लेख शीर्षक:
कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णय: विलंबित ग्रेच्युटी भुगतान पर चक्रवृद्धि ब्याज लगाने में नियंत्रक प्राधिकारी का विवेकाधिकार
परिचय:
ग्रेच्युटी कर्मचारी की सेवा के प्रति एक वित्तीय कृतज्ञता है, जिसे सेवानिवृत्ति या सेवा से मुक्त होने पर दिया जाता है। “Payment of Gratuity Act, 1972” इस सुविधा को नियंत्रित करता है और इसके अंतर्गत यदि नियोक्ता समय पर भुगतान नहीं करता है, तो उसे ब्याज सहित भुगतान करना होता है। हाल ही में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि धारा 8 के अंतर्गत नियंत्रक प्राधिकारी के पास यह विवेकाधिकार है कि वह विलंबित भुगतान पर चक्रवृद्धि ब्याज (compound interest) लगाए या नहीं, बशर्ते नियोक्ता को उचित सुनवाई का अवसर दिया जाए।
धारा 8: वसूली और दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान
Payment of Gratuity Act की धारा 8 के अनुसार यदि कोई नियोक्ता, नियत समय के भीतर ग्रेच्युटी का भुगतान करने में विफल रहता है, तो कर्मचारी या उसके प्रतिनिधि की याचिका पर नियंत्रक प्राधिकारी द्वारा आदेश जारी किया जा सकता है। इसके तहत नियोक्ता से ब्याज सहित वसूली की जा सकती है, और यदि जानबूझकर भुगतान में टालमटोल की गई हो, तो आपराधिक सजा भी संभव है।
कर्नाटक उच्च न्यायालय का फैसला:
न्यायालय ने एक विशेष मामले में कहा कि:
- नियंत्रक प्राधिकारी का विवेकाधिकार:
नियंत्रक प्राधिकारी को यह निर्णय लेने का पूर्ण अधिकार है कि विलंबित ग्रेच्युटी भुगतान पर चक्रवृद्धि ब्याज लगाया जाए या नहीं। - नियोक्ता को सुनवाई का अवसर:
यह निर्णय सुनाए जाने से पहले यह अनिवार्य है कि नियोक्ता को अपना पक्ष रखने का उचित अवसर प्रदान किया जाए। यानी, बिना पक्ष सुने सीधे ब्याज नहीं लगाया जा सकता। - न्यायसंगत प्रक्रिया:
यदि नियोक्ता के पास विलंब के लिए वैध कारण हैं (जैसे – कंपनी का बंद हो जाना, दिवालियापन की स्थिति, या विवाद लंबित होना), तो प्राधिकारी इस पर विचार कर सकते हैं।
चक्रवृद्धि ब्याज का महत्व:
चक्रवृद्धि ब्याज, सामान्य ब्याज की तुलना में अधिक होता है क्योंकि यह मूलधन के साथ-साथ पूर्व के अर्जित ब्याज पर भी ब्याज जोड़ता है। न्यायालय का यह निर्णय सुनिश्चित करता है कि कर्मचारी को विलंब से हुई हानि की वास्तविक भरपाई हो सके और नियोक्ताओं के लिए यह एक चेतावनी भी बने।
निष्कर्ष:
कर्नाटक उच्च न्यायालय का यह निर्णय कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसने स्पष्ट कर दिया है कि नियंत्रक प्राधिकारी पूरी न्यायिक प्रक्रिया का पालन करते हुए, विवेकपूर्वक निर्णय लेते हुए, नियोक्ता से विलंबित ग्रेच्युटी पर चक्रवृद्धि ब्याज वसूल सकते हैं। इससे Payment of Gratuity Act, 1972 के कार्यान्वयन में पारदर्शिता और प्रभावशीलता सुनिश्चित होती है।