IndianLawNotes.com

केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया: हाईकोर्ट को स्थानांतरित करने हेतु ‘ज्यूडिशियल सिटी’ के लिए HMT भूमि उपयोग की अनुमति की मांग

केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया: हाईकोर्ट को स्थानांतरित करने हेतु ‘ज्यूडिशियल सिटी’ के लिए HMT भूमि उपयोग की अनुमति की मांग

भूमिका : न्यायिक अवसंरचना के आधुनिकीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम

       केरल सरकार ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण याचिका दायर की है, जिसके माध्यम से उसने राज्य के हाईकोर्ट को स्थानांतरित करने हेतु प्रस्तावित ‘ज्यूडिशियल सिटी’ प्रोजेक्ट के लिए HMT (Hindustan Machine Tools) की भूमि का उपयोग करने की अनुमति मांगी है। यह पहल न केवल न्यायिक ढांचे के आधुनिकीकरण से जुड़ी है बल्कि उसमें राज्य सरकार की दीर्घकालिक विकास दृष्टि भी झलकती है। मौजूदा समय में केरल हाईकोर्ट एर्नाकुलम में स्थित है, जहाँ स्थान की कमी, पार्किंग संकट, बढ़ते मामलों का बोझ, न्यायिक अधिकारियों एवं वादकारियों के लिए आवश्यक सुविधाओं की अनुपलब्धता जैसी समस्याएँ लगातार सामने आ रही हैं। इस पृष्ठभूमि में ‘ज्यूडिशियल सिटी’ की अवधारणा न्यायिक कार्यपालिका को नई गति और प्रभावशीलता प्रदान करने की क्षमता रखती है।


HMT भूमि का मुद्दा : विवाद, स्वामित्व एवं वर्तमान स्थिति

        HMT एक प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र का औद्योगिक उपक्रम था, जिसने दशकों तक मशीनरी निर्माण के क्षेत्र में योगदान दिया। हालाँकि समय के साथ इसकी कई यूनिटें बंद हुईं और बड़ी मात्रा में भूमि अनुपयोगी पड़ी रह गई। यही भूमि अब विभिन्न सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए पुनर्विकसित किए जाने के विवादों के केंद्र में है।

HMT भूमि से जुड़े प्रमुख तथ्य:

  • केरल में HMT के पास विस्तृत भूमि मौजूद है, जिसमें से काफी हिस्सा वर्षों से खाली पड़ा है।
  • केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच भूमि के स्वामित्व, उपयोग और हस्तांतरण को लेकर कई बार मतभेद सामने आए हैं।
  • HMT की संपत्ति National Land Monetization Program के अंतर्गत भी आती है, जिसके अनुसार केंद्र सरकार ऐसी भूमि को नीलामी और व्यावसायिक उपयोग हेतु प्राथमिकता देती है।
  • राज्य सरकार का तर्क यह है कि व्यापक जनहित को देखते हुए इस भूमि का उपयोग न्यायिक मूलभूत ढांचे को उन्नत करने में होना चाहिए, न कि केवल वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए।

        इन्हीं जटिलताओं के चलते केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अनुमति की मांग की है, जिससे भूमि उपयोग को लेकर कोई कानूनी बाधा न रहे।


ज्यूडिशियल सिटी क्या है? हाईकोर्ट स्थानांतरण की आवश्यकता क्यों महसूस हुई?

1. ज्यूडिशियल सिटी का विचार

         ‘ज्यूडिशियल सिटी’ एक व्यापक न्यायिक परिसर की अवधारणा है, जिसमें न्यायिक कार्य से जुड़ी सभी संस्थाएँ एक ही स्थान पर उपलब्ध हों। इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत निम्न सुविधाएँ प्रस्तावित हैं—

  • नया हाईकोर्ट भवन
  • अधीनस्थ न्यायालय
  • न्यायिक अकादमी
  • लोक अभियोजन विभाग कार्यालय
  • बड़े पैमाने पर पार्किंग सुविधाएँ
  • वकीलों के चेंबर्स
  • लाइब्रेरी, डिजिटाइज्ड रिकॉर्ड रूम
  • वादकारियों के लिए सुविधाएं जैसे प्रतीक्षालय, सूचना केंद्र
  • आधुनिक सुरक्षा और तकनीकी ढाँचा
  • न्यायिक कर्मचारियों व न्यायाधीशों के लिए आवासीय परिसर

2. हाईकोर्ट को स्थानांतरित करने की वास्तविक आवश्यकता

        आज के समय में न्याय प्रणाली पर बढ़ते बोझ और आवश्यक बुनियादी ढाँचे की कमी को देखते हुए केरल हाईकोर्ट का मौजूदा परिसर अपनी सीमाओं तक पहुँच चुका है। कुछ प्रमुख समस्याएँ इस प्रकार हैं—

