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कृत्रिम गर्भाधान और सरोगेसी कानून : एक विस्तृत अध्ययन

कृत्रिम गर्भाधान और सरोगेसी कानून : एक विस्तृत अध्ययन

प्रस्तावना

आधुनिक विज्ञान और तकनीक ने चिकित्सा क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन किए हैं। इन परिवर्तनों में कृत्रिम प्रजनन तकनीक (Artificial Reproductive Techniques – ART) और सरोगेसी (Surrogacy) प्रमुख हैं, जो उन दंपतियों के लिए आशा की किरण बनकर उभरे हैं जिन्हें प्राकृतिक रूप से संतान प्राप्त करने में कठिनाई होती है। भारत जैसे देश में, जहां परिवार और संतान को सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है, इन तकनीकों की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है। परंतु इसके साथ ही अनेक कानूनी, नैतिक और सामाजिक प्रश्न भी उत्पन्न होते हैं। इन्हीं जटिलताओं को ध्यान में रखकर भारत सरकार ने “कृत्रिम प्रजनन तकनीक (विनियमन) अधिनियम, 2021” तथा “सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021” लागू किए।


कृत्रिम गर्भाधान (Artificial Reproduction) : परिभाषा और प्रकार

कृत्रिम प्रजनन तकनीकें उन सभी चिकित्सा पद्धतियों को सम्मिलित करती हैं जिनके माध्यम से प्राकृतिक गर्भाधान की असफलता की स्थिति में चिकित्सीय उपाय अपनाकर गर्भ धारण कराया जाता है। इसके अंतर्गत प्रमुख रूप से –

  1. आईवीएफ (In-Vitro Fertilization – IVF): स्त्री के अंडाणु और पुरुष के शुक्राणु को प्रयोगशाला में मिलाकर भ्रूण तैयार किया जाता है और उसे महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है।
  2. आईयूआई (Intra Uterine Insemination – IUI): पुरुष के शुक्राणु को विशेष प्रक्रिया से शुद्ध करके सीधे महिला के गर्भाशय में डाला जाता है।
  3. सरोगेसी: किसी अन्य महिला द्वारा इच्छुक दंपति के लिए शिशु को जन्म देना।
  4. डोनर अंडाणु/शुक्राणु: ऐसे दंपति जिनमें से किसी का प्रजनन अंग सक्षम न हो, वे डोनर का सहारा ले सकते हैं।

सरोगेसी : अवधारणा और प्रकार

सरोगेसी का अर्थ है – जब कोई महिला किसी अन्य दंपति या व्यक्ति के लिए बच्चे को गर्भ में धारण कर जन्म देती है। सरोगेसी के मुख्य प्रकार –

  1. पारंपरिक सरोगेसी (Traditional Surrogacy): इसमें सरोगेट मां का अपना अंडाणु प्रयोग किया जाता है, अतः बच्चा उससे आनुवंशिक रूप से जुड़ा होता है।
  2. गेस्टेशनल सरोगेसी (Gestational Surrogacy): इसमें इच्छुक दंपति के अंडाणु और शुक्राणु से भ्रूण तैयार करके सरोगेट मां के गर्भ में प्रत्यारोपित किया जाता है। इसमें बच्चे का आनुवंशिक संबंध केवल इच्छुक माता-पिता से होता है।

भारत में सरोगेसी का विकास

भारत लंबे समय तक “सस्ती और प्रभावी” चिकित्सा सुविधा के कारण सरोगेसी का वैश्विक केंद्र माना गया। विदेशी दंपति यहां आकर सरोगेट माताओं की मदद लेते थे। लेकिन कई बार शिशु और सरोगेट मां दोनों के अधिकारों का उल्लंघन हुआ, जिससे विवाद और शोषण की स्थिति उत्पन्न हुई। इसी पृष्ठभूमि में भारत सरकार ने सरोगेसी और ART के लिए अलग-अलग विनियामक कानून बनाए।


सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021

यह अधिनियम भारत में सरोगेसी से संबंधित गतिविधियों को नियंत्रित और विनियमित करता है।

मुख्य प्रावधान:

  1. केवल परोपकारी (Altruistic) सरोगेसी की अनुमति – इसमें सरोगेट मां को केवल चिकित्सीय खर्च और बीमा कवर दिया जाएगा, कोई व्यावसायिक लाभ नहीं।
  2. व्यावसायिक सरोगेसी पर पूर्ण प्रतिबंध – शोषण और मानव तस्करी जैसी आशंकाओं को रोकने हेतु।
  3. कौन ले सकता है सरोगेसी की अनुमति:
    • भारतीय विवाहित दंपति, जिनकी शादी को कम से कम 5 वर्ष हो चुके हों।
    • पति की आयु 26-55 वर्ष और पत्नी की आयु 23-50 वर्ष होनी चाहिए।
    • उनके पास चिकित्सीय रूप से प्रमाणित बांझपन का कारण होना चाहिए।
  4. सरोगेट मां के लिए शर्तें:
    • आयु 25-35 वर्ष के बीच।
    • विवाहित और कम से कम एक संतान की मां।
    • केवल एक बार सरोगेसी कर सकती है।
  5. राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर बोर्ड का गठन – निगरानी और लाइसेंसिंग के लिए।

कृत्रिम प्रजनन तकनीक (विनियमन) अधिनियम, 2021

ART से संबंधित चिकित्सा संस्थानों और बैंकों को नियंत्रित करने हेतु यह अधिनियम लागू किया गया।

मुख्य बिंदु:

  1. सभी ART क्लिनिक और बैंक का पंजीकरण अनिवार्य।
  2. दंपति की पहचान और गोपनीयता की कानूनी सुरक्षा।
  3. डोनर की जानकारी और स्वास्थ्य परीक्षण अनिवार्य।
  4. भ्रूण और युग्मकों (gametes) के संरक्षण, भंडारण और उपयोग पर सख्त नियम।
  5. शोषण रोकने और भ्रूण की बिक्री जैसी गतिविधियों पर प्रतिबंध।

कानूनी और नैतिक प्रश्न

  1. मां कौन? – जैविक मां, सरोगेट मां या इच्छुक मां? इस प्रश्न ने लंबे समय तक न्यायालयों को चुनौती दी।
  2. शिशु के अधिकार – सरोगेसी से जन्मे बच्चों की नागरिकता, उत्तराधिकार और पहचान से जुड़े प्रश्न।
  3. शोषण का खतरा – गरीब महिलाएं आर्थिक लालच या दबाव में सरोगेसी कर सकती हैं।
  4. समलैंगिक दंपति और अविवाहित व्यक्तियों के अधिकार – वर्तमान कानून केवल विवाहित विषमलैंगिक दंपति को अनुमति देता है। इससे समानता के अधिकार पर बहस उठती है।

न्यायिक दृष्टिकोण

  1. बेबी मंजी यामादा केस (2008): सुप्रीम कोर्ट ने सरोगेसी से जन्मे बच्चे की नागरिकता और माता-पिता के अधिकारों पर महत्वपूर्ण निर्णय दिया।
  2. जन्मसिद्ध अधिकारों से जुड़े मामले: अदालतों ने यह स्पष्ट किया कि बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है।
  3. कई हाईकोर्टों ने सरोगेसी से जुड़े मामलों में मानव अधिकारों और महिला की गरिमा को प्राथमिकता दी।

सामाजिक परिप्रेक्ष्य

भारत में संतान को वंश और पारिवारिक परंपरा से जोड़ा जाता है। ऐसे में बांझपन को सामाजिक कलंक माना जाता है। ART और सरोगेसी ने लाखों दंपतियों को संतान सुख दिया है। लेकिन समाज में अभी भी सरोगेसी मां और शिशु को लेकर संदेह और आलोचना की स्थिति रहती है।


अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण

  • अमेरिका: कई राज्यों में व्यावसायिक सरोगेसी कानूनी है।
  • यूनाइटेड किंगडम: केवल परोपकारी सरोगेसी मान्य है।
  • फ्रांस और जर्मनी: सरोगेसी पर पूर्ण प्रतिबंध।
    भारत ने संतुलित दृष्टिकोण अपनाया है – व्यावसायिक सरोगेसी पर रोक और परोपकारी सरोगेसी को अनुमति।

चुनौतियाँ और सुझाव

  1. कानून में समलैंगिक दंपतियों और अविवाहित व्यक्तियों को भी शामिल करने पर विचार होना चाहिए।
  2. सरोगेट मां और बच्चे के लिए बेहतर सामाजिक सुरक्षा तंत्र होना चाहिए।
  3. चिकित्सीय संस्थानों की पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी।
  4. भ्रूण और डोनर से जुड़े नैतिक सवालों पर व्यापक जन-जागरूकता की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

