“क्या बाघ, हाथी, बंदर को मारना समाधान है? — केरल सरकार के प्रस्तावित कानून बदलाव पर उठते सवाल”

शीर्षक: “क्या बाघ, हाथी, बंदर को मारना समाधान है? — केरल सरकार के प्रस्तावित कानून बदलाव पर उठते सवाल”


भूमिका:

भारत जैव विविधता का धनी देश है, जहां वन्यजीव संरक्षण को संवैधानिक और नैतिक जिम्मेदारी माना जाता है। परंतु हाल ही में केरल सरकार द्वारा उठाया गया कदम — जिसमें बाघ, हाथी और बंदर जैसे संरक्षित वन्यजीवों को मारने की अनुमति देने हेतु कानून में बदलाव की मांग की गई है, — ने देशभर में एक नई बहस छेड़ दी है: क्या मानव जीवन की रक्षा के लिए वन्यजीवों की बलि दी जा सकती है?


क्या है केरल सरकार का प्रस्ताव?

केरल सरकार ने केंद्र सरकार से वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में संशोधन की मांग की है, जिससे उन्हें आपातकालीन स्थितियों में शेड्यूल-1 में सूचीबद्ध जानवरों को भी मारने का अधिकार मिले — जिनमें बाघ, हाथी और रीसस बंदर शामिल हैं।

राज्य सरकार का तर्क है कि:

“मौजूदा कानून इतने जटिल और धीमे हैं कि वन्यजीवों द्वारा की जा रही जान-माल की क्षति को रोकना लगभग असंभव हो गया है।”


कौन से जानवर आते हैं शेड्यूल-1 में?

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत, शेड्यूल-1 में उन जानवरों को रखा गया है जिन्हें सबसे उच्च स्तर की कानूनी सुरक्षा प्राप्त है। इनमें शामिल हैं:

  • बाघ (Tiger)
  • हाथी (Elephant)
  • गांधी बंदर / रीसस मकाक (Rhesus macaque)
  • गैंडा, तेंदुआ, शेर, हिम तेंदुआ आदि

इन जानवरों को मारना केवल राष्ट्रपति या केंद्र सरकार की विशेष अनुमति से ही संभव है, और वह भी वैज्ञानिक/अत्यंत आपातकालीन आधार पर।


केरल सरकार की चिंता:

राज्य के वन विभाग और अधिकारियों का कहना है कि:

  1. ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में बाघ और हाथियों के हमले आम हो गए हैं।
  2. रीसस बंदरों द्वारा कृषि फसलें नष्ट करना और आम लोगों पर हमला करना एक नियमित समस्या बन चुकी है।
  3. मौजूदा प्रक्रिया इतनी धीमी और नौकरशाही से भरी है कि जब तक अनुमति मिलती है, तब तक काफी नुकसान हो चुका होता है।
  4. जनता में आक्रोश और प्रशासन में अक्षमता की छवि बन रही है।

विपक्ष और वन्यजीव संरक्षणवादियों की चिंता:

पर्यावरणविदों और संरक्षण विशेषज्ञों का कहना है कि:

  • यह कानून वन्यजीवों को मारने का लाइसेंस बन सकता है।
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष का समाधान हत्या नहीं, बल्कि प्रबंधन और संरक्षण तकनीकों में सुधार है।
  • ऐसा कदम अंतरराष्ट्रीय संरक्षण संधियों और भारत की वैश्विक छवि के खिलाफ होगा।
  • यह पर्यावरणीय असंतुलन और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरा बन सकता है।

मानव-वन्यजीव संघर्ष: कारण और समाधान

इस बढ़ते टकराव के पीछे कई कारण हैं:

  • वनों का क्षरण और अतिक्रमण
  • प्राकृतिक आवासों का खंडन
  • बढ़ती जनसंख्या और शहरी विस्तार

समाधान में शामिल हो सकते हैं:

  • बेहतर वन्यजीव निगरानी प्रणाली
  • बाड़बंदी, इलेक्ट्रिक फेंसिंग, और जैविक अवरोध
  • स्थानांतरण और पुनर्वास नीति
  • प्रभावित लोगों को समय पर मुआवजा

निष्कर्ष:

केरल सरकार की चिंता वास्तविक हो सकती है, लेकिन उसका समाधान वन्यजीवों की हत्या नहीं हो सकता। कानून बदलने की बजाय, जरूरी है कि प्रभावी, संवेदनशील और दीर्घकालिक रणनीति तैयार की जाए। भारत जैसे देश, जिसने “पशु-पक्षी और पेड़ों को भी देवता माना है”, वहां किसी भी कानून में बदलाव सिर्फ प्रशासनिक सुविधा के लिए नहीं, बल्कि समग्र नैतिक और पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण से होना चाहिए।