  • स्थान की भारी कमी
  • पार्किंग और यातायात अव्यवस्था
  • आधुनिक डिजिटल कोर्टरूम की कमी
  • केस रिकॉर्ड्स और फाइलों के सुरक्षित भंडारण के लिए अपर्याप्त स्पेस
  • वादकारियों और अधिवक्ताओं के लिए सुविधाओं की कमी
  • सुरक्षा प्रणाली का पुराना स्वरूप
  • भविष्य की विस्तार योजनाओं के लिए कोई जगह नहीं

केरल देश के उन राज्यों में से है जहाँ इलेक्ट्रॉनिक न्याय प्रणाली, e-filing और paperless अदालतों का विस्तार तेजी से हो रहा है, ऐसे में एक नया और आधुनिक हाईकोर्ट परिसर समय की माँग है।


सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप क्यों आवश्यक है?

1. भूमि के स्वामित्व और उद्देश्य में परिवर्तन का मामला

       HMT भूमि केंद्र सरकार के अधीन है और उसका उपयोग बदलने या राज्य को हस्तांतरित करने के लिए स्पष्ट संवैधानिक और प्रशासनिक प्रक्रिया का पालन आवश्यक है। चूँकि भूमि रणनीतिक है, इसलिए उसके उपयोग से जुड़े निर्णय केवल साधारण प्रशासनिक आदेशों से नहीं लिए जा सकते। ऐसी परिस्थितियों में सुप्रीम कोर्ट का मार्गदर्शन और अनुमति आवश्यक हो जाती है।

2. संभावित कानूनी विवादों की रोकथाम

     यदि राज्य सरकार सीधे भूमि का उपयोग शुरू करती है, तो केंद्र सरकार, HMT के कर्मचारी संघ, भूमि पर दावा रखने वाले अन्य हितधारक या निजी डेवलपर्स इसकी वैधता को चुनौती दे सकते हैं। ऐसी संभावना को समाप्त करने हेतु सर्वोच्च न्यायालय की अनुमति अत्यंत महत्वपूर्ण है।

3. सार्वजनिक हित के प्रश्न का मूल्यांकन

      सुप्रीम कोर्ट यह भी देखता है कि संबंधित भूमि का उपयोग वास्तव में जनहित में है या नहीं। चूँकि यह प्रोजेक्ट न्यायिक अवसंरचना के उन्नयन से सीधे जुड़ा है, इसलिए अदालत का हस्तक्षेप उचित माना जा रहा है।


केरल सरकार का रुख: न्यायिक संरचना में सुधार प्राथमिकता

राज्य सरकार ने अपनी याचिका में यह रेखांकित किया है कि—

  • न्यायिक व्यवस्था सुचारू रूप से चलाने हेतु मजबूत आधारभूत ढाँचा आवश्यक है।
  • हाईकोर्ट के पास पर्याप्त भूमि उपलब्ध नहीं है और वर्तमान परिसर का विस्तार असंभव है।
  • HMT भूमि का उपयोग न केवल आर्थिक रूप से सही है बल्कि यह दीर्घकालिक न्यायिक विकास के अनुरूप भी है।
  • यदि ज्यूडिशियल सिटी बनती है, तो इससे न्याय प्रणाली में पारदर्शिता, दक्षता और तकनीकी उन्नयन को बढ़ावा मिलेगा।
  • यह प्रोजेक्ट नागरिकों के लिए न्याय तक पहुँच (Access to Justice) को मजबूत करेगा।

संभावित लाभ: ज्यूडिशियल सिटी क्यों है समय की जरूरत?

1. केंद्रीकृत और आधुनिक न्यायिक परिसर

एक ही स्थान पर सभी न्यायिक संस्थाओं के होने से—

  • समन्वय बढ़ेगा
  • प्रक्रियाएँ तेजी से चलेंगी
  • वादकारियों की सुविधा बढ़ेगी
  • आवागमन और सुरक्षा व्यवस्था बेहतर होगी

2. न्यायिक डिजिटाइजेशन को बढ़ावा

ई-कोर्ट्स मिशन, e-filing, virtual hearings और paperless सिस्टम को सुचारू रूप से लागू करने के लिए अत्याधुनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता होती है। नया परिसर इन तकनीकों को सहज रूप से समाहित करेगा।

3. वकीलों और न्यायिक अधिकारियों के लिए उन्नत सुविधाएँ

वकीलों के लिए चेंबर ब्लॉक, संयुक्त लाइब्रेरी, इलेक्ट्रॉनिक रिसर्च हब और सुरक्षित रिकॉर्ड रूम न्यायिक प्रक्रिया को तेज और स्मार्ट बनाएंगे।

