“किसी महिला को ‘रंडी’ कहना उसकी गरिमा और आत्मसम्मान का घोर अपमान है: दिल्ली कोर्ट का स्पष्ट संदेश”

शीर्षक: “किसी महिला को ‘रंडी’ कहना उसकी गरिमा और आत्मसम्मान का घोर अपमान है: दिल्ली कोर्ट का स्पष्ट संदेश”


परिचय

महिलाओं के प्रति शब्दों और व्यवहार में मर्यादा का पालन केवल सामाजिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि संवैधानिक कर्तव्य भी है। भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक को सम्मानपूर्वक जीवन का अधिकार (अनुच्छेद 21) देता है, जिसमें महिला की गरिमा और आत्मसम्मान विशेष रूप से शामिल है। इसी सिद्धांत को मजबूती देते हुए दिल्ली की एक अदालत ने हाल ही में अपने एक निर्णय में कहा कि किसी महिला को “रं*” जैसे अपमानजनक शब्द से संबोधित करना न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि यह कानून की दृष्टि में उसकी गरिमा का गंभीर अपमान भी है**।

यह निर्णय महिलाओं के प्रति सार्वजनिक और निजी संवादों में अपमानजनक भाषा के प्रयोग की वैधानिक गंभीरता को रेखांकित करता है।


मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला दिल्ली की एक महिला द्वारा अपने पड़ोसी के खिलाफ दायर की गई आपराधिक शिकायत से जुड़ा था, जिसमें उसने आरोप लगाया था कि झगड़े के दौरान आरोपी ने उसे “रं***” जैसे अपमानजनक और अश्लील शब्दों से संबोधित किया, जिससे उसे सामाजिक, मानसिक और आत्मिक आघात पहुंचा।

महिला ने यह दावा किया कि उक्त शब्दों ने उसकी प्रतिष्ठा को उसके परिवार, पड़ोस और समाज में बुरी तरह प्रभावित किया। मामले में आरोपी ने तर्क दिया कि यह शब्द केवल गुस्से में कहे गए थे और उनका कोई गंभीर आशय नहीं था।


अदालत का विश्लेषण और टिप्पणियाँ

माननीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (ASJ) ने अपने निर्णय में निम्नलिखित बिंदुओं को रेखांकित किया:

  1. महिला की गरिमा सर्वोपरि
    अदालत ने कहा कि महिला की गरिमा उसके अस्तित्व का आधार है, और कोई भी व्यक्ति यह अधिकार नहीं रखता कि वह उसे इस प्रकार के शब्दों से अपमानित करे।

    “जब कोई पुरुष किसी महिला को अश्लील या यौन अपमानजनक शब्दों से पुकारता है, तो यह न केवल सामाजिक मर्यादा का उल्लंघन है, बल्कि यह दंडनीय अपराध भी है।”

  2. गाली नहीं, अपराध है
    अदालत ने यह स्पष्ट किया कि “रं***” जैसे शब्द केवल गाली नहीं हैं, बल्कि यह भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराओं के तहत आपराधिक अपमान (Section 504), महिला के शील का अपमान (Section 509), और मानसिक प्रताड़ना के अंतर्गत अपराध की श्रेणी में आते हैं।
  3. गंभीर सामाजिक प्रभाव
    न्यायालय ने माना कि इस प्रकार की भाषा महिलाओं को अपमान, भय और मानसिक उत्पीड़न का शिकार बनाती है। विशेषतः यदि यह सार्वजनिक रूप से कहा जाए, तो यह उनके सामाजिक जीवन और सम्मान को गहरा आघात पहुंचाता है।

प्रासंगिक कानूनी प्रावधान

  • IPC की धारा 509: किसी महिला की गरिमा को हानि पहुँचाने हेतु बोले गए शब्द, इशारे या कार्य – 1 साल तक की सजा और जुर्माना।
  • IPC की धारा 504: जानबूझकर अपमान करना जिससे सार्वजनिक शांति भंग हो सकती है – 2 साल तक की सजा या जुर्माना।
  • POSH Act, 2013: यदि workplace पर ऐसा शब्द कहा जाए, तो यह यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आ सकता है।

महत्वपूर्ण न्यायिक टिप्पणियाँ

अदालत ने अपने निर्णय में यह भी कहा:

“यह आवश्यक है कि हम समाज में महिलाओं की गरिमा की रक्षा को प्राथमिकता दें। शब्दों में छिपे अपमान का प्रभाव गहरे मानसिक जख्म की तरह होता है, और उसे सहन करना किसी भी महिला के लिए कष्टदायक होता है।”

“यदि अदालतें ऐसे मामलों में सख्ती नहीं दिखातीं, तो यह समाज में महिलाओं के प्रति असम्मानजनक भाषा के प्रयोग को बढ़ावा देगा।”


इस निर्णय का सामाजिक महत्व

यह फैसला केवल एक व्यक्ति को दंडित करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज को यह संदेश देता है कि:

  • महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक भाषा अब “सामान्य” नहीं मानी जाएगी।
  • गरिमा को ठेस पहुँचाना भी एक गंभीर आपराधिक कृत्य है।
  • न्यायपालिका महिला अधिकारों की रक्षा के लिए सजग और सक्रिय है।

निष्कर्ष

दिल्ली कोर्ट का यह निर्णय एक चेतावनी है उन सभी के लिए जो शब्दों की मर्यादा नहीं समझते। यह नारी गरिमा की रक्षा की दिशा में एक सशक्त न्यायिक कदम है। भाषा में संस्कार और सम्मान होना केवल सामाजिक शिष्टाचार नहीं, बल्कि कानून की भी अपेक्षा है। महिलाओं को अपमानित करने वाले शब्द अब “तथाकथित गुस्से” के बहाने से नहीं बच सकते। यह फैसला इस बात को दृढ़ता से स्थापित करता है कि महिलाएं भी गरिमा से जीने का उतना ही अधिकार रखती हैं जितना समाज के किसी भी अन्य वर्ग को