“कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न: POSH अधिनियम क्या कहता है?”
प्रस्तावना
क्या आपके काम करने की जगह पर आपको कभी असहज महसूस हुआ है? क्या किसी सहकर्मी की टिप्पणी, छूने का तरीका या नज़रे आपको अजीब लगी हैं? यदि हाँ, तो यह यौन उत्पीड़न हो सकता है — और यह गंभीर अपराध है।
भारत में महिलाएँ अब केवल घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं हैं। वे कॉरपोरेट, शिक्षा, विज्ञान, उद्योग, प्रशासन और हर क्षेत्र में अपनी पहचान बना रही हैं। लेकिन उनके इस सफर में सुरक्षित कार्यस्थल की अनिवार्यता सबसे महत्वपूर्ण बन गई है।
इसी ज़रूरत को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने 2013 में एक बेहद महत्वपूर्ण कानून बनाया —
POSH अधिनियम, यानी Sexual Harassment of Women at Workplace (Prevention, Prohibition and Redressal) Act, 2013.
1. POSH अधिनियम क्या है?
POSH अधिनियम 2013, महिलाओं को उनके कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न से सुरक्षा देने के लिए बना एक विशेष कानून है।
इसका उद्देश्य है:
- यौन उत्पीड़न को रोकना (Prevention),
- उसका प्रतिबंध करना (Prohibition), और
- पीड़िता को न्याय दिलाना (Redressal)।
यह अधिनियम सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1997 में दिए गए “विशाखा दिशानिर्देशों” के आधार पर बनाया गया था, जो कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक ऐतिहासिक कदम था।
2. यौन उत्पीड़न क्या है? (What Constitutes Sexual Harassment)
POSH अधिनियम यौन उत्पीड़न को केवल शारीरिक छेड़छाड़ तक सीमित नहीं रखता। यह इसकी व्यापक व्याख्या करता है। इसमें निम्नलिखित कृत्य शामिल हो सकते हैं:
a. प्रत्यक्ष यौन टिप्पणियाँ या अश्लील इशारे
- जैसे: “तुम बहुत हॉट लग रही हो आज”, आंख मारना, फब्तियाँ कसना
b. अवांछित स्पर्श या शारीरिक संपर्क
c. अश्लील चित्र, मेसेज या वीडियो भेजना
d. यौन मांग या किसी प्रकार का दबाव
e. काम में बढ़ोत्तरी या नौकरी से निकालने की धमकी यौन संबंध के बदले
f. महिला के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाना, अपमान करना
3. POSH अधिनियम के प्रमुख प्रावधान
a. कार्यस्थल की परिभाषा
- केवल ऑफिस ही नहीं, बल्कि स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, NGO, फैक्ट्री, ग्राहक स्थल, वर्क फ्रॉम होम, ट्रेनिंग सेंटर आदि भी कार्यस्थल माने जाते हैं।
b. आंतरिक शिकायत समिति (Internal Complaints Committee – ICC)
- हर संस्था जहाँ 10 या अधिक कर्मचारी हैं, वहाँ ICC बनाना अनिवार्य है।
- ICC में एक महिला अध्यक्ष होनी चाहिए।
- कम से कम एक बाहरी सदस्य (NGO या महिला अधिकार कार्यकर्ता) होना चाहिए।
- शिकायत दर्ज होने के 90 दिनों के भीतर जांच पूरी करनी होती है।
c. शिकायत कैसे करें?
- पीड़िता को 3 महीने (90 दिन) के भीतर शिकायत दर्ज करनी होती है।
- शिकायत लिखित होनी चाहिए।
- ICC महिला की पहचान गोपनीय रखती है।
d. जांच प्रक्रिया
- ICC दोनों पक्षों को सुनती है।
- गवाहों और दस्तावेज़ों की जांच होती है।
- जांच पूरी होने पर रिपोर्ट तैयार होती है।
- दोषी पाए जाने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाती है — जैसे चेतावनी, वेतन कटौती, सस्पेंशन, या नौकरी से निकालना।
e. झूठी शिकायतों से सुरक्षा
- यदि शिकायत झूठी पाई जाती है तो उस पर भी ICC कार्रवाई कर सकती है, परन्तु यह सिद्ध होना चाहिए कि शिकायत जानबूझकर झूठी की गई थी।
4. POSH अधिनियम की विशेषताएँ
विशेषता | विवरण |
---|---|
लिंग आधारित सुरक्षा | केवल महिलाओं के लिए लागू (वर्तमान में) |
अनिवार्य समिति | हर कंपनी में ICC बनाना कानूनी है |
गोपनीयता | शिकायतकर्ता की पहचान पूरी तरह गोपनीय रहती है |
समयसीमा | 90 दिनों में जांच, 10 दिनों में रिपोर्ट |
सजा | दोषी साबित होने पर नौकरी से हटाना, वेतन कटौती, पुलिस में केस |
5. कौन कर सकता है शिकायत?
