“केवल फोटोकॉपी के आधार पर हस्ताक्षर का विशेषज्ञ परीक्षण अनुमेय नहीं: पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट”

“केवल फोटोकॉपी के आधार पर हस्ताक्षर का विशेषज्ञ परीक्षण अनुमेय नहीं: पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट”


चंडीगढ़, पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि जब तक किसी विवादित दस्तावेज़ की मूल प्रति (original copy) न्यायालय में प्रस्तुत नहीं की जाती, तब तक विशेषज्ञ द्वारा हस्ताक्षर की तुलना (signature comparison) की अनुमति नहीं दी जा सकती।

यह फैसला भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita), धारा 528 और नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 से संबंधित एक मामले में सुनाया गया।


⚖️ मामले की पृष्ठभूमि:

आवेदक ने अदालत से अनुरोध किया था कि दस्तावेज़ ‘A’ पर अंकित विवादित हस्ताक्षर की तुलना स्वीकृत हस्ताक्षरों से करवाई जाए। लेकिन दस्तावेज़ ‘A’ केवल एक फोटोकॉपी थी, मूल दस्तावेज़ अदालत में प्रस्तुत नहीं किया गया था।


🏛️ अदालत का अवलोकन एवं निर्णय:

माननीय न्यायालय ने यह कहते हुए आवेदन को खारिज कर दिया कि:

“आधुनिक तकनीक के युग में फोटोकॉपी से हस्ताक्षर की नकल करना, उन्हें सुपरइम्पोज़ करके जालसाजी करना बेहद आसान हो गया है। ऐसे में केवल फोटोकॉपी के आधार पर विशेषज्ञ द्वारा तुलना करवाना न्यायिक प्रक्रिया की शुचिता के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।”

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि:

  • फोटोकॉपी को कभी भी मौलिक प्रमाण (best evidence) नहीं माना जा सकता
  • यदि दस्तावेज़ की प्रामाणिकता पर विवाद हो, तो मूल दस्तावेज़ प्रस्तुत करना आवश्यक है।
  • विशेषज्ञ जांच केवल मूल दस्तावेज़ों पर आधारित होनी चाहिए, अन्यथा वह भ्रामक और न्यायिक प्रक्रिया को भ्रमित करने वाली हो सकती है।

🔍 मुख्य बिंदु संक्षेप में:

  • केवल फोटोकॉपी पर आधारित हस्ताक्षर की तुलना अस्वीकार्य
  • तकनीकी रूप से फोटोकॉपी में हस्तक्षेप और छेड़छाड़ संभव
  • मूल दस्तावेज़ के बिना कोई विशेषज्ञ परीक्षण विश्वसनीय नहीं
  • न्यायालय ने “best evidence rule” को दोहराया – सर्वोत्तम प्रमाण हमेशा मूल दस्तावेज़ होता है।

📌 न्यायिक महत्व:

यह निर्णय स्पष्ट करता है कि अदालतों में फोरेंसिक साक्ष्य की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए मूल दस्तावेज़ की अनिवार्यता अपरिहार्य है। साथ ही यह निर्णय भविष्य के उन मामलों के लिए भी दिशा-निर्देशक होगा, जहाँ तकनीकी धोखाधड़ी की संभावनाएं अधिक होती हैं।