“किशोर विवाह और पॉक्सो अधिनियम: उत्तराखंड हाईकोर्ट की चिंता और कानूनी चेतावनी”
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अहम मुद्दे पर गहरी चिंता जताई है। अदालत ने देखा कि बड़ी संख्या में किशोर अवस्था के युवक-युवतियाँ प्रेम-विवाह कर रहे हैं और इसके पश्चात अपने जीवन की सुरक्षा के लिए न्यायालय की शरण में आ रहे हैं। इस संदर्भ में कोर्ट ने बाल कल्याण समिति के सचिव श्री चंद्रेश यादव को पूर्व में तलब किया था, जो निर्धारित तिथि पर कोर्ट में उपस्थित हुए।
हाईकोर्ट की टिप्पणी:
अदालत ने कहा कि किशोरों में कानून और समाज की संवेदनशीलता को लेकर जागरूकता की भारी कमी है। नाबालिगों द्वारा विवाह करना न केवल सामाजिक चुनौती है, बल्कि यह कई बार पॉक्सो अधिनियम, 2012 (POCSO Act) के तहत अपराध भी बन सकता है।
पॉक्सो अधिनियम की भूमिका:
पॉक्सो अधिनियम का उद्देश्य बच्चों को यौन शोषण, उत्पीड़न और शारीरिक शोषण से बचाना है। अधिनियम के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति, चाहे नाबालिग हो या बालिग, 18 वर्ष से कम आयु की लड़की के साथ यौन संबंध बनाता है, तो वह कानूनन दंडनीय है, भले ही यह सहमति से ही क्यों न हो।
कोर्ट का निर्देश:
हाईकोर्ट ने श्री चंद्रेश यादव को निर्देश दिया कि वे राज्य के किशोरों और उनके परिवारों के बीच इस संबंध में व्यापक जागरूकता अभियान चलाएं। इसमें स्कूलों, कॉलेजों और ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष शिविर लगाकर पॉक्सो अधिनियम और किशोर कानूनों की जानकारी देना शामिल हो।
कानूनी परिणाम:
- 18 वर्ष से कम आयु की लड़की या लड़के द्वारा किया गया विवाह कानूनन मान्य नहीं माना जाता।
- पॉक्सो अधिनियम के अंतर्गत किसी भी प्रकार का यौन संबंध बाल यौन शोषण की श्रेणी में आता है।
- ऐसे मामलों में प्रेम संबंध को आधार बनाकर सुरक्षा मांगने वाले याचिकाकर्ताओं के विरुद्ध एफआईआर दर्ज हो सकती है।
समाज की जिम्मेदारी:
समाज और अभिभावकों की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि वे अपने बच्चों को कानून की जानकारी दें, उन्हें उनके अधिकार और दायित्व समझाएं और कम उम्र में विवाह की सामाजिक, मानसिक और कानूनी जटिलताओं के बारे में शिक्षित करें।