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किसी के साथ चले जाना ‘अपहरण या बहकाना’ नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय

किसी के साथ चले जाना ‘अपहरण या बहकाना’ नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय

भारत में अपहरण (Kidnapping) और बलात्कार (Rape) से संबंधित मामलों में अक्सर यह प्रश्न उठता है कि क्या केवल किसी लड़की का अपनी इच्छा से किसी युवक के साथ चले जाना, ‘अपहरण’ या ‘बहकाना’ माना जाएगा? इस प्रश्न पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसमें कहा गया कि यदि कोई लड़की अपनी इच्छा से किसी के साथ जाती है, तो यह न तो अपहरण है और न ही बहकाना।

यह निर्णय इस्लाम @ पल्लू बनाम राज्य, 2025 (Allahabad High Court) में दिया गया। इस फैसले ने न केवल आरोपी को बरी किया, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि कानून की व्याख्या करते समय स्वतंत्र इच्छा (Consent) और उम्र का महत्व सर्वोपरि है।


1. मामले की पृष्ठभूमि

  • आरोपी इस्लाम @ पल्लू के खिलाफ लड़की के परिजनों ने शिकायत दर्ज कराई थी कि उसने लड़की का अपहरण कर लिया और उसके साथ बलात्कार किया।
  • अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि आरोपी ने लड़की को बहकाकर अपने साथ ले गया और बाद में शारीरिक संबंध बनाए।
  • बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि लड़की 16 वर्ष से अधिक उम्र की थी, उसने स्वेच्छा से आरोपी के साथ विवाह किया और शारीरिक संबंध भी विवाह के बाद ही बने।

2. मुख्य प्रश्न

न्यायालय के समक्ष मूल प्रश्न यह था:

  1. क्या केवल किसी लड़की का अपनी इच्छा से आरोपी के साथ चले जाना ‘अपहरण’ या ‘बहकाना’ कहलाएगा?
  2. क्या विवाह के बाद बने संबंधों को बलात्कार माना जा सकता है?
  3. लड़की की उम्र और उसकी सहमति (Consent) का क्या महत्व है?

3. न्यायालय की व्याख्या

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इन प्रश्नों पर विस्तार से विचार किया और कहा:

  • यदि कोई लड़की 16 वर्ष से अधिक है और वह स्वेच्छा से किसी युवक के साथ जाती है, तो इसे ‘अपहरण’ नहीं माना जा सकता।
  • केवल ‘साथ चले जाने’ की घटना को कानून में ‘बहकाना’ या ‘Kidnapping’ की परिभाषा में नहीं रखा जा सकता।
  • जब यह सिद्ध है कि शारीरिक संबंध विवाह के बाद बने और लड़की ने सहमति दी, तो बलात्कार का अपराध सिद्ध नहीं होता।

4. विधिक प्रावधानों का विश्लेषण

(i) अपहरण की परिभाषा (BNS, 2023 / पूर्व IPC)

  • धारा 136, भारतीय न्याय संहिता (BNS) (पूर्व IPC की धारा 361) के अनुसार, यदि कोई नाबालिग (लड़की की उम्र 18 वर्ष से कम) को उसके अभिभावक की इच्छा के विरुद्ध ले जाया जाता है, तो यह ‘अपहरण’ कहलाता है।
  • लेकिन यदि लड़की 16-18 वर्ष की उम्र के बीच है और अपनी स्वेच्छा से जाती है, तो हर मामले में इसे अपहरण नहीं कहा जा सकता।

(ii) बहकाना (Enticement)

  • बहकाने का तात्पर्य है—किसी व्यक्ति द्वारा छल, प्रलोभन या झूठे वादे से किसी को अपने साथ ले जाना।
  • मात्र स्वेच्छा से जाने की स्थिति में बहकाने का तत्व नहीं होता।

(iii) बलात्कार की परिभाषा (BNS, 2023 / पूर्व IPC)

  • धारा 64, BNS (पूर्व IPC की धारा 375) के अनुसार, यदि संबंध लड़की की इच्छा के विरुद्ध हों, या उसकी आयु 18 वर्ष से कम हो, तो यह बलात्कार कहलाता है।
  • विवाह के बाद बने संबंध, सहमति से बने होने पर बलात्कार नहीं माने जाएंगे।

5. न्यायालय का निर्णय

न्यायालय ने साक्ष्यों और परिस्थितियों का अवलोकन करते हुए कहा:

  1. पीड़िता 16 वर्ष से अधिक उम्र की थी।
  2. उसने अपनी इच्छा से आरोपी के साथ विवाह किया।
  3. शारीरिक संबंध विवाह के बाद सहमति से बने।
  4. अभियोजन पक्ष यह सिद्ध नहीं कर पाया कि आरोपी ने बल प्रयोग या धोखा दिया हो।

अतः न्यायालय ने आरोपी इस्लाम @ पल्लू को अपहरण और बलात्कार दोनों आरोपों से बरी कर दिया।


6. निर्णय का महत्व

यह फैसला कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है:

  • कानूनी स्पष्टता: अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि सिर्फ चले जाना अपहरण नहीं है।
  • सहमति (Consent) का महत्व: अदालत ने कहा कि जब संबंध सहमति से बने हों, तो बलात्कार का आरोप टिक नहीं सकता।
  • न्यायिक संतुलन: अदालत ने माना कि कानून का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए और झूठे मामलों से आरोपी को बचाना भी उतना ही जरूरी है।

7. पूर्ववर्ती न्यायालयीन दृष्टांत

इस निर्णय से पहले भी कई मामलों में उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों ने ऐसे ही विचार प्रकट किए हैं:

  • S. Varadarajan बनाम State of Madras (AIR 1965 SC 942): सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यदि लड़की अपनी इच्छा से आरोपी के साथ जाती है, तो यह अपहरण नहीं है।
  • Shyam and Another बनाम State of Maharashtra (1995 Cri LJ 3974): अदालत ने कहा कि ‘स्वेच्छा से जाना’ अपहरण नहीं है।
  • Lata Singh बनाम State of U.P. (2006) 5 SCC 475: सुप्रीम कोर्ट ने अंतरजातीय विवाह करने वालों की स्वतंत्रता को मान्यता दी और कहा कि वयस्क लड़की अपनी इच्छा से विवाह कर सकती है।

8. सामाजिक दृष्टिकोण

भारतीय समाज में अक्सर ऐसे मामलों में परिवार या समाज के दबाव के कारण अपहरण या बलात्कार का मामला दर्ज हो जाता है।

  • कभी-कभी परिजन अपनी इज्जत बचाने के लिए गलत धाराएँ लगवा देते हैं।
  • यह निर्णय ऐसे मामलों में न्यायिक दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है कि अदालत केवल तथ्यों और सबूतों के आधार पर ही निर्णय लेगी।

9. महिला सुरक्षा और स्वतंत्रता का संतुलन

यह सच है कि महिलाओं और बालिकाओं की सुरक्षा हेतु कठोर कानून बनाए गए हैं। लेकिन साथ ही यह भी आवश्यक है कि—

  • इन कानूनों का दुरुपयोग न हो।
  • लड़की की स्वतंत्र इच्छा का सम्मान किया जाए।
  • न्यायालय यह सुनिश्चित करे कि सहमति और उम्र के आधार पर ही अपराध सिद्ध हो।

10. आलोचना और सुझाव

हालाँकि इस फैसले ने कई बिंदुओं को स्पष्ट किया है, फिर भी कुछ आलोचनात्मक दृष्टिकोण भी हो सकते हैं:

  • 16 से 18 वर्ष के बीच की लड़कियों को अभी भी नाबालिग माना जाता है। इस उम्र में उनका निर्णय परिपक्व न हो सकता है।
  • इसलिए न्यायालय को प्रत्येक मामले में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।

सुझाव:

  • ऐसे मामलों की सुनवाई फास्ट-ट्रैक कोर्ट में हो।
  • समाज को जागरूक किया जाए कि प्रेम या विवाह के मामलों को फौजदारी अपराध न बनाया जाए।
  • पुलिस को निष्पक्ष जाँच करनी चाहिए।

निष्कर्ष

इलाहाबाद हाईकोर्ट का इस्लाम @ पल्लू बनाम राज्य (2025) निर्णय इस बात को रेखांकित करता है कि कानून को अंधाधुंध लागू करने के बजाय उसकी आत्मा और उद्देश्य को समझना आवश्यक है।

  • किसी लड़की का अपनी इच्छा से किसी युवक के साथ चले जाना न तो अपहरण है और न ही बहकाना।
  • यदि शारीरिक संबंध विवाह के बाद सहमति से बने हों, तो बलात्कार का अपराध सिद्ध नहीं होता।
  • यह निर्णय न्यायपालिका की उस सोच को दर्शाता है जहाँ व्यक्तिगत स्वतंत्रता, सहमति और मानव गरिमा को सर्वोच्च महत्व दिया गया है।

इस प्रकार, यह फैसला न केवल आरोपी की बरी होने की राहत है बल्कि भारतीय आपराधिक न्याय व्यवस्था में स्वतंत्र इच्छा और सहमति की अवधारणा को एक नया आयाम प्रदान करता है।


1. केस का नाम क्या है?

इस्लाम @ पल्लू बनाम राज्य (इलाहाबाद हाईकोर्ट, 2025)।


2. मामले में मुख्य आरोप क्या थे?

आरोपी पर लड़की के अपहरण और बलात्कार का आरोप था।


3. अभियोजन पक्ष का क्या कहना था?

अभियोजन ने कहा कि आरोपी ने लड़की को बहकाकर अपने साथ ले गया और संबंध बनाए।


4. बचाव पक्ष का तर्क क्या था?

लड़की 16 वर्ष से अधिक थी, उसने स्वेच्छा से आरोपी के साथ विवाह किया और संबंध विवाह के बाद बने।


5. अदालत ने अपहरण पर क्या कहा?

यदि लड़की अपनी इच्छा से आरोपी के साथ जाती है, तो यह अपहरण या बहकाना नहीं माना जाएगा।


6. अदालत ने बलात्कार के आरोप पर क्या कहा?

जब संबंध विवाह के बाद सहमति से बने, तो बलात्कार का अपराध सिद्ध नहीं होता


7. अदालत ने किस आधार पर आरोपी को बरी किया?

लड़की की उम्र 16+ थी, उसकी सहमति थी, और संबंध विवाहोपरांत बने।


8. अदालत ने कौन-सा सिद्धांत स्पष्ट किया?

सिर्फ किसी के साथ चले जाना अपहरण या बहकाना नहीं है।


9. इस केस का महत्व क्या है?

यह निर्णय सहमति (Consent) और स्वतंत्र इच्छा को आपराधिक मामलों में अहम मान्यता देता है।


10. कौन-सा सुप्रीम कोर्ट का पुराना केस इससे जुड़ा है?

S. Varadarajan बनाम State of Madras (1965) – जिसमें कहा गया कि लड़की का स्वेच्छा से जाना अपहरण नहीं है।