कृत्रिम प्रजनन तकनीक और सरोगेसी कानून विज्ञान और समाज के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास हैं। ये कानून जहां दंपतियों के संतान प्राप्ति के अधिकार को मान्यता देते हैं, वहीं शोषण और मानव अधिकार उल्लंघन को रोकने की दिशा में भी महत्वपूर्ण हैं। भविष्य में इन कानूनों को समय और समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप और अधिक लचीला और समावेशी बनाया जाना चाहिए ताकि मातृत्व और पितृत्व का सपना देखने वाला कोई भी व्यक्ति इससे वंचित न रह सके।


महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर (Short Q&A)

प्रश्न 1. कृत्रिम प्रजनन तकनीक (ART) क्या है?
उत्तर: कृत्रिम प्रजनन तकनीक वे चिकित्सीय विधियाँ हैं जिनके माध्यम से प्राकृतिक गर्भाधान में असफल दंपतियों को संतान प्राप्ति में सहायता दी जाती है। इसमें IVF, IUI, डोनर अंडाणु/शुक्राणु और सरोगेसी शामिल हैं।

प्रश्न 2. सरोगेसी के मुख्य प्रकार कौन-कौन से हैं?
उत्तर: सरोगेसी दो प्रकार की होती है – (1) पारंपरिक सरोगेसी, जिसमें सरोगेट मां का अंडाणु प्रयोग होता है, और (2) गेस्टेशनल सरोगेसी, जिसमें इच्छुक दंपति के अंडाणु-शुक्राणु से भ्रूण तैयार कर प्रत्यारोपित किया जाता है।

प्रश्न 3. भारत में सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 की सबसे बड़ी विशेषता क्या है?
उत्तर: इस अधिनियम के तहत केवल परोपकारी सरोगेसी की अनुमति है, जबकि व्यावसायिक सरोगेसी पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है।

प्रश्न 4. सरोगेट मां के लिए अधिनियम में क्या शर्तें हैं?
उत्तर: सरोगेट मां की आयु 25-35 वर्ष के बीच होनी चाहिए, वह विवाहित हो और कम से कम एक संतान की मां हो। साथ ही, वह जीवन में केवल एक बार सरोगेसी कर सकती है।

प्रश्न 5. ART (विनियमन) अधिनियम, 2021 क्यों बनाया गया?
उत्तर: ART अधिनियम उन क्लिनिक और बैंकों को विनियमित करता है जो कृत्रिम प्रजनन सेवाएँ प्रदान करते हैं। इसका उद्देश्य पारदर्शिता सुनिश्चित करना, डोनर और दंपति की गोपनीयता की रक्षा करना तथा भ्रूण/युग्मकों के शोषण को रोकना है।

प्रश्न 6. भारत में सरोगेसी के क्षेत्र में प्रमुख न्यायिक निर्णय कौन सा है?
उत्तर: बेबी मंजी यामादा बनाम भारत संघ (2008) में सुप्रीम कोर्ट ने सरोगेसी से जन्मे बच्चे की नागरिकता और माता-पिता के अधिकारों पर महत्वपूर्ण निर्णय दिया।

प्रश्न 7. वर्तमान कानून के तहत कौन सरोगेसी का लाभ नहीं ले सकता?
उत्तर: समलैंगिक दंपति, अविवाहित पुरुष या महिला, तथा विदेशी नागरिक सरोगेसी का लाभ भारत में नहीं ले सकते।

प्रश्न 8. सरोगेसी में सबसे बड़ा नैतिक प्रश्न क्या है?
उत्तर: सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि शिशु की “वास्तविक मां” कौन होगी – जैविक मां, सरोगेट मां या इच्छुक मां। इसके अलावा सरोगेट मां के शोषण की आशंका भी महत्वपूर्ण नैतिक मुद्दा है।

प्रश्न 9. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सरोगेसी की स्थिति कैसी है?
उत्तर: अमेरिका के कई राज्यों में व्यावसायिक सरोगेसी मान्य है, ब्रिटेन में केवल परोपकारी सरोगेसी, जबकि फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों में सरोगेसी पूर्णत: प्रतिबंधित है।

प्रश्न 10. भविष्य में सरोगेसी कानून में क्या सुधार अपेक्षित हैं?
उत्तर: भविष्य में समलैंगिक दंपतियों और अविवाहित व्यक्तियों को शामिल करने, सरोगेट मां की सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा बढ़ाने, और शिशु के अधिकारों को और स्पष्ट करने की दिशा में सुधार किए जाने की आवश्यकता है।