IndianLawNotes.com

कर्नाटक हाईकोर्ट ने औद्योगिक प्रतिष्ठानों में पीरियड लीव लागू करने के सरकारी आदेश पर लगाई रोक: अधिकार, नीति और उद्योग जगत की दुविधा पर विस्तृत विश्लेषण

कर्नाटक हाईकोर्ट ने औद्योगिक प्रतिष्ठानों में पीरियड लीव लागू करने के सरकारी आदेश पर लगाई रोक: अधिकार, नीति और उद्योग जगत की दुविधा पर विस्तृत विश्लेषण

      कर्नाटक में महिलाओं के लिए मासिक धर्म अवकाश (Menstrual Leave) को लागू करने की दिशा में एक बड़ा कदम अचानक रुक गया, जब कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा जारी उस आदेश पर अस्थायी रोक (Stay) लगा दी, जिसमें सभी पंजीकृत औद्योगिक प्रतिष्ठानों में पीरियड लीव अनिवार्य करने के निर्देश दिए गए थे।
यह निर्णय न केवल कानून, नीतियों और श्रमिक कल्याण से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है, बल्कि यह भी बताता है कि महिलाओं के स्वास्थ्य अधिकारों और उद्योग जगत की व्यावहारिक चिंताओं के बीच संतुलन बनाना कितना जटिल है।

        इस फैसले ने राष्ट्रीय स्तर पर बहस शुरू कर दी है—क्या पीरियड लीव ज़रूरी है? क्या इससे महिलाओं के रोजगार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा? क्या सरकार इस तरह का आदेश कानूनी रूप से जारी कर सकती है?

इन्हीं सवालों के बीच कर्नाटक हाईकोर्ट का यह फैसला अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है।


 सरकारी आदेश क्या था?

कर्नाटक सरकार ने हाल ही में एक आदेश जारी किया था, जिसके अनुसार—

  • राज्य के सभी Registered Industrial Establishments में काम करने वाली महिलाओं को
  • मासिक धर्म के दौरान विशेष अवकाश दिया जाएगा,
  • यह अवकाश Paid Leave होगा,
  • और इसे श्रमिक कल्याण के तहत अनिवार्य रूप से लागू करना होगा।

सरकार का तर्क था कि:

  • महिलाओं के स्वास्थ्य, उत्पादकता और गरिमा की रक्षा के लिए यह कदम आवश्यक है,
  • पीरियड के दौरान होने वाले दर्द, असुविधा और स्वास्थ्य जोखिमों को देखते हुए सरकार का दायित्व है कि वह नीति बनाए।

लेकिन यह आदेश जैसे ही जारी हुआ, उद्योग जगत में हड़कंप मच गया और कई संगठनों ने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया।


 याचिका क्यों दायर हुई? उद्योग जगत की मुख्य आपत्तियाँ

कई औद्योगिक संस्थानों, एसोसिएशनों और कंपनियों ने सरकार के आदेश को चुनौती देते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दायर की। उनकी प्रमुख दलीलें थीं—

1. सरकार को ऐसा आदेश देने का अधिकार नहीं

याचिकाकर्ताओं का कहना था कि:

  • श्रम कानूनों के तहत अवकाश (Leaves) से संबंधित नीतियाँ केंद्रीय कानूनों द्वारा नियंत्रित हैं,
  • और राज्य सरकार केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में दिशानिर्देश जारी कर सकती है,
  • लेकिन “अनिवार्य Paid Menstrual Leave” लागू करना उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

2. कंपनियों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ

कई कंपनियों ने तर्क दिया:

  • मासिक धर्म अवकाश लागू होने से अतिरिक्त स्टाफ की आवश्यकता पड़ेगी,
  • इससे उद्योगों पर आर्थिक भार बढ़ेगा,
  • छोटे और मध्यम स्तर के उद्योग (SMEs) इससे सबसे अधिक प्रभावित होंगे।

3. कार्यस्थल में लैंगिक भेदभाव बढ़ने की आशंका

कुछ संगठनों ने यह भी कहा:

  • पीरियड लीव महिलाओं के लिए अलग नीति बनाती है,
  • इससे कंपनियाँ महिलाओं को कम नियुक्त कर सकती हैं,
  • और लंबे समय में रोजगार के अवसर कम हो सकते हैं।

4. श्रमिक संघों से पर्याप्त सलाह-मशविरा नहीं किया गया

याचिकाकर्ताओं का कहना था कि:

  • यह आदेश अचानक जारी कर दिया गया,
  • ना उद्योगों से चर्चा हुई,
  • ना ट्रेड यूनियनों से सुझाव लिए गए।

इन सभी तर्कों के आधार पर हाईकोर्ट में सरकारी आदेश को चुनौती दी गई।


 हाईकोर्ट ने क्या कहा? आदेश पर रोक क्यों लगी?

कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपना निर्णय देते हुए सरकारी आदेश पर अंतरिम रोक (Interim Stay) लगा दी।
अदालत की प्रमुख टिप्पणियाँ थीं—

1. Prima Facie सरकारी आदेश में कानूनी खामियाँ दिखती हैं

अदालत ने कहा:

  • अवकाश नीतियों का निर्धारण केंद्रीय अधिनियमों जैसे Factories Act, 1948,
    Industrial Employment (Standing Orders) Act, 1946 आदि में विस्तृत रूप से किया गया है,
  • राज्य सरकार ऐसे विषयों पर बिना स्पष्ट कानूनी आधार के आदेश जारी नहीं कर सकती।

2. आदेश लागू होने से उद्योग जगत को गंभीर व्यावहारिक समस्याएँ हो सकती हैं

अदालत ने माना कि:

  • जब तक सभी पहलुओं का सम्यक अध्ययन नहीं हो जाता,
  • तब तक ऐसे आदेश को लागू करना तर्कसंगत नहीं है।

3. मामला नीति और अधिकार क्षेत्र का है, इसलिए विस्तृत सुनवाई आवश्यक

कोर्ट ने कहा कि:

  • यह सिर्फ श्रमिक कल्याण का विषय नहीं, बल्कि
  • वित्तीय, प्रशासनिक और कानूनी सुसंगतता से भी जुड़ा मुद्दा है।

इस प्रकार, हाईकोर्ट ने आदेश पर रोक लगाते हुए विस्तृत सुनवाई के लिए मामला सूचीबद्ध किया।


 क्या महिलाएँ पीरियड लीव की हकदार नहीं?—बहस का दूसरा पक्ष

भले ही हाईकोर्ट ने रोक लगा दी हो, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि पीरियड लीव आवश्यक नहीं है।
महिलाओं के स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से यह आदेश कई मायनों में महत्वपूर्ण माना जा रहा था।

 चिकित्सा विशेषज्ञ क्या कहते हैं?

कई चिकित्सकों का कहना है कि:

  • Dysmenorrhea (तेज़ पीरियड दर्द)
  • PCOD/PCOS
  • Menorrhagia (अत्यधिक रक्तस्राव)
  • Hormonal imbalance

जैसी समस्याएँ महिलाओं की कार्यक्षमता पर गंभीर प्रभाव डालती हैं।

 कई देशों में पहले से लागू है

जैसे—

  • जापान
  • स्पेन
  • इंडोनेशिया
  • दक्षिण कोरिया

इन देशों में पीरियड लीव कानूनी रूप से मान्य है।

यह स्वास्थ्य व सम्मान का विषय है, ‘सुविधा’ का नहीं

महिला अधिकार समूहों का कहना है कि:

  • पीरियड लीव महिलाओं की गरिमा और हक का विषय है,
  • इसे “विशेषाधिकार” नहीं बल्कि मौलिक श्रम अधिकार माना जाना चाहिए।

 कानूनी दृष्टिकोण: क्या राज्य सरकार ऐसे आदेश दे सकती है?

अब प्रश्न यह है—
क्या राज्य सरकार वास्तव में ऐसा आदेश देने की अधिकारी है?

केंद्रीय श्रम कानूनों के अंतर्गत अवकाश नीति तय होती है

  • Factories Act
  • Industrial Disputes Act
  • Standing Orders Act

इनमें कर्मचारियों के अवकाश संबंधी ढांचे को पहले से निर्धारित किया गया है।

राज्य सरकार केवल ‘सुधारात्मक नियम’ बना सकती है

लेकिन:

  • “नए प्रकार का अनिवार्य अवकाश लागू करना”
  • “Paid Leave घोषित करना”

राज्य सरकार की सीमा से बाहर माना जा सकता है।

कर्नाटक हाईकोर्ट फिलहाल इसी प्रश्न का उत्तर ढूँढ रही है।


 उद्योग जगत बनाम महिला अधिकार: दोहरी चुनौती

यह मुद्दा केवल कानून का नहीं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक संतुलन का भी है।

उद्योग जगत की चिंता:

  • अतिरिक्त लागत
  • स्टाफिंग समस्या
  • उत्पादकता पर असर

महिलाओं की चिंता:

  • स्वास्थ्य
  • गरिमा
  • समान अवसरों के बावजूद जैविक जरूरतों की अनदेखी

अदालत को इन दोनों के बीच संतुलन बनाना होगा।


 हाईकोर्ट का निर्णय भविष्य को कैसे प्रभावित करेगा?

यह फैसला राष्ट्रीय स्तर पर कई प्रभाव डाल सकता है—

1. अन्य राज्यों की नीति निर्माण प्रक्रिया पर असर

कई राज्य पहले से ऐसी नीति लागू करने पर विचार कर रहे थे।
अब वे अधिक सावधानी बरतेंगे।

2. केंद्र सरकार पर भी दबाव

अब यह प्रश्न उठ रहा है कि:

क्या भारत को एक केंद्रीकृत ‘Menstrual Leave Policy’ बनानी चाहिए?

3. उद्योगों में संवाद की आवश्यकता

अदालत ने अप्रत्यक्ष रूप से बताया कि:

  • नीति बनाते समय कंपनियों से चर्चा जरूरी है।

4. महिलाओं के हितों पर व्यापक बहस

यह मामला महिला-हित नीतियों की दिशा तय करेगा।


 निष्कर्ष: पीरियड लीव पर रोक नहीं, बल्कि ‘वैधानिक प्रक्रिया’ पर सवाल

कर्नाटक हाईकोर्ट ने यह नहीं कहा कि पीरियड लीव गलत है।
अदालत ने केवल इतना कहा है कि:

  • नीति लागू करना सही हो सकता है,
  • लेकिन कानूनन इसे लागू करने का तरीका सही होना चाहिए।

इसलिए फिलहाल यह:

 महिला अधिकारों की हार नहीं है
बल्कि एक सुविचारित नीति बनाने का अवसर है

अब देखना यह है कि:

  • क्या सरकार संशोधित आदेश लाएगी?
  • क्या केंद्र सरकार आगे आएगी?
  • क्या अदालत विस्तृत सुनवाई में इस अवधारणा को स्वीकार कर लेगी?