कॉर्पोरेट गवर्नेंस: सिद्धांत, महत्व और भारतीय परिप्रेक्ष्य
प्रस्तावना
कॉर्पोरेट जगत आधुनिक अर्थव्यवस्था का मेरुदंड है। कंपनियाँ न केवल पूँजी जुटाने और निवेश के साधन प्रदान करती हैं, बल्कि समाज में रोजगार, उत्पादन और नवाचार की भी वाहक होती हैं। ऐसे में यह आवश्यक है कि कंपनियों के संचालन में पारदर्शिता, जवाबदेही और निष्पक्षता बनी रहे। इसी विचार को मूर्त रूप देता है कॉर्पोरेट गवर्नेंस (Corporate Governance)। यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अंतर्गत कंपनियों के संचालन और प्रबंधन में नैतिकता, पारदर्शिता तथा जिम्मेदारी का समावेश सुनिश्चित किया जाता है।
भारत जैसे विकासशील देश में, जहाँ तेजी से औद्योगिकरण और वैश्विक निवेश हो रहा है, कॉर्पोरेट गवर्नेंस का महत्व और बढ़ जाता है।
कॉर्पोरेट गवर्नेंस की परिभाषा
कॉर्पोरेट गवर्नेंस को सरल शब्दों में इस प्रकार समझा जा सकता है कि यह कंपनी के प्रबंधन, निदेशक मंडल, शेयरधारकों, कर्मचारियों, ग्राहकों और समाज के बीच एक संतुलित संबंध स्थापित करता है।
कडबरी समिति (Cadbury Committee, 1992) के अनुसार:
“Corporate Governance is the system by which companies are directed and controlled.”
अर्थात् कॉर्पोरेट गवर्नेंस वह प्रणाली है जिसके माध्यम से कंपनियों का निर्देशन और नियंत्रण किया जाता है।
कॉर्पोरेट गवर्नेंस के प्रमुख सिद्धांत
कॉर्पोरेट गवर्नेंस का आधार कुछ प्रमुख सिद्धांतों पर टिका है:
- पारदर्शिता (Transparency):
सभी वित्तीय और प्रबंधकीय सूचनाएँ शेयरधारकों व हितधारकों को सही समय पर उपलब्ध कराई जाएँ। - जवाबदेही (Accountability):
निदेशक मंडल और प्रबंधन अपने निर्णयों व कार्यों के लिए उत्तरदायी हों। - निष्पक्षता (Fairness):
सभी हितधारकों जैसे शेयरधारक, निवेशक, कर्मचारी, ग्राहक व समाज के साथ समान व्यवहार किया जाए। - जिम्मेदारी (Responsibility):
कंपनी केवल लाभ कमाने तक सीमित न रहे, बल्कि समाज और पर्यावरण के प्रति भी अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करे। - कानूनी अनुपालन (Compliance):
कंपनी को संबंधित सभी कानूनी प्रावधानों, विनियमों और मानकों का पालन करना आवश्यक है।
कॉर्पोरेट गवर्नेंस का महत्व
कॉर्पोरेट गवर्नेंस किसी भी देश की आर्थिक व्यवस्था को मजबूत बनाने में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इसके प्रमुख महत्व इस प्रकार हैं:
- निवेशकों का विश्वास:
पारदर्शी और उत्तरदायी गवर्नेंस से निवेशक कंपनी पर भरोसा करते हैं। - पूँजी जुटाने में आसानी:
अच्छी गवर्नेंस वाली कंपनियाँ घरेलू व विदेशी पूँजी आकर्षित करती हैं। - घोटालों की रोकथाम:
पारदर्शी प्रणाली भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी और वित्तीय अनियमितताओं को रोकती है। - ब्रांड वैल्यू में वृद्धि:
जिम्मेदार और पारदर्शी कंपनियाँ समाज व ग्राहकों का सम्मान अर्जित करती हैं। - दीर्घकालिक स्थिरता:
केवल अल्पकालिक लाभ पर ध्यान न देकर कंपनी की दीर्घकालिक वृद्धि और सामाजिक जिम्मेदारी सुनिश्चित होती है।
भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस का विकास
भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस की अवधारणा का विकास कई चरणों में हुआ।
1. कंपनी अधिनियम, 1956 और 2013
भारत में कंपनियों के संचालन और प्रबंधन के लिए सबसे महत्वपूर्ण कानून कंपनी अधिनियम रहा है।
- 1956 का अधिनियम अधिक पारंपरिक था।
- 2013 का नया अधिनियम (Companies Act, 2013) आधुनिक गवर्नेंस मानकों के अनुरूप बनाया गया। इसमें स्वतंत्र निदेशकों, ऑडिट समिति, CSR (Corporate Social Responsibility) जैसी व्यवस्थाएँ शामिल की गईं।
2. SEBI की भूमिका
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने सूचीबद्ध कंपनियों के लिए गवर्नेंस से संबंधित कई दिशानिर्देश जारी किए हैं, जैसे:
- लिस्टिंग एग्रीमेंट का क्लॉज़ 49
- SEBI (LODR) Regulations, 2015
3. नारायण मूर्ति समिति (2003)
SEBI ने इस समिति का गठन कॉर्पोरेट गवर्नेंस में सुधार हेतु किया। समिति ने निदेशक मंडल की स्वतंत्रता, ऑडिट समिति की भूमिका और पारदर्शिता पर जोर दिया।
4. CSR की अवधारणा
कंपनी अधिनियम, 2013 में कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) को अनिवार्य कर दिया गया। 500 करोड़ से अधिक टर्नओवर वाली कंपनियों को अपने लाभ का 2% सामाजिक कार्यों पर खर्च करना होता है।
भारतीय परिप्रेक्ष्य में चुनौतियाँ
यद्यपि भारत ने कॉर्पोरेट गवर्नेंस के क्षेत्र में लंबी प्रगति की है, फिर भी कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं:
- कॉर्पोरेट घोटाले:
सत्यम घोटाला (2009) जैसी घटनाएँ गवर्नेंस पर प्रश्नचिह्न लगाती हैं। - निष्पक्षता की कमी:
कई बार बड़े शेयरधारक छोटे निवेशकों के हितों की अनदेखी कर लेते हैं। - नियामक ढाँचे की जटिलता:
अनेक कानूनों और विनियमों के बीच सामंजस्य की कमी रहती है। - नैतिकता का अभाव:
केवल कानूनी अनुपालन पर्याप्त नहीं, बल्कि नैतिकता और ईमानदारी का होना भी आवश्यक है। - पारदर्शिता की कमी:
कई कंपनियाँ वित्तीय रिपोर्टिंग में हेरफेर करती हैं।
कॉर्पोरेट गवर्नेंस में सुधार के उपाय
भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस को सुदृढ़ बनाने के लिए निम्न उपाय किए जा सकते हैं:
- स्वतंत्र निदेशकों की भूमिका मजबूत करना।
- ऑडिट प्रक्रिया को अधिक कठोर और पारदर्शी बनाना।
- निवेशकों की सुरक्षा हेतु SEBI के अधिकारों को और बढ़ाना।
- CSR गतिविधियों की प्रभावी मॉनिटरिंग।
- कॉर्पोरेट घोटालों में दोषियों को शीघ्र और कठोर दंड।
- ई-गवर्नेंस और तकनीकी साधनों का प्रयोग।
- कंपनी प्रबंधन में नैतिक मूल्यों को प्रोत्साहित करना।
निष्कर्ष
कॉर्पोरेट गवर्नेंस किसी भी कंपनी और देश की आर्थिक समृद्धि के लिए आधारशिला है। भारत ने कंपनी अधिनियम, SEBI के नियमन और CSR जैसी व्यवस्थाओं के माध्यम से इस दिशा में सराहनीय प्रगति की है। फिर भी, घोटाले, पारदर्शिता की कमी और नैतिक मूल्यों के अभाव जैसी चुनौतियाँ अब भी बनी हुई हैं।
यदि कंपनियाँ केवल लाभ कमाने के बजाय समाज और हितधारकों की जिम्मेदारी को भी समान रूप से महत्व दें, तो भारतीय कॉर्पोरेट जगत वैश्विक स्तर पर एक मजबूत और विश्वसनीय पहचान बना सकता है।
