रूप से समान कानूनों को अपनाने को प्रोत्साहित किया जाए।
  2. सर्वसम्मति बनाना – धार्मिक नेताओं, सामाजिक संगठनों और जनता के बीच संवाद से सहमति बनाई जाए।
  3. जागरूकता और शिक्षा – UCC के उद्देश्य और लाभ को स्पष्ट रूप से समझाना आवश्यक है।
  4. महिला संगठनों की भागीदारी – महिलाओं को इस प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष
भारत जैसे विविधता-सम्पन्न देश में समान नागरिक संहिता लागू करना एक संवेदनशील और जटिल कार्य है। लेकिन अगर इसे संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप, सामाजिक संवेदनशीलता और सभी समुदायों के विश्वास को कायम रखते हुए लागू किया जाए, तो यह सामाजिक सुधार और न्याय की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम साबित हो सकता है। भारत को समान नागरिक संहिता की आवश्यकता अवश्य है, लेकिन इसे लागू करने की प्रक्रिया समावेशी, संतुलित और न्यायपूर्ण होनी चाहिए।