कार्यस्थल पर महिलाओं का संरक्षण: यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और प्रतितोष) अधिनियम, 2013 पर एक विस्तृत लेख

कार्यस्थल पर महिलाओं का संरक्षण: यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और प्रतितोष) अधिनियम, 2013 पर एक विस्तृत लेख


परिचय

भारत में महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न एक गम्भीर सामाजिक और संवैधानिक मुद्दा रहा है। कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न महिलाओं की गरिमा, आत्म-सम्मान और कार्य के अधिकार का हनन करता है। इसी समस्या को गंभीरता से लेते हुए भारत सरकार ने “यौन उत्पीड़न (कार्यस्थल पर महिलाओं का संरक्षण) अधिनियम, 2013” को लागू किया, जिसे संक्षेप में POSH Act, 2013 कहा जाता है। यह अधिनियम कार्यस्थलों पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से सुरक्षा, निवारण और उपाय का अधिकार प्रदान करता है।


अधिनियम की उत्पत्ति और पृष्ठभूमि

इस अधिनियम की नींव “विशाखा बनाम राज्य राजस्थान” (1997) के ऐतिहासिक निर्णय पर आधारित है, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने महिलाओं के कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न से सुरक्षा के लिए दिशा-निर्देश (Vishaka Guidelines) जारी किए थे। यह निर्णय अनुच्छेद 14, 15, 19(1)(g) और 21 के अंतर्गत महिलाओं के मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु दिया गया था।


अधिनियम का उद्देश्य

  • कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करना।
  • उत्पीड़न की शिकायतों के लिए उचित प्रक्रिया और निवारण तंत्र स्थापित करना।
  • महिलाओं को सुरक्षित, गरिमामयी और स्वतंत्र कार्य वातावरण सुनिश्चित करना।

महत्वपूर्ण परिभाषाएँ

  1. कार्यस्थल (Workplace): इसमें निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के कार्यालय, NGO, अस्पताल, स्कूल, कॉलेज, खेल परिसर, परिवहन वाहन आदि शामिल हैं।
  2. महिला (Woman): कोई भी महिला, चाहे वह स्थायी, अस्थायी, प्रशिक्षु, अनुबंध पर कार्यरत हो या घरेलू कामकाज में लगी हो।
  3. यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment): इसमें अश्लील टिप्पणियाँ, अनुचित शारीरिक संपर्क, अश्लील इशारे, यौन उपयुक्त टिप्पणियाँ, धमकी देना या प्रतिकूल असर डालना शामिल है।

आंतरिक शिकायत समिति (Internal Complaints Committee – ICC)

  • प्रत्येक कार्यालय में 10 या उससे अधिक कर्मचारियों की संख्या होने पर ICC का गठन अनिवार्य है।
  • इसमें एक वरिष्ठ महिला कर्मचारी को अध्यक्ष बनाया जाता है, एक NGO से सदस्य, दो कर्मचारी प्रतिनिधि होते हैं।
  • यह समिति शिकायत की जांच कर 90 दिनों के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करती है और 10 दिनों में रिपोर्ट संबंधित पक्षों को दी जाती है।

स्थानीय शिकायत समिति (Local Complaints Committee – LCC)

  • यदि कार्यस्थल में ICC गठित नहीं है (जैसे घरेलू कामगारों के लिए), तो जिला अधिकारी द्वारा LCC गठित की जाती है।
  • यह समिति ग्रामीण व असंगठित क्षेत्रों की महिलाओं के संरक्षण के लिए कार्य करती है।

शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया

  • महिला को यौन उत्पीड़न की घटना के 3 महीने के भीतर शिकायत दर्ज करनी होती है।
  • समिति दोनों पक्षों की सुनवाई कर निर्णय देती है।
  • दोषी पाए जाने पर वेतन कटौती, माफी मांगना, काउंसलिंग, पदावनति, सेवा से बर्खास्तगी आदि सजा दी जा सकती है।

दंडात्मक प्रावधान

  • झूठी शिकायत या साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ पर शिकायतकर्ता पर भी कार्रवाई हो सकती है, लेकिन यह समिति की विस्तृत जांच पर आधारित होता है।
  • कार्यस्थल पर समिति का गठन न करने पर नियोक्ता पर ₹50,000 तक का जुर्माना और पुनरावृत्ति पर दोगुना जुर्माना या लाइसेंस रद्द हो सकता है।

अधिनियम का महत्व

  • यह अधिनियम महिलाओं को आत्मनिर्भर और स्वतंत्र बनाने की दिशा में मील का पत्थर है।
  • कार्यस्थल को अधिक समावेशी और सुरक्षित बनाता है।
  • महिलाओं की कार्यक्षमता, मनोबल और संस्थान की छवि को बेहतर बनाता है।

अभियान और जागरूकता

सरकार और गैर-सरकारी संस्थाएँ मिलकर POSH अधिनियम पर जागरूकता फैला रही हैं। कई कंपनियाँ वार्षिक POSH प्रशिक्षण और ऑडिट कराती हैं ताकि कानून का अनुपालन हो सके।


निष्कर्ष

“यौन उत्पीड़न (कार्यस्थल पर महिलाओं का संरक्षण) अधिनियम, 2013” महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह अधिनियम कार्यस्थल को महिलाओं के लिए सुरक्षित, गरिमामयी और समान अवसर प्रदान करने वाला बनाता है। हालांकि, इस अधिनियम की सफलता इसके सही क्रियान्वयन, जागरूकता और समाज के सभी वर्गों के सहयोग पर निर्भर करती है।