“केवल वकील पर दोष नहीं डाल सकते: पुनर्स्थापन याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी – SMT. Shashi Gupta बनाम Narinder Kumar Sood, 2025”

लेख शीर्षक:
“केवल वकील पर दोष नहीं डाल सकते: पुनर्स्थापन याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी – SMT. Shashi Gupta बनाम Narinder Kumar Sood, 2025”


परिचय

न्यायिक कार्यवाही में यदि कोई पक्ष निर्धारित तिथि पर उपस्थित नहीं होता, तो मामला अनुपस्थिति के आधार पर खारिज किया जा सकता है। ऐसे में पुनर्स्थापन (Restoration) की प्रक्रिया का उपयोग करके वाद को पुनः बहाल करवाया जा सकता है। हाल ही में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने SMT. Shashi Gupta बनाम Narinder Kumar Sood मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए स्पष्ट किया कि केवल वकील की गलती का हवाला देकर मुकदमे की पुनर्स्थापना की अनुमति नहीं दी जा सकती।


मामले की पृष्ठभूमि

मामला एक दीवानी वाद से संबंधित था, जिसे वादी (Shashi Gupta) की अनुपस्थिति के कारण डिफॉल्ट में खारिज (dismissed in default) कर दिया गया था। इसके बाद वादी ने पुनर्स्थापन की याचिका दायर की, जिसमें यह तर्क दिया गया कि उनके वकील ने उन्हें अदालती कार्यवाही की जानकारी नहीं दी थी।


न्यायालय का निर्णय

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने याचिका को खारिज करते हुए निम्नलिखित मुख्य बातें स्पष्ट कीं:

  1. दोषारोपण की सीमाएं:
    “यह किसी भी पक्ष की जिम्मेदारी है कि वह अपने मुकदमे की स्थिति की निगरानी करे। केवल यह कहना कि वकील ने सूचित नहीं किया, पर्याप्त कारण नहीं हो सकता कि वाद को बहाल कर दिया जाए।”
  2. सीमावधि अधिनियम (Limitation Act) का प्रावधान:
    • अनुच्छेद 122 (Article 122) के तहत, यदि कोई वाद गैर-हाजिरी के कारण खारिज कर दिया गया हो, तो उसे पुनर्स्थापित कराने के लिए 30 दिनों की समयसीमा निर्धारित है।
    • यह 30 दिन वाद खारिज होने की तिथि से शुरू होती है, न कि जानकारी मिलने की तिथि से।
  3. व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी:
    कोर्ट ने दो टूक शब्दों में कहा कि किसी वादी को केवल अपने वकील की गलती के आधार पर राहत नहीं दी जा सकती। मुकदमे की प्रगति पर ध्यान देना खुद वादी की जिम्मेदारी है।

फैसले का महत्व

यह निर्णय न्यायिक सिद्धांतों को सुदृढ़ करता है और निम्नलिखित बातों को रेखांकित करता है:

  • अदालतों की कार्यवाही में अनुशासन और समयबद्धता का महत्व सर्वोपरि है।
  • वादियों को निष्क्रिय या लापरवाह रवैये का सहारा नहीं लेने दिया जा सकता।
  • वकील की गलती का हवाला देकर मुकदमे की बहाली की छूट देना न्यायिक प्रक्रिया की शुचिता पर प्रश्नचिन्ह लगा सकता है।

निष्कर्ष

SMT. Shashi Gupta v. Narinder Kumar Sood का यह फैसला सभी वादियों के लिए एक चेतावनी है कि वे अपने मुकदमों की निगरानी स्वयं करें और केवल वकील पर निर्भर रहकर न्याय की अपेक्षा न करें। इसके अतिरिक्त, यह निर्णय सीमावधि कानून के अनुपालन की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है। न्यायालयों को समय पर, साक्ष्य और प्रक्रिया के अनुसार निर्णय देने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, और यह फैसला उसी दिशा में एक दृढ़ कदम है।


संदर्भ:

  • SMT. Shashi Gupta v. Narinder Kumar Sood, 2025
  • Punjab & Haryana High Court (CR-7210-2019, O&M)
  • भारतीय सीमावधि अधिनियम, 1963 – अनुच्छेद 122