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“कॉपीराइट बनाम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: ANI बनाम मोचक मंगल मामला और भारत में डिजिटल सेंसरशिप की नई लड़ाई”

“कॉपीराइट बनाम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: ANI बनाम मोचक मंगल मामला और भारत में डिजिटल सेंसरशिप की नई लड़ाई”


प्रस्तावना

भारत में डिजिटल युग ने सूचना और विचारों के प्रसार को अभूतपूर्व गति दी है। सोशल मीडिया, यूट्यूब, और स्वतंत्र पत्रकारिता के उदय ने लोकतंत्र की उस भावना को मजबूत किया है, जो नागरिकों को सवाल पूछने और सत्ता से जवाब मांगने का अधिकार देती है। लेकिन इसी स्वतंत्रता के बीच एक नया संघर्ष उभर कर आया है — कॉपीराइट अधिकार बनाम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech)

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) के समक्ष आया मामला — ANI (Asian News International) बनाम यूट्यूबर मोचक मंगल — इस बहस का प्रतीक बन गया है। यह मामला न केवल कॉपीराइट कानून की सीमाओं की परीक्षा लेता है, बल्कि यह भी सवाल उठाता है कि क्या डिजिटल प्लेटफॉर्म पर “कॉपीराइट” का इस्तेमाल अब “सेंसरशिप” के औज़ार के रूप में किया जा रहा है?


पृष्ठभूमि: विवाद की जड़

लोकप्रिय यूट्यूबर मोचक मंगल अपने यूट्यूब चैनल के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विषयों पर गहराई से विश्लेषण करते हैं। उनके वीडियो आमतौर पर “एक्सप्लेनेर” या “डॉक्युमेंटरी स्टाइल” में होते हैं, जहां वे मीडिया कवरेज, सरकारी नीतियों और सामाजिक व्यवहारों का आलोचनात्मक विश्लेषण करते हैं।

2025 में, ANI ने मोचक मंगल के दस वीडियो पर कॉपीराइट स्ट्राइक (Copyright Strike) लगाई, यह आरोप लगाते हुए कि उन वीडियो में ANI की क्लिप्स बिना अनुमति के इस्तेमाल की गई थीं। इसके परिणामस्वरूप, यूट्यूब ने वे सभी वीडियो हटा दिए।

मंगल का तर्क था कि उनका उपयोग ‘फेयर यूज़’ (Fair Use) सिद्धांत के अंतर्गत आता है, जो आलोचना, समीक्षा या टिप्पणी के उद्देश्य से किसी सामग्री के सीमित उपयोग की अनुमति देता है। उन्होंने कहा कि ANI का यह कदम न केवल अनुचित था, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला भी था।


मुख्य विवाद: फेयर यूज़ बनाम कॉपीराइट अधिकार

भारतीय कॉपीराइट अधिनियम, 1957 (Copyright Act, 1957) की धारा 52 (Section 52) के तहत, कुछ विशेष परिस्थितियों में बिना अनुमति के भी किसी सामग्री का उपयोग “फेयर डीलिंग” (Fair Dealing) माना जाता है। इसमें निम्नलिखित उद्देश्य शामिल हैं:

  1. आलोचना या समीक्षा के लिए सामग्री का उपयोग,
  2. समाचार रिपोर्टिंग के लिए उपयोग,
  3. अनुसंधान या निजी अध्ययन के लिए उपयोग।

मोचक मंगल का तर्क था कि उनके वीडियो “सार्वजनिक हित में आलोचना” का रूप हैं, जिसमें उन्होंने समाचार फुटेज का उपयोग अपने विश्लेषण को प्रमाणिक बनाने के लिए किया। उनका दावा है कि उन्होंने ANI की सामग्री को प्रतिस्थापित (substitute) नहीं किया, बल्कि उस पर टिप्पणी और समीक्षा की।

दूसरी ओर, ANI का कहना है कि यूट्यूबर ने उनके कॉपीराइटेड वीडियो का उपयोग बिना अनुमति के किया, जिससे उनके बौद्धिक संपदा अधिकारों का उल्लंघन हुआ है। ANI का यह भी दावा है कि मंगल को उनके फुटेज के उपयोग के लिए भुगतान करना चाहिए या वीडियो एडिट करना चाहिए।


संविधानिक दृष्टिकोण: अनुच्छेद 19(1)(a)

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) नागरिकों को “विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” की गारंटी देता है। यह स्वतंत्रता लोकतंत्र की रीढ़ है।

मोचक मंगल का यह तर्क इस प्रावधान पर आधारित है कि ANI की कॉपीराइट स्ट्राइक्स वास्तव में “सेंसरशिप का औजार” बन गई हैं। उनका कहना है कि आलोचनात्मक सामग्री को हटवाने के लिए कॉपीराइट कानून का दुरुपयोग हो रहा है, जिससे स्वतंत्र पत्रकारिता और जनता की जानकारी के अधिकार पर असर पड़ता है।

दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में मौलिक अधिकार और कॉपीराइट अधिकारों के बीच संतुलन की आवश्यकता को स्वीकार किया है। अदालत का मत है कि यह मामला मात्र बौद्धिक संपदा विवाद नहीं है, बल्कि लोकतांत्रिक विमर्श के अधिकार से भी जुड़ा हुआ है।


