शीर्षक:
“कोर्ट को ‘निचली’ कहना संविधान मूल्यों के खिलाफ : सुप्रीम कोर्ट”
लंबा लेख:
नई दिल्ली। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक और संवैधानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए स्पष्ट किया है कि किसी भी अदालत को ‘निचली अदालत’ कहना भारतीय संविधान में निहित न्याय के सिद्धांतों और मूल्यों के विपरीत है। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने 1981 के एक हत्या के मामले में दोषमुक्ति सुनाते समय की।
पीठ ने कहा कि हम अपने 8 फरवरी 2024 के आदेश में दिए गए निर्देश को फिर से दोहराते हैं कि ट्रायल कोर्ट (Trial Court) के रिकॉर्ड को “निचली अदालत का रिकॉर्ड” (Lower Court Record) नहीं कहा जाना चाहिए। यह शब्दावली केवल पदानुक्रमिक संरचना को दर्शाने के उद्देश्य से प्रयुक्त हो सकती है, किंतु इससे यह संकेत मिलता है कि निचली अदालतें महत्वहीन या कमज़ोर हैं, जो कि संविधान द्वारा गारंटीकृत न्यायिक गरिमा के अनुरूप नहीं है।
न्यायमूर्ति ओका ने अपने फैसले में लिखा कि भारत का संविधान प्रत्येक स्तर की अदालत को समान गरिमा और सम्मान प्रदान करता है। ट्रायल कोर्ट संविधान और कानून के अधीन कार्य करते हैं, और न्यायिक प्रणाली की मूलभूत इकाई हैं। अतः उन्हें ‘निचली’ कहकर संबोधित करना न्यायपालिका के प्रति असम्मान का प्रतीक है।
पृष्ठभूमि:
यह टिप्पणी उस समय आई जब कोर्ट एक 1981 के हत्या के मामले में दो व्यक्तियों को आजीवन कारावास की सजा से बरी कर रही थी। मामले की सुनवाई के दौरान रिकॉर्ड को “निचली अदालत के रिकॉर्ड” के रूप में संदर्भित किया गया था, जिस पर न्यायालय ने गंभीर आपत्ति जताई।
न्यायिक निर्देश:
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से निर्देशित किया कि सभी संबंधित न्यायिक, विधिक एवं प्रशासनिक अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भविष्य में किसी भी ट्रायल कोर्ट या अधीनस्थ न्यायालय को “निचली अदालत” न कहा जाए। इसके स्थान पर “ट्रायल कोर्ट”, “अधीनस्थ न्यायालय” या “जिला न्यायालय” जैसे सम्मानजनक और उपयुक्त शब्दों का उपयोग किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष:
यह निर्णय न केवल भाषाई संवेदनशीलता की ओर ध्यान आकर्षित करता है, बल्कि भारतीय न्यायपालिका में प्रत्येक स्तर पर कार्यरत संस्थाओं की गरिमा और अधिकार की रक्षा भी करता है। यह निर्देश न्यायपालिका की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और न्याय के समतामूलक सिद्धांतों की पुष्टि करता है, जो कि भारतीय संविधान की मूल भावना है।