कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णय: हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत बहन की पुत्रियों का पैतृक संपत्ति में दावा अस्वीकार्य

लेख शीर्षक:
कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णय: हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत बहन की पुत्रियों का पैतृक संपत्ति में दावा अस्वीकार्य


परिचय:
भारत में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (Hindu Succession Act, 1956) हिंदू पुरुषों और महिलाओं की संपत्ति के उत्तराधिकार और वितरण से संबंधित एक प्रमुख विधिक प्रावधान है। इस अधिनियम के तहत उत्तराधिकारियों को विभिन्न वर्गों (Class I, II, III) में विभाजित किया गया है। हाल ही में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि किसी मृत हिंदू पुरुष की बहन की बेटियाँ (sister’s daughters) उसकी संपत्ति में उत्तराधिकारी नहीं हो सकतीं, और ऐसे में उनके द्वारा दायर विभाजन वाद (partition suit) को Order VII Rule 11(a) CPC के तहत अस्वीकार किया जा सकता है।


मामले की पृष्ठभूमि:
विवाद इस बात को लेकर था कि जब कोई अविवाहित/निःसंतान हिंदू पुरुष मर जाता है और उसके कोई Class I उत्तराधिकारी नहीं होते, तो क्या उसकी बहन की बेटियाँ उसकी संपत्ति में उत्तराधिकारी बन सकती हैं? इस प्रश्न पर विचार करते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा कि Class II उत्तराधिकारियों की श्रेणी में बहन की बेटियाँ नहीं आतीं, और इसीलिए उनका विभाजन वाद बनता ही नहीं है।


हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधान:

  • धारा 8: हिंदू पुरुष की संपत्ति का उत्तराधिकार उसके उत्तराधिकारियों द्वारा तय होता है।
  • Class I heirs: पुत्र, पुत्री, पत्नी, माता आदि (बहन की बेटियाँ इसमें शामिल नहीं)।
  • Class II heirs: इसमें सबसे पहले पिता, फिर भाई और बहन आते हैं, लेकिन बहन की पुत्रियाँ इस सूची में भी शामिल नहीं हैं।
  • यदि कोई Class I उत्तराधिकारी नहीं है, तो संपत्ति Class II के पहले दर्जे के उत्तराधिकारियों को जाती है – जिसमें भाई, बहन, और फिर उनके क्रमिक वर्ग हैं।

Order VII Rule 11(a) CPC क्या है?
यह सिविल प्रक्रिया संहिता (Code of Civil Procedure) का एक प्रावधान है जिसके तहत यदि वाद पत्र (plaint) में ऐसा कोई कारण नहीं दर्शाया गया है जिससे वाद बनता हो, तो उसे प्रारंभिक चरण में ही खारिज किया जा सकता है।


न्यायालय का निर्णय:

  1. बहन की बेटियाँ उत्तराधिकारी नहीं:
    न्यायालय ने यह माना कि बहन की पुत्रियाँ न तो Class I और न ही Class II उत्तराधिकारी हैं। अतः उनका संपत्ति में कोई अधिकार नहीं बनता।
  2. वाद पत्र में कोई कारण नहीं:
    चूंकि बहन की बेटियाँ उत्तराधिकारी नहीं हैं, उनका विभाजन का दावा विधिक रूप से असंवीकार्य है। अतः यह Order VII Rule 11(a) CPC के तहत वाद पत्र अस्वीकार करने योग्य है।
  3. संपत्ति भाईयों को जाएगी:
    जब कोई अविवाहित हिंदू पुरुष बिना किसी Class I उत्तराधिकारी के मरता है, तो उसकी संपत्ति Class II के प्रथम वर्ग – यानी भाई (brothers) को जाती है, बहन की पुत्रियों को नहीं।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  • बहन की बेटियाँ उत्तराधिकार कानून की दृष्टि से मृतक पुरुष की वैध उत्तराधिकारी नहीं हैं।
  • सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत ऐसा वाद प्रारंभ में ही खारिज किया जा सकता है, जिससे न्यायालय का समय और पक्षकारों का व्यर्थ प्रयास बच सके।

निष्कर्ष:
यह निर्णय न केवल उत्तराधिकार कानून की व्याख्या को स्पष्ट करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कौन लोग वास्तव में संपत्ति पर दावा कर सकते हैं। कर्नाटक उच्च न्यायालय का यह फैसला भविष्य में ऐसे मामलों में कानूनी मार्गदर्शन प्रदान करेगा, जहां नजदीकी रिश्तेदारों की संतानें पैतृक संपत्ति पर दावा करने का प्रयास करती हैं। यह स्पष्ट करता है कि उत्तराधिकार केवल भावनात्मक रिश्तों पर नहीं, बल्कि कानूनी पात्रता पर आधारित होता है।