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“केरल उच्च न्यायालय का महत्त्वपूर्ण निर्णय: विदेशी देश से प्राप्त शिकायत पर भी संज्ञेय अपराध होने पर एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य”

“केरल उच्च न्यायालय का महत्त्वपूर्ण निर्णय: विदेशी देश से प्राप्त शिकायत पर भी संज्ञेय अपराध होने पर एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य”


परिचय:
भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) का पंजीकरण संज्ञेय अपराध की जांच प्रक्रिया की पहली और अनिवार्य कड़ी है। इसमें पुलिस की भूमिका निष्पक्ष और त्वरित कार्यवाही की होती है। हाल ही में केरल उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय देते हुए यह स्पष्ट किया कि यदि कोई संज्ञेय अपराध बनता है, तो भले ही शिकायत किसी विदेशी देश से आई हो, पुलिस को एफआईआर दर्ज करने से मना करने का कोई अधिकार नहीं है


प्रकरण का संक्षिप्त विवरण:
यह मामला तब सामने आया जब एक शिकायतकर्ता, जो भारत से बाहर किसी विदेशी देश में रह रहा था, ने एक संज्ञेय अपराध की शिकायत भारत में पुलिस को भेजी। शिकायत में गंभीर आरोप लगाए गए थे, लेकिन स्थानीय पुलिस ने यह कहकर एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया कि शिकायत भारत के बाहर से प्राप्त हुई है, इसलिए वे कार्रवाई नहीं कर सकते।


केरल उच्च न्यायालय का निर्णय:
न्यायमूर्ति मुहम्मद नियास सी.पी. की पीठ ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि:

“संज्ञेय अपराध की जानकारी मिलते ही पुलिस अधिकारी का कर्तव्य बनता है कि वह अनिवार्य रूप से FIR दर्ज करे, चाहे सूचना किसी भी स्रोत से क्यों न मिली हो — यहां तक कि यदि वह किसी विदेशी देश से भेजी गई हो।”

अदालत ने कहा कि आईपीसी और सीआरपीसी में ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है जो केवल भारत में ही शिकायत प्राप्त होने पर एफआईआर दर्ज करने की बाध्यता दर्शाए।


कानूनी प्रावधानों का विश्लेषण:

  1. धारा 154, दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC):
    यह धारा कहती है कि पुलिस को संज्ञेय अपराध की सूचना मिलने पर अनिवार्य रूप से FIR दर्ज करनी होती है। इसमें यह नहीं कहा गया है कि सूचना कहां से आई है — देश से या विदेश से।
  2. संज्ञेय अपराध की परिभाषा:
    संज्ञेय अपराध वे होते हैं जिनमें पुलिस बिना मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुमति के गिरफ्तारी और जांच कर सकती है। इसलिए ऐसे मामलों में देरी या अस्वीकरण, पीड़ित के अधिकारों का उल्लंघन है।

अदालत की टिप्पणियाँ:

  • “FIR दर्ज करना जांच की शुरुआत का पहला चरण है। इसे स्थान या स्रोत की बाध्यता से नहीं जोड़ा जा सकता।”
  • “यदि शिकायत में प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध प्रतीत होता है, तो पुलिस को इसमें कार्रवाई करनी ही होगी।”
  • “प्रवासी भारतीयों (NRIs) या विदेशों में रह रहे भारतीयों को न्याय से वंचित नहीं किया जा सकता।”

महत्त्वपूर्ण प्रभाव:

  1. प्रवासी भारतीयों के लिए राहत:
    अब यदि कोई भारतीय नागरिक विदेश में रहकर भारत में घटित किसी अपराध की शिकायत भेजता है, तो पुलिस को उस पर कानूनी कार्यवाही करनी होगी।
  2. पुलिस की जवाबदेही सुनिश्चित:
    यह निर्णय पुलिस के विवेकाधिकार की सीमाओं को स्पष्ट करता है और अनावश्यक अस्वीकृति की प्रवृत्ति पर रोक लगाता है।
  3. न्याय सुलभता की पुष्टि:
    अदालत का यह आदेश स्पष्ट संकेत देता है कि न्याय केवल भौगोलिक सीमाओं तक सीमित नहीं है।

निष्कर्ष:
केरल उच्च न्यायालय का यह निर्णय भारतीय आपराधिक कानून में न्याय सुलभता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करने वाला एक मील का पत्थर है। यह न केवल प्रवासी भारतीयों को अधिकार देता है कि वे न्याय की मांग कर सकें, बल्कि पुलिस को यह भी याद दिलाता है कि संज्ञेय अपराध की शिकायत को नजरअंदाज करना संविधान और विधि के सिद्धांतों का उल्लंघन है।