“केवल विवाहेत्तर संबंध नहीं माने जाएंगे क्रूरता या दहेज हत्या का प्रमाण: दिल्ली उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण फैसला”

लेख शीर्षक:
🔍 “केवल विवाहेत्तर संबंध नहीं माने जाएंगे क्रूरता या दहेज हत्या का प्रमाण: दिल्ली उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण फैसला”

भूमिका:
14 मई 2025 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि केवल विवाहेत्तर संबंध (extra-marital affair) का आरोप, अपने आप में भारतीय दंड संहिता की धारा 498A (क्रूरता) या 304B (दहेज मृत्यु) के तहत अभियुक्त को दोषी सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं है। अदालत ने यह कहा कि विवाहेत्तर संबंध होने की संभावना का यह अर्थ नहीं निकाला जा सकता कि महिला के साथ क्रूरता की गई या उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया जिससे उसकी मृत्यु हुई।


📜 पृष्ठभूमि:

मामला एक विवाहित महिला की मृत्यु से संबंधित था, जिसकी शादी को कुछ वर्ष ही हुए थे और उसकी असामयिक मृत्यु के बाद पति और ससुराल पक्ष के सदस्यों पर IPC की धारा 498A और 304B के अंतर्गत केस दर्ज किया गया। अभियोजन पक्ष ने यह भी तर्क दिया कि महिला के पति का एक विवाहेत्तर संबंध था, जो मानसिक प्रताड़ना और मृत्यु का कारण बना।


⚖️ अदालत की टिप्पणी और विश्लेषण:

न्यायमूर्ति (जज) की पीठ ने कहा:

  • “मात्र विवाहेत्तर संबंध का आरोप, धारा 498A या 304B के तहत अभियुक्त की दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त नहीं है।”
  • “अभियोजन को यह सिद्ध करना होता है कि महिला की मृत्यु से पहले उसे दहेज की मांग को लेकर क्रूरता या उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था।”
  • “केवल पति के किसी अन्य महिला से संबंध होने की बात यह नहीं दर्शाती कि उसे प्रताड़ित किया गया या उसकी मृत्यु के पीछे अभियुक्त की प्रत्यक्ष भूमिका रही।”

🔎 IPC की धाराएं और उनकी व्याख्या:

धारा 498A – यह धारा तब लागू होती है जब पति या उसके रिश्तेदार महिला के साथ क्रूरता करते हैं, जो शारीरिक या मानसिक रूप से उत्पीड़न की श्रेणी में आता है।

धारा 304B – यह धारा दहेज मृत्यु से संबंधित है, जहां विवाह के सात वर्षों के भीतर महिला की असामान्य परिस्थितियों में मृत्यु होती है और यह साबित होता है कि उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया था।

दिल्ली हाई कोर्ट ने यह रेखांकित किया:

“कानून के अंतर्गत क्रूरता या दहेज हत्या की धाराओं को लागू करने के लिए यह साबित करना आवश्यक है कि महिला को निरंतर प्रताड़ित किया गया और उसकी मृत्यु उसके साथ हुई यातनाओं का परिणाम थी — न कि केवल किसी अन्य महिला के साथ संबंध का तथ्य।”


📌 निर्णय का महत्व:

  • यह फैसला ऐसे मामलों में न्यायिक विवेक और साक्ष्यों के महत्व को रेखांकित करता है।
  • अदालतों को यह देखना होगा कि क्या मृत्यु से पूर्व महिला को वास्तविक रूप में उत्पीड़न या हिंसा का सामना करना पड़ा था।
  • यह निर्णय झूठे या अपर्याप्त आधारों पर दर्ज मामलों में अभियुक्तों के अधिकारों की रक्षा करता है।

🧠 निष्कर्ष:

दिल्ली उच्च न्यायालय का यह फैसला भारतीय समाज में विवाह और दहेज कानूनों की जटिलताओं को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश प्रदान करता है। विवाहेत्तर संबंध, भले ही नैतिक रूप से अनुचित हों, लेकिन जब तक वे प्रत्यक्ष रूप से उत्पीड़न या मृत्यु का कारण सिद्ध नहीं किए जाते, उन्हें क्रूरता या दहेज हत्या का आधार नहीं माना जा सकता।