“कानून और फेक न्यूज़: किसकी जिम्मेदारी है सच्चाई?”

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“कानून और फेक न्यूज़: किसकी जिम्मेदारी है सच्चाई?”


प्रस्तावना

“फेक न्यूज़” – यानी झूठी, भ्रामक या गुमराह करने वाली जानकारी – आज के डिजिटल युग की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक बन चुकी है। व्हाट्सएप, फेसबुक, यूट्यूब और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के प्रसार ने समाचारों के वितरण को लोकतांत्रिक तो बना दिया है, लेकिन इसके साथ-साथ झूठ और आधे-अधूरे तथ्यों को भी तेजी से फैलाने का माध्यम बना दिया है।
जब फेक न्यूज़ समाज में हिंसा, घृणा, सामाजिक अस्थिरता या लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति अविश्वास फैलाती है, तो प्रश्न उठता है: सच्चाई की रक्षा किसकी जिम्मेदारी है – सरकार की, मीडिया की, टेक कंपनियों की या आम जनता की? इस लेख में हम फेक न्यूज़ की कानूनी स्थिति, प्रभाव, जिम्मेदार पक्षों और संभावित समाधान का विस्तार से विश्लेषण करेंगे।


फेक न्यूज़ का स्वरूप और प्रभाव

फेक न्यूज़ के प्रकार:

  1. राजनीतिक फेक न्यूज़: विरोधी दलों के खिलाफ झूठे आरोप या तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत की गई खबरें।
  2. धार्मिक या सांप्रदायिक फेक न्यूज़: धार्मिक भावनाएं भड़काने वाली असत्य घटनाएं या चित्र।
  3. स्वास्थ्य संबंधी फेक न्यूज़: वैक्सीन, महामारी या चिकित्सा संबंधी झूठी जानकारियाँ (जैसे COVID-19 से जुड़ी अफवाहें)।
  4. न्यायिक व कानूनी मामलों की फेक न्यूज़: कोर्ट के फैसलों, कानूनों या धाराओं के संबंध में झूठी या गलत व्याख्याएं।

प्रभाव:

  • सांप्रदायिक दंगे (जैसे मुजफ्फरनगर 2013 में वायरल वीडियो से भड़की हिंसा)
  • जनता में भ्रम और भय का माहौल
  • चुनाव परिणामों पर प्रभाव
  • न्यायपालिका और प्रशासन के प्रति अविश्वास
  • भीड़ द्वारा न्याय (Mob lynching)

भारतीय कानून और फेक न्यूज़

1. आईटी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act):

  • धारा 66A को पहले फेक न्यूज़ पर नियंत्रण के लिए इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन 2015 में श्रेया सिंघल केस में सुप्रीम कोर्ट ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उल्लंघन के आधार पर असंवैधानिक घोषित कर दिया।
  • धारा 69A के तहत सरकार वेबसाइट या सामग्री को ब्लॉक कर सकती है यदि वह देश की संप्रभुता, सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरा हो।

2. भारतीय दंड संहिता (IPC):

  • धारा 153A: विभिन्न वर्गों के बीच वैमनस्य बढ़ाने के लिए दंड।
  • धारा 295A: धार्मिक भावनाओं का अपमान।
  • धारा 505(1)(b): भय, अफवाह या असत्य सूचना फैलाना जो सार्वजनिक शांति को खतरे में डालती है।

3. प्रेस काउंसिल एक्ट और मीडिया आचार संहिता:

हालांकि प्रेस के लिए स्वनियमन की व्यवस्था है, परंतु डिजिटल और सोशल मीडिया पर स्पष्ट नियंत्रण की कमी है।


जिम्मेदारी का सवाल – कौन जिम्मेदार है सच्चाई के लिए?

1. सरकार की जिम्मेदारी:

  • कानून निर्माण, निगरानी तंत्र और सख्त कार्यवाही सुनिश्चित करना सरकार का कार्य है।
  • सरकार द्वारा फैक्ट चेक यूनिट या PIB फैक्ट चेक जैसे प्रयास सराहनीय हैं, लेकिन राजनीतिक पक्षपात के आरोपों से घिरे रहते हैं।

2. सोशल मीडिया कंपनियां:

  • फेसबुक, यूट्यूब, एक्स (पूर्व ट्विटर) जैसी कंपनियाँ मंच प्रदान करती हैं, इसलिए उनकी मॉडरेशन नीति, फैक्ट चेकिंग पार्टनरशिप, और रिपोर्टिंग सिस्टम प्रभावी होने चाहिए।
  • लेकिन “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” और “सेंसरशिप” के बीच संतुलन बनाना बड़ी चुनौती है।

3. मीडिया संस्थान:

  • समाचारों के सत्यापन और पत्रकारिता की नैतिकता निभाना मीडिया का दायित्व है।
  • टीआरपी और सनसनी के कारण कई बार मीडिया खुद भी फेक न्यूज़ का वाहक बन जाती है।

4. आम जनता की भूमिका:

  • हर व्यक्ति को सूचना की पुष्टि करना, अफवाहें न फैलाना, और डिजिटल साक्षरता अपनाना आवश्यक है।
  • शिक्षित और सतर्क नागरिक ही फेक न्यूज़ के खिलाफ सबसे बड़ी दीवार बन सकते हैं।

फेक न्यूज़ और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है, लेकिन अनुच्छेद 19(2) के तहत इस स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं — जैसे कि देश की संप्रभुता, कानून व्यवस्था, और नैतिकता की रक्षा हेतु।

लेकिन प्रश्न यह है – झूठ बोलना क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है? निश्चित रूप से नहीं।
इसलिए सत्य और झूठ के बीच स्पष्ट सीमा रेखा खींचना और संतुलन बनाए रखना कानून और समाज – दोनों की जिम्मेदारी है।


संभावित समाधान

  1. सख्त कानून बनाना और लागू करना: जैसे – डिजिटल इंडिया एक्ट का प्रस्ताव, जो सोशल मीडिया पर जवाबदेही को बढ़ाएगा।
  2. स्वतंत्र फैक्ट चेक संस्थानों को सशक्त बनाना।
  3. स्कूल-कॉलेज स्तर पर डिजिटल साक्षरता को पाठ्यक्रम में शामिल करना।
  4. प्लेटफॉर्म्स को स्थानीय स्तर की सामग्री को मॉडरेट करने हेतु AI और मानव समीक्षा तंत्र विकसित करना।
  5. कानून के साथ-साथ नागरिक जिम्मेदारी को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष

फेक न्यूज़ केवल एक तकनीकी या कानूनी समस्या नहीं है, बल्कि यह नैतिकता, सूचना और लोकतंत्र के बीच की लड़ाई है। झूठ, अगर बार-बार और तेजी से फैलाया जाए, तो वह सच का रूप लेने लगता है – और यही फेक न्यूज़ की सबसे खतरनाक प्रवृत्ति है।
इसलिए सच्चाई की जिम्मेदारी केवल सरकार या मीडिया की नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति की है जो सूचना साझा करता है, पढ़ता है या उस पर प्रतिक्रिया देता है।
कानून दिशा दिखा सकता है, मंच सीमाएं निर्धारित कर सकता है, लेकिन अंततः सच्चाई की रक्षा नागरिक चेतना और जिम्मेदार आचरण से ही संभव है।