- महिला कर्मचारी (स्थायी, अस्थायी, प्रशिक्षु, कॉन्ट्रैक्ट पर)
- लिव-इन पार्टनर, इंटर्न या वॉलंटियर
- किसी भी उम्र की महिला — 18 वर्ष से ऊपर की छात्रा या कर्मचारी
6. संस्थाओं की ज़िम्मेदारी
हर संस्था को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि:
- POSH अधिनियम की कॉपी सभी कर्मचारियों तक पहुँचे।
- समय-समय पर जागरूकता सेमिनार और ट्रेनिंग हो।
- ICC की जानकारी सार्वजनिक रूप से लगाई जाए (जैसे नोटिस बोर्ड पर)।
- महिलाओं को सुरक्षित, सहायक और समान अवसरों वाला माहौल मिले।
यदि कोई संस्था ICC नहीं बनाती, तो उस पर ₹50,000 तक का जुर्माना लग सकता है।
बार-बार उल्लंघन करने पर संस्था का लाइसेंस या रजिस्ट्रेशन रद्द भी किया जा सकता है।
7. POSH अधिनियम के प्रभाव और सफलता की कहानियाँ
POSH अधिनियम आने के बाद:
- कॉरपोरेट जगत में महिलाएँ अपने हक के लिए आवाज़ उठाने लगी हैं।
- कार्यस्थलों पर जागरूकता वर्कशॉप, पॉलिसी और ट्रेनिंग शुरू हुई हैं।
- कई बड़ी कंपनियों ने POSH पॉलिसी को HR पॉलिसी का अभिन्न हिस्सा बना दिया है।
2018 में #MeToo आंदोलन ने POSH अधिनियम की ताक़त को ज़मीन पर लाकर दिखाया। कई महिलाएँ अपने उत्पीड़कों के ख़िलाफ़ सामने आईं और कार्रवाई हुई।
8. POSH अधिनियम से संबंधित चुनौतियाँ
a. जागरूकता की कमी
- छोटे व्यवसायों और ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी POSH के बारे में जानकारी नहीं है।
b. डर और सामाजिक दबाव
- कई महिलाएँ बदनामी या नौकरी जाने के डर से शिकायत नहीं करतीं।
c. संस्थाओं की अनदेखी
- कई कंपनियाँ केवल दिखावे के लिए ICC बनाती हैं, पर असल में कार्यवाही नहीं करतीं।
9. अगर आप कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का शिकार हों, तो क्या करें?
कदम-दर-कदम गाइड:
- घबराएँ नहीं। चुप न रहें।
- जो हुआ है, उसका विवरण (दिन, समय, स्थान) लिखें।
- ICC में लिखित शिकायत दर्ज करें।
- यदि संस्था कार्रवाई नहीं करती, तो जिला शिकायत समिति (Local Committee) से संपर्क करें।
- NCW या महिला आयोग से मदद लें।
10. हेल्पलाइन और संसाधन
सेवा | संपर्क |
---|---|
महिला हेल्पलाइन | 1091 |
राष्ट्रीय महिला आयोग | www.ncw.nic.in |
POSH से संबंधित जानकारी | www.shebox.nic.in |
कानूनी सहायता | जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) |
निष्कर्ष
POSH अधिनियम 2013 सिर्फ एक कानून नहीं, बल्कि एक महिला के आत्मसम्मान, गरिमा और सुरक्षा का औज़ार है। कार्यस्थल पर महिलाएँ तभी अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकती हैं, जब वहाँ भयमुक्त, सम्मानजनक और सहयोगी वातावरण हो।
यदि कोई महिला अपने अधिकारों को जानती है और उनका प्रयोग करती है, तो वह खुद को भी और दूसरों को भी सशक्त बनाती है।
“चुप्पी अपराध को बढ़ावा देती है, और आवाज़ परिवर्तन लाती है।”
आइए, POSH को सिर्फ कागज़ का कानून नहीं, बल्कि जमीनी हक़ीक़त बनाएं।