1. CSR का अर्थ और परिभाषा क्या है?
कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) का अर्थ है कि कंपनियाँ केवल लाभ कमाने तक सीमित न रहें, बल्कि समाज और पर्यावरण के प्रति भी अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करें। CSR वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से कंपनियाँ शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी उन्मूलन, महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण संरक्षण आदि कार्यों में सहयोग करती हैं। कंपनी अधिनियम, 2013 ने CSR को कानूनी रूप से अनिवार्य किया है।
2. CSR का उद्देश्य क्या है?
CSR का मुख्य उद्देश्य समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाना है। इसके अंतर्गत गरीबी हटाना, शिक्षा को बढ़ावा देना, स्वास्थ्य सेवाओं का विकास करना, स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण को मजबूत करना शामिल है। साथ ही यह कंपनी और समाज के बीच विश्वास और सहयोग का संबंध स्थापित करता है।
3. भारत में CSR कब अनिवार्य हुआ?
भारत CSR को अनिवार्य बनाने वाला विश्व का पहला देश है। कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 135 के अंतर्गत 2014 से CSR को कानूनी रूप से लागू किया गया। इसके अनुसार, कुछ विशेष वित्तीय मानदंड पूरा करने वाली कंपनियों को CSR गतिविधियों पर अपने औसत शुद्ध लाभ का कम से कम 2% खर्च करना आवश्यक है।
4. CSR लागू होने के लिए कंपनी की पात्रता क्या है?
कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 135 के अनुसार CSR उन्हीं कंपनियों पर लागू होता है जिनका:
- नेट वर्थ 500 करोड़ रुपये या उससे अधिक हो, या
- वार्षिक टर्नओवर 1000 करोड़ रुपये या उससे अधिक हो, या
- शुद्ध लाभ 5 करोड़ रुपये या उससे अधिक हो।
5. CSR समिति का गठन कैसे किया जाता है?
CSR लागू होने वाली कंपनी को निदेशक मंडल में CSR समिति गठित करनी होती है। इसमें कम से कम 3 निदेशक शामिल होते हैं, जिनमें से एक स्वतंत्र निदेशक होना आवश्यक है। यह समिति CSR नीतियाँ बनाती है, परियोजनाएँ तय करती है और उनके क्रियान्वयन एवं मॉनिटरिंग का काम करती है।
6. CSR गतिविधियों के अंतर्गत कौन-कौन से क्षेत्र आते हैं?
कंपनी अधिनियम की अनुसूची VII में CSR के लिए निम्न क्षेत्र तय किए गए हैं: गरीबी उन्मूलन, भूख और कुपोषण से मुक्ति, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ, लैंगिक समानता, महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता, ग्रामीण विकास और आपदा प्रबंधन आदि।
7. CSR से कंपनियों को क्या लाभ होता है?
CSR से कंपनियों की ब्रांड वैल्यू और प्रतिष्ठा बढ़ती है। निवेशक और ग्राहक सामाजिक रूप से जिम्मेदार कंपनियों पर अधिक भरोसा करते हैं। साथ ही CSR कर्मचारियों का मनोबल बढ़ाता है और दीर्घकालिक व्यावसायिक स्थिरता सुनिश्चित करता है।
8. CSR से समाज को क्या लाभ होता है?
CSR शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, महिला सशक्तिकरण और ग्रामीण विकास जैसे क्षेत्रों में प्रत्यक्ष लाभ पहुँचाता है। यह रोजगार के अवसर पैदा करता है, गरीबी घटाता है और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देता है। इससे समाज में समानता और सतत विकास की दिशा में प्रगति होती है।
9. CSR के सामने प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
CSR से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ हैं:
- कई कंपनियाँ इसे केवल दिखावा मानकर औपचारिकता निभाती हैं।
- ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों तक इसका लाभ नहीं पहुँच पाता।
- पारदर्शिता और मॉनिटरिंग की कमी रहती है।
- सामाजिक कार्यों को प्रभावी ढंग से करने के लिए विशेषज्ञता का अभाव होता है।
10. CSR को अधिक प्रभावी बनाने के उपाय क्या हैं?
CSR को प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक है कि कंपनियाँ इसे केवल कानूनी दायित्व न मानें, बल्कि नैतिक जिम्मेदारी समझें। CSR गतिविधियों की सही मॉनिटरिंग हो, ग्रामीण व पिछड़े क्षेत्रों पर ध्यान दिया जाए, NGO और सरकार के साथ मिलकर कार्य किया जाए और CSR रिपोर्टिंग पारदर्शी बनाई जाए।