“काम के दौरान मज़दूर की मृत्यु पर मुआवज़ा: Employees’ Compensation Act, 1923 के तहत अधिकार और उपाय”


“काम के दौरान मज़दूर की मृत्यु पर मुआवज़ा: Employees’ Compensation Act, 1923 के तहत अधिकार और उपाय”


प्रस्तावना:
भारत में श्रमिकों की सुरक्षा और कल्याण को सुनिश्चित करने हेतु कई कानून बनाए गए हैं। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण कानून है “Employees’ Compensation Act, 1923” (पूर्व में Workmen’s Compensation Act)। यह अधिनियम उन मामलों में मुआवज़ा प्रदान करने का प्रावधान करता है, जहाँ कोई कर्मचारी कार्य के दौरान घायल होता है या उसकी मृत्यु हो जाती है। इस कानून का उद्देश्य श्रमिकों और उनके परिवारों को ऐसी आपातकालीन स्थिति में आर्थिक सहायता और न्याय दिलाना है।


प्रमुख प्रावधान:

1. अधिनियम का उद्देश्य:

यह अधिनियम उस स्थिति में मुआवज़ा प्रदान करने के लिए बनाया गया है, जब कोई कर्मचारी अपने कार्य स्थल पर या कार्य के दौरान घायल हो जाता है या उसकी मृत्यु हो जाती है।


2. मज़दूर की मृत्यु पर मुआवज़ा:

यदि कोई मज़दूर काम के दौरान मर जाता है, तो उसके आश्रितों (परिवार वालों) को मुआवज़े का हक़ है।

  • मुआवज़े की राशि मज़दूर की मासिक आय और उम्र पर निर्भर करती है, लेकिन अधिकतम ₹5 लाख तक का क्लेम संभव है (हाल की संशोधित अधिसूचनाओं के अनुसार)।
  • मुआवज़े की गणना [50% × मासिक वेतन × आयु के अनुसार निर्धारित गुणांक] या ₹1,20,000 में से जो अधिक हो, उस आधार पर की जाती है।

3. मालिक द्वारा मुआवज़ा न देना या गायब होना:

  • यदि मालिक मुआवज़ा देने से इनकार करता है या जानबूझकर गायब हो जाता है, तो यह अधिनियम का उल्लंघन है और मालिक के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की जा सकती है।
  • यह कार्यवाही Commissioner for Employees’ Compensation के समक्ष की जाती है।
  • मालिक की अनुपस्थिति या टालमटोल की स्थिति में मज़दूर के परिवार को न्यायालय द्वारा एकतरफा निर्णय के ज़रिए मुआवज़ा दिलाया जा सकता है।

4. न्याय का उपाय (Remedy):

  • पीड़ित परिवार या आश्रित व्यक्ति अधिनियम के तहत कर्मचारी मुआवज़ा आयुक्त (Commissioner for Employees’ Compensation) के समक्ष आवेदन कर सकता है।
  • आवेदन मजदूर की मृत्यु के एक वर्ष के भीतर करना आवश्यक होता है, लेकिन न्यायहित में देरी को माफ़ भी किया जा सकता है।
  • न्यायालय यदि संतुष्ट हो जाए कि मृत्यु कार्य-सम्बंधित है, तो वह मालिक को निर्धारित मुआवज़ा भुगतान करने का आदेश देता है।

5. सजा का प्रावधान:

यदि नियोक्ता जानबूझकर मुआवज़ा देने से इनकार करता है:

  • उस पर ₹50,000 तक का जुर्माना और/या
  • 1 वर्ष तक की कैद भी हो सकती है (धारा 30A के अंतर्गत)।

6. मुफ्त कानूनी सहायता और सरल प्रक्रिया:

  • श्रम विभाग से संबंधित अधिकारी, मज़दूरों को निशुल्क सलाह और सहायता प्रदान करते हैं।
  • अधिनियम की प्रक्रिया जटिल नहीं है, जिससे अशिक्षित या कम साधनों वाले परिवार भी मुआवज़े का दावा कर सकें।

महत्वपूर्ण निर्णय:
Oriental Insurance Co. Ltd. v. Mohd. Nasir (2009)
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि मृत्यु या चोट कार्य से संबंधित है, तो कर्मचारी के आश्रितों को उचित मुआवज़ा दिया जाना अनिवार्य है।


निष्कर्ष:
मज़दूर देश की रीढ़ होते हैं और उनके जीवन की सुरक्षा तथा उनके परिवार के कल्याण की ज़िम्मेदारी समाज और कानून दोनों की है। यदि कोई मज़दूर कार्य के दौरान मृत्यु को प्राप्त होता है, और मालिक मुआवज़ा नहीं देता या गायब हो जाता है, तो यह न केवल नैतिक अपराध है, बल्कि Employees’ Compensation Act, 1923 के तहत कानूनी अपराध भी है। ऐसे मामलों में पीड़ित परिवार को मुआवज़े का पूरा हक है, जिसे उचित कानूनी माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।