कैशलेस बीमा पॉलिसी में अस्पताल द्वारा अनावश्यक विलंब और अवैध वसूली मानसिक प्रताड़ना के समान: दिल्ली हाईकोर्ट
Shashank Garg v. State, Crl. M.C. No. 3583/2018, निर्णय दिनांक: 17 अप्रैल 2025, दिल्ली उच्च न्यायालय
दिल्ली उच्च न्यायालय ने Shashank Garg बनाम राज्य वाद में चिकित्सा संस्थानों द्वारा कैशलेस बीमा पॉलिसी के दुरुपयोग और मरीजों को मानसिक प्रताड़ना देने के गंभीर मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए, कहा कि अस्पतालों द्वारा बीमा स्वीकृति के नाम पर अनावश्यक विलंब और मरीजों की रिहाई रोकना गहरी चिंता का विषय है। यह आचरण भले ही आपराधिक दायित्व की श्रेणी में न आता हो, लेकिन यह प्रणालीगत उत्पीड़न और नैतिक रूप से अत्यंत आपत्तिजनक है।
मामले की पृष्ठभूमि:
याचिकाकर्ता शशांक गर्ग ने मैक्स अस्पताल और मैक्स बूपा बीमा कंपनी के खिलाफ याचिका दायर कर यह आरोप लगाया कि कैशलेस बीमा सुविधा के बावजूद, अस्पताल ने बीमा कंपनी की स्वीकृति लंबित रहने के बहाने उन्हें discharge नहीं किया और जबरन अस्पताल से मोटी राशि वसूली। इस व्यवहार से याचिकाकर्ता और उनके परिवार को मानसिक पीड़ा और अपमानजनक अनुभव से गुजरना पड़ा।
कोर्ट का विश्लेषण:
- अदालत ने माना कि मरीज को discharge करने में अनावश्यक विलंब और बीमा की स्वीकृति के नाम पर नाजायज़ वसूली गंभीर चिंता का विषय है।
- अस्पताल का यह व्यवहार मानसिक उत्पीड़न का कारण बना, जो स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था में एक संवेदनहीन और गैर-जिम्मेदाराना रवैये को उजागर करता है।
- कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में पीड़ितों को क्षतिपूर्ति (compensation) दिए जाने की आवश्यकता हो सकती है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ:
न्यायमूर्ति ने अपने आदेश में कहा:
“जब एक मरीज और उसके परिवार को इस प्रकार मानसिक उत्पीड़न और वित्तीय शोषण का सामना करना पड़ता है, तब यह स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था की असंवेदनशीलता को उजागर करता है। भले ही यह आचरण आपराधिक उत्तरदायित्व की श्रेणी में न आता हो, फिर भी यह सामाजिक रूप से निंदनीय और गैरकानूनी है।”
न्यायालय द्वारा उठाए गए मुख्य मुद्दे:
- नियामक ढांचे (Regulatory Framework) की आवश्यकता – अस्पतालों और बीमा कंपनियों के व्यवहार पर नियंत्रण हेतु।
- रोगी अधिकारों का चार्टर (Patient Rights Charter) लागू करने की सिफारिश, जिससे मरीजों को न्याय और गरिमा मिले।
- मानसिक प्रताड़ना पर मुआवजा की संभावनाओं को भविष्य में स्थापित करने की आवश्यकता।
निष्कर्ष:
दिल्ली हाईकोर्ट का यह निर्णय भारत में स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता को स्पष्ट करता है। यह मरीजों के अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक ठोस कदम है। न्यायालय ने यह इंगित किया कि केवल ‘कैशलेस बीमा’ सुविधा होने से मरीजों को गरिमा नहीं मिलती, जब तक कि अस्पतालों की नीतियों को नैतिक, मानवीय और संवैधानिक दृष्टिकोण से नियंत्रित न किया जाए।