“किशोर की भूल जीवनभर की सजा नहीं: — इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय, निजता के अधिकार और पुनर्वास के सिद्धांत पर गूंजता संदेश
🔹 प्रस्तावना
कानून केवल दंड देने का साधन नहीं है, बल्कि यह सुधार और पुनर्वास का माध्यम भी है। विशेष रूप से जब बात किशोर अपराधों (Juvenile Offences) की आती है, तो न्याय प्रणाली का उद्देश्य केवल सजा नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत का अवसर देना होता है।
इसी सिद्धांत को पुनः स्थापित करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय दिया है, जिसमें कहा गया कि —
“किशोरावस्था में किए गए अपराध का प्रभाव व्यक्ति की भविष्य की नौकरी या सरकारी सेवा पर नहीं पड़ना चाहिए।”
न्यायालय ने यह भी कहा कि किसी व्यक्ति से उसके किशोरावस्था के अपराधों का खुलासा कराना उसके निजता (Right to Privacy) और प्रतिष्ठा (Right to Dignity) के मौलिक अधिकारों का हनन है।
यह निर्णय न केवल एक व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि भारत की न्याय प्रणाली में सुधारवादी दृष्टिकोण (Reformative Approach) को भी पुनः पुष्ट करता है।
🔹 मामला क्या था?
यह मामला जवाहर नवोदय विद्यालय समिति और शिक्षक पुंडरीकाक्ष देव पाठक से संबंधित था।
- वर्ष 2011 में पुंडरीकाक्ष देव पाठक के विरुद्ध एक आपराधिक मुकदमा दर्ज हुआ था।
- उस समय उनकी आयु मात्र 17 वर्ष थी, अर्थात् वे किशोर (Juvenile) थे।
- वर्ष 2021 में चयन प्रक्रिया के दौरान उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज पुराने मुकदमे का उल्लेख नहीं किया।
- इस आधार पर उनकी सेवा समाप्त कर दी गई।
- बाद में, किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board) ने वर्ष 2024 में उन्हें किशोर घोषित कर दिया।
- इसके बाद मामला केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) में गया, जिसने विभाग को पुनर्विचार का निर्देश दिया।
- अंततः मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुँचा।
🔹 कोर्ट में प्रमुख प्रश्न
कोर्ट के समक्ष मुख्य प्रश्न यह था कि —
- क्या किसी व्यक्ति द्वारा किशोरावस्था में किए गए अपराध को छिपाना सरकारी सेवा के लिए अयोग्यता का कारण हो सकता है?
- क्या किशोर न्याय अधिनियम के तहत किसी व्यक्ति से उसका अतीत पूछना उसकी निजता का उल्लंघन है?
- क्या किशोर अपराधों का रिकॉर्ड व्यक्ति के जीवनभर उसके खिलाफ उपयोग किया जा सकता है?
🔹 कोर्ट का निर्णय
मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेन्द्र की खंडपीठ ने कहा कि —
“यदि कोई व्यक्ति अपराध के समय किशोर था, तो उसके विरुद्ध दर्ज आपराधिक मामला या उसका प्रकटीकरण न करना, सरकारी सेवा के लिए अयोग्यता का कारण नहीं बन सकता।”
कोर्ट ने आगे कहा कि —
“किशोर न्याय अधिनियम का उद्देश्य यह है कि बालक को सुधार का अवसर दिया जाए, न कि उसके अतीत का कलंक उसे जीवनभर ढोना पड़े।”
अतः —
- याची (शिक्षक पुंडरीकाक्ष देव पाठक) को सेवा से बर्खास्त करना अनुचित है।
- नवोदय विद्यालय समिति की याचिका को खारिज किया गया।
- याची को एक माह के भीतर सेवा में पुनः बहाल करने का आदेश दिया गया।
- साथ ही, उन्हें समस्त वित्तीय और सेवा संबंधी लाभ देने का भी निर्देश दिया गया।
🔹 कोर्ट का कानूनी विश्लेषण
(1) किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 की भावना
कोर्ट ने कहा कि इस अधिनियम का मूल उद्देश्य है —
- किशोरों को दंडित करने के बजाय सुधारना और पुनर्वास करना।
- अपराध से संबंधित रिकॉर्ड को मिटा देना (Erasure of Record) ताकि वह समाज में सम्मानपूर्वक पुनः एकीकृत (Reintegrate) हो सके।
इसलिए, यदि कोई व्यक्ति किशोर था, तो उसके अपराध का उल्लेख या प्रकटीकरण भविष्य में अनिवार्य नहीं है।
(2) निजता और प्रतिष्ठा का अधिकार
कोर्ट ने माना कि व्यक्ति से उसके किशोर अपराधों का खुलासा कराना, उसके Right to Privacy और Right to Dignity का उल्लंघन है।
“किशोर से उसके अतीत का खुलासा कराना उसकी निजता और प्रतिष्ठा के अधिकार का हनन है।”
— इलाहाबाद हाईकोर्ट
(3) सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख निर्णयों का उल्लेख
हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में निम्नलिखित सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया —
- अवतार सिंह बनाम भारत संघ (2016) — अदालत ने कहा था कि हर मामले में यह देखना होगा कि अपराध की प्रकृति क्या थी, व्यक्ति की उम्र क्या थी, और क्या वह बाद में सुधार हुआ या नहीं।
- रमेश बिश्नोई बनाम भारत संघ (2022) — किशोर अपराध के कारण नौकरी से इनकार अनुचित बताया गया।
- शिवम मौर्य बनाम राज्य उत्तर प्रदेश (2024) — न्यायालय ने कहा था कि किशोर अपराध को जीवनभर का दाग नहीं बनाया जा सकता।
🔹 कोर्ट की टिप्पणी — सुधार बनाम दंड
कोर्ट ने बहुत महत्वपूर्ण टिप्पणी की:
“किशोर न्याय प्रणाली का उद्देश्य प्रतिशोध (retribution) नहीं बल्कि सुधार (reformation) है।
यदि किशोर ने अपनी गलती सुधार ली है और समाज में ईमानदारी से जी रहा है, तो उसे उसके अतीत के लिए दंडित नहीं किया जा सकता।”
इस प्रकार, न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि ‘किशोर अपराध’ जीवनभर का कलंक नहीं, बल्कि सीखने और सुधारने का अवसर है।
🔹 बाल कल्याण समिति (CWC) के अधिकारों पर भी टिप्पणी
उसी सुनवाई के दौरान, हाईकोर्ट ने एक और अहम फैसला दिया —
कि बाल कल्याण समिति (Child Welfare Committee – CWC) को एफआईआर (FIR) दर्ज कराने का निर्देश देने का कोई अधिकार नहीं है।
मामला:
- बदायूं की एक नाबालिग विवाहित गर्भवती लड़की के मामले में CWC ने बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया था।
- लड़की के पिता और पति ने इस आदेश को चुनौती दी।
कोर्ट ने कहा:
- CWC केवल देखभाल, संरक्षण और पुनर्वास से जुड़े मामलों तक सीमित है।
- उसे सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत एफआईआर दर्ज कराने का अधिकार नहीं है।
- यह अधिकार केवल न्यायिक मजिस्ट्रेट (Magistrate) के पास है।
इस प्रकार, कोर्ट ने CWC के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि उसने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कार्य किया।
🔹 निर्णय का सामाजिक और संवैधानिक महत्व
यह निर्णय कई स्तरों पर महत्वपूर्ण है:
- निजता और प्रतिष्ठा की रक्षा:
किशोरों को अपने अतीत से मुक्त होकर जीवन जीने का अवसर प्रदान करता है। - न्याय प्रणाली का मानवीय चेहरा:
यह निर्णय बताता है कि भारतीय न्यायालय केवल सजा देने वाली संस्था नहीं, बल्कि सुधार और पुनर्वास की समर्थक भी है। - किशोर न्याय अधिनियम की भावना को मजबूत करता है:
इसका उद्देश्य “पुनर्स्थापन (Rehabilitation)” और “पुनर्वास (Reintegration)” है, न कि दंड। - सरकारी सेवाओं में समान अवसर:
अब ऐसे लोग, जिन्होंने किशोरावस्था में भूल की थी लेकिन सुधर चुके हैं, उन्हें भी सरकारी सेवाओं में न्यायपूर्ण अवसर मिलेगा।
🔹 निष्कर्ष
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह निर्णय भारतीय न्याय प्रणाली के मानवीय पहलू को पुनः उजागर करता है।
किशोरावस्था में की गई भूल व्यक्ति के भविष्य को अंधकारमय नहीं बना सकती।
कोर्ट ने यह संदेश दिया कि समाज को ऐसे युवाओं को “सजा” नहीं, बल्कि “दूसरा मौका” देना चाहिए।
“कानून का उद्देश्य केवल अपराधी को दंडित करना नहीं, बल्कि समाज को एक बेहतर नागरिक लौटाना है।”
— इलाहाबाद हाईकोर्ट
यह फैसला न केवल न्याय की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार) की व्याख्या को भी नई दिशा देता है।
🔹 सारांश (संक्षेप में)
| मुद्दा | हाईकोर्ट का दृष्टिकोण |
|---|---|
| किशोरावस्था में अपराध | सेवा में बाधक नहीं |
| अतीत का खुलासा | निजता का उल्लंघन |
| किशोर न्याय अधिनियम का उद्देश्य | पुनर्वास और सुधार |
| CWC का अधिकार | एफआईआर दर्ज कराने का नहीं |
| याची के प्रति आदेश | पुनः नियुक्ति और लाभों की बहाली |
| समाज के लिए संदेश | किशोर अपराधी को दूसरा अवसर देना चाहिए |
न्यायालय का यह निर्णय केवल एक व्यक्ति की जीत नहीं, बल्कि उन सभी युवाओं की आशा है जिन्होंने कभी गलती की लेकिन सुधार का मार्ग चुना।
“किशोर की भूल उसका भविष्य नहीं तय कर सकती;
न्याय तभी पूर्ण है जब उसमें करुणा और सुधार की गुंजाइश हो।”