4. बढ़ते मुकदमों के बोझ से निपटने में मदद

केरल में मामलों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और मौजूदा व्यवस्था उस पर खरा उतरने में संघर्ष कर रही है। ज्यूडिशियल सिटी भविष्य को ध्यान में रखकर तैयार किया जाएगा।


चुनौतियाँ: प्रोजेक्ट के सामने मौजूद संभावित अवरोध

1. केंद्र–राज्य समन्वय का मुद्दा

HMT भूमि केंद्र सरकार के संरक्षण में है। इसलिए भूमि उपयोग अनुमति के लिए दिल्ली और तिरुवनंतपुरम के बीच सहमति आवश्यक है।

2. कॉर्पोरेट हितों का टकराव

HMT की भूमि के व्यावसायिक मूल्य को देखते हुए कई निजी कंपनियाँ भी इसे बिडिंग के लिए आकर्षित मानती हैं। न्यायिक उपयोग हेतु उसका आरक्षण व्यावसायिक नीतियों से टकरा सकता है।

3. भूमि हस्तांतरण की लागत और वित्तीय व्यवस्था

हालाँकि राज्य सरकार इस परियोजना पर लंबे समय में निवेश को न्यायिक सुधार की दिशा में उचित मानती है, लेकिन प्रारंभिक लागत काफी अधिक हो सकती है।

4. पर्यावरणीय अनुमति और भूमि उपयोग परिवर्तन

भूमि का आकार बड़ा होने के कारण पर्यावरणीय अनुमति, मास्टर प्लान संशोधन और भूमि उपयोग बदलाव की प्रक्रिया लंबी हो सकती है।


सुप्रीम कोर्ट का संभावित दृष्टिकोण : प्रमुख कानूनी बिंदु

सर्वोच्च न्यायालय संभवतः निम्न प्रश्नों की समीक्षा करेगा—

  1. क्या HMT भूमि सार्वजनिक प्रयोजन (Public Purpose) के लिए आरक्षित की जा सकती है?
  2. क्या हाईकोर्ट का स्थानांतरण जनहित में है?
  3. क्या केंद्र सरकार ने भूमि उपयोग को लेकर कोई आपत्ति दर्ज की है?
  4. क्या भूमि का हस्तांतरण वैधानिक प्रावधानों और नियमों के अनुरूप होगा?
  5. क्या परियोजना पर्यावरण व शहरी नियोजन मानकों के अनुरूप है?

सुप्रीम कोर्ट की अनुमति इस परियोजना के भविष्य को निश्चित करेगी और इसके बाद ही राज्य सरकार व्यावहारिक रूप से निर्माण प्रक्रिया आगे बढ़ा सकेगी।


राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य : अन्य राज्यों में भी चल रहे हाईकोर्ट विस्तार और स्थानांतरण प्रोजेक्ट

भारत के कई राज्यों में पिछले कुछ वर्षों से हाईकोर्ट परिसरों को स्थानांतरित करने या विस्तारित करने की पहलें चल रही हैं—

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट का नया परिसर निर्माणाधीन
  • जयपुर में राजस्थान हाईकोर्ट का नया बिल्डिंग प्रोजेक्ट
  • हैदराबाद में नए न्यायिक ब्लॉक
  • बेंगलुरु और मुंबई में न्यायालय के विस्तार की योजनाएँ

केरल में प्रस्तावित ज्यूडिशियल सिटी इन प्रोजेक्ट्स से कहीं बड़ा, अधिक आधुनिक और समन्वित मॉडल कहा जा रहा है, जो भविष्य के न्यायालयों की संरचना को दिशा दे सकता है।


निष्कर्ष : न्यायिक प्रशासन के भविष्य को आकार देने वाला ऐतिहासिक कदम

       केरल सरकार का सुप्रीम कोर्ट में ज्यूडिशियल सिटी के लिए HMT भूमि उपयोग की अनुमति माँगना केवल एक निर्माण परियोजना नहीं है, बल्कि राज्य की न्याय प्रणाली को भविष्य की जरूरतों के अनुरूप बदलने का प्रयास है। हाईकोर्ट को आधुनिक सुविधाओं से लैस परिसर में स्थानांतरित करने से न केवल न्यायिक कार्य संस्कृति सुधरेगी बल्कि वादकारियों, वकीलों और न्यायिक अधिकारियों का अनुभव भी बेहतर होगा।

       यदि सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकार को अनुमति देता है, तो यह प्रोजेक्ट देश में न्यायिक अवसंरचना सुधार का एक मॉडल बन सकता है और अन्य राज्यों के लिए एक प्रेरणा बनेगा।