कॉपीराइट कानून का दुरुपयोग: एक चिंताजनक प्रवृत्ति

भारत और विश्वभर में हाल के वर्षों में यह देखा गया है कि शक्तिशाली कॉर्पोरेट या राजनीतिक संस्थाएं “कॉपीराइट स्ट्राइक” या “टेकडाउन नोटिस” का उपयोग आलोचनात्मक या असहज सामग्री को दबाने के लिए करती हैं।

यह प्रवृत्ति खतरनाक इसलिए है क्योंकि:

  • यह स्वतंत्र अभिव्यक्ति के लिए एक अप्रत्यक्ष सेंसरशिप का काम करती है।
  • यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म कॉपीराइट शिकायतों के मामले में अक्सर “पहले हटाओ, बाद में सुनो” (Take Down First, Hear Later) की नीति अपनाते हैं।
  • छोटे क्रिएटर्स के पास कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए संसाधन नहीं होते, जिससे वे स्वयं-सेंसरशिप (Self-Censorship) की ओर झुकने लगते हैं।

डिजिटल पत्रकारिता पर प्रभाव

इस मामले का असर सिर्फ एक यूट्यूबर तक सीमित नहीं है। भारत में डिजिटल मीडिया पत्रकारिता अब मुख्यधारा मीडिया का वैकल्पिक रूप बन चुकी है। मोचक मंगल, फिदा खान, अखिल काटियाल, ध्रुव राठी जैसे कई स्वतंत्र पत्रकार और विश्लेषक अब करोड़ों दर्शकों तक सूचना और विश्लेषण पहुंचाते हैं।

यदि कॉपीराइट स्ट्राइक का दुरुपयोग जारी रहा, तो:

  • जनता के वैकल्पिक दृष्टिकोण तक पहुंचने के अधिकार पर असर पड़ेगा।
  • बड़े मीडिया संस्थानों की मोनोपॉली (एकाधिकार) मजबूत होगी।
  • छोटे क्रिएटर्स और स्वतंत्र पत्रकारों की रचनात्मक स्वतंत्रता सीमित हो जाएगी।

न्यायालय की भूमिका और संभावित परिणाम

दिल्ली हाईकोर्ट इस मामले को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम बौद्धिक संपदा अधिकार के रूप में देख रही है। अदालत ने यह भी स्वीकार किया कि यह मामला सामान्य कॉपीराइट विवाद से आगे बढ़कर संवैधानिक महत्व रखता है।

यदि अदालत मोचक मंगल के पक्ष में फैसला देती है, तो यह एक ऐतिहासिक निर्णय होगा, जो:

  • भारत में ‘फेयर यूज़’ सिद्धांत को व्यापक व्याख्या देगा,
  • और यह सुनिश्चित करेगा कि कॉपीराइट कानून का उपयोग आलोचना या टिप्पणी को दबाने के लिए नहीं किया जा सके

दूसरी ओर, यदि अदालत ANI के पक्ष में जाती है, तो यह संकेत हो सकता है कि भारत में कॉपीराइट अधिकारों की रक्षा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से अधिक प्राथमिकता पा रही है। इससे डिजिटल क्रिएटर्स के लिए गंभीर परिणाम हो सकते हैं।


अंतरराष्ट्रीय दृष्टांत

दुनिया के कई देशों में इस तरह के मामले उठ चुके हैं।

  • संयुक्त राज्य अमेरिका में “Fair Use Doctrine” के तहत आलोचना, समीक्षा, या शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए कॉपीराइटेड सामग्री का उपयोग कानूनी रूप से सुरक्षित है।
  • YouTube Fair Use Protection Program भी ऐसे मामलों में छोटे क्रिएटर्स की मदद करता है, लेकिन भारत में ऐसा कोई तंत्र मौजूद नहीं है।

इसलिए, ANI बनाम मोचक मंगल केस भारत के लिए एक नज़ीर (precedent) स्थापित कर सकता है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर “फेयर यूज़” की सीमा क्या होगी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा कैसे की जाएगी।


लोकतांत्रिक विमर्श का भविष्य

लोकतंत्र केवल चुनावों से नहीं चलता; यह विचारों की स्वतंत्रता और संवाद की संस्कृति पर टिका होता है। जब सत्ता या संस्थान अपने ऊपर की गई आलोचना को दबाने के लिए कानूनी औजारों का दुरुपयोग करते हैं, तो यह लोकतंत्र के मूल ढांचे पर चोट करता है।

मोचक मंगल का मामला इस बात की याद दिलाता है कि “सूचना की स्वतंत्रता” और “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” केवल संवैधानिक अधिकार नहीं, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा हैं।

अगर आलोचना को कॉपीराइट के नाम पर दबाया जाएगा, तो यह सिर्फ एक यूट्यूबर की हार नहीं होगी — यह स्वतंत्र विचार की पराजय होगी।


निष्कर्ष

ANI बनाम मोचक मंगल विवाद भारत में एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है, जहाँ न्यायपालिका यह तय करेगी कि डिजिटल युग में “कॉपीराइट” का उद्देश्य रचनाकार की रक्षा करना है या आलोचना को दबाना

यह मामला हमें याद दिलाता है कि कानून का उद्देश्य न्याय और अभिव्यक्ति की रक्षा करना है, न कि सत्ता या संस्थानों की आलोचना से उन्हें बचाना।

यदि अदालत स्वतंत्र अभिव्यक्ति की दिशा में निर्णय देती है, तो यह भारतीय लोकतंत्र के लिए एक बड़ी जीत होगी — क्योंकि तब यह स्पष्ट संदेश जाएगा कि भारत में “सत्य बोलने” का अधिकार किसी कॉपीराइट नोटिस से बड़ा है।