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कर्करडूमा कोर्ट में चप्पल हमला: पूर्व CJI पर जूता फेंकने की कोशिश के आरोपी अधिवक्ता राकेश किशोर पर फिर हमला—“सनातन धर्म की जय हो” के नारे, न्यायपालिका में बढ़ते तनाव का संकेत?

कर्करडूमा कोर्ट में चप्पल हमला: पूर्व CJI पर जूता फेंकने की कोशिश के आरोपी अधिवक्ता राकेश किशोर पर फिर हमला—“सनातन धर्म की जय हो” के नारे, न्यायपालिका में बढ़ते तनाव का संकेत?


भूमिका : न्यायपालिका की गरिमा, वकीलों का आचरण और बढ़ते कोर्टरूम तनाव

       दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट परिसर में अधिवक्ता राकेश किशोर पर अज्ञात लोगों द्वारा चप्पलों से हमला किए जाने का वीडियो सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से वायरल हो गया। राकेश किशोर वही अधिवक्ता हैं जिन्होंने कुछ दिन पहले ही—सुप्रीम कोर्ट में पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस बी.आर. गवई पर जूता फेंकने की कोशिश की थी।
हालाँकि तत्समय जूता उन तक नहीं पहुँचा, लेकिन यह घटना देशभर में चर्चा का विषय बनी और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने उनके विरुद्ध अवमानना याचिका भी दायर की थी, जिसे बाद में कोर्ट ने इसलिए नहीं सुना क्योंकि जस्टिस गवई ने उन्हें माफ़ कर दिया था।

      लेकिन कड़कड़डूमा कोर्ट की नई घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए—

  • क्या वकीलों द्वारा न्यायालय की गरिमा भंग करने के मामले बढ़ रहे हैं?
  • क्या वकीलों पर हिंसा नया चलन बन रहा है?
  • क्या इस पूरे विवाद में राजनीति, विचारधारा और समूहों की भूमिका है?
  • और इसका देश की न्यायिक व्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?

1. कड़कड़डूमा कोर्ट की घटना : चप्पलें, नारे और अफरातफरी

वीडियो के अनुसार, कड़कड़डूमा कोर्ट में राकेश किशोर किसी मामले में पेश होने आए थे। तभी दो–तीन अज्ञात व्यक्तियों ने अचानक उनकी ओर चप्पलें फेंकीं और पास जाकर प्रहार भी किए।
वीडियो में दिखता है—

  • राकेश किशोर हमले से बचने की कोशिश कर रहे हैं
  • हाथ से वार रोकते हुए पीछे हट रहे हैं
  • और लगातार चिल्ला रहे हैं—

“सनातन धर्म की जय हो!”

यह दृश्य न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि यह दर्शाता है कि किसी विचारधारा या क्रोध का संबंध शायद इस पूरे प्रकरण से जोड़ा जा रहा है।


2. जूता फेंकने की पुरानी घटना—क्यों आए थे सुर्खियों में?

कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान अधिवक्ता राकेश किशोर ने अचानक पूर्व CJI जस्टिस बी.आर. गवई की ओर जूता फेंकने की कोशिश की।
हालाँकि सुरक्षा कर्मचारी सतर्क थे और किसी अनहोनी को रोक दिया गया।

उनके आरोप क्या थे?

  • न्यायपालिका में कथित भ्रष्टाचार
  • कुछ न्यायिक आदेशों से असहमति
  • विचारधारात्मक बयान

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अधिवक्ता के इस प्रकार के व्यवहार को गंभीर माना।

SCBA की अवमानना याचिका

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने उनके विरुद्ध अवमानना दाखिल की थी, परंतु—

  • जस्टिस गवई ने व्यक्तिगत रूप से कहा—
    “मैं उन्हें क्षमा करता हूँ”
  • इसलिए कोर्ट ने याचिका को विचार योग्य नहीं माना।

इस पृष्ठभूमि के बाद कड़कड़डूमा कोर्ट की नई घटना ने और अधिक विवाद को जन्म दिया।


3. क्या कड़कड़डूमा कोर्ट में हमला बदले की कार्रवाई?

इस पर कई तरह की राय सामने आ रही है—

A. कुछ लोग कहते हैं—यह जूता फेंकने की घटना का प्रतिशोध था

वकीलों के समूह अक्सर न्यायपालिका के सम्मान को सर्वोपरि मानते हैं।
हो सकता है कुछ लोगों को यह कृत्य जानबूझकर अपमानजनक लगा हो।

B. कुछ लोग इसे विचारधारा आधारित हमला मानते हैं

उनके “सनातन धर्म की जय हो” नारे से कई लोग इसे राजनीतिक–विचारधारात्मक मोड़ से जोड़ रहे हैं।

C. कुछ इसे “आंतरिक वकील राजनीति” मानते हैं

न्यायालय परिसर में वकील संघों के बीच खींचतान नई बात नहीं।

D. यह भी संभव है कि हमलावर पहचान छिपाने के लिए ‘अनजान’ हों

वीडियो में चेहरे साफ़ नहीं दिखाई देते, जिससे संदेह गहरा रहा है।


4. न्यायालय परिसर में हिंसा—क्या सामान्य होती जा रही है?

भारत के विभिन्न कोर्ट परिसरों में:

  • वकीलों पर हमला
  • आरोपियों द्वारा हथियार लाना
  • कोर्ट के भीतर मारपीट
  • पुलिस सुरक्षा में ढील
  • विचारधारा आधारित नारेबाज़ी

जैसे मामले पिछले एक दशक में बढ़े हैं।

कड़कड़डूमा कोर्ट खुद कई बार ऐसे मामलों का गवाह रहा है।
2015 में यहाँ आतंकी हमला हुआ था।
2022 में गैंगवार हुआ था।

ऐसे में एक अधिवक्ता पर खुलेआम प्रहार यह दर्शाता है कि—
कोर्ट परिसर का सुरक्षा ढाँचा अभी भी कमजोर है।


5. क्या यह न्यायपालिका की गरिमा पर हमला है?

दो घटनाएँ मिलकर एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाती हैं—

1. वकील द्वारा CJI पर जूता फेंकने की कोशिश

यह न्यायिक संस्थान की गरिमा के लिए घातक है।

2. वकील पर कोर्ट में चप्पल से हमला

यह कानूनी पेशे की सुरक्षा के लिए चिंता का विषय है।

दोनों घटनाएँ दर्शाती हैं कि—
कोर्टरूम का अनुशासन और गरिमा एक नाजुक स्थिति से गुजर रहे हैं।


6. वकील समुदाय की प्रतिक्रिया—समर्थन और विरोध दोनों

घटना के बाद वकीलों के दो समूह प्रतिक्रिया में सामने आए:

समर्थन में—

कुछ वकीलों का कहना है:

  • राकेश किशोर का आचरण अनुचित था
  • उन्होंने न्यायपालिका को अपमानित किया
  • ऐसी हरकत करने वाले वकील को पेशे से बाहर करना चाहिए

विरोध में—

कुछ वकीलों का कहना है:

  • हमले की निंदा करना चाहिए
  • किसी भी वकील को पीटना गलत
  • “हिंसा का उत्तर हिंसा” पेशे को बदनाम करता है
  • सुरक्षा घोर रूप से असफल रही

दोनों पक्ष अपनी–अपनी विचारधारा के आधार पर बात कर रहे हैं।


7. राकेश किशोर के नारे—“सनातन धर्म की जय हो” : अर्थ क्या?

इस नारे पर भी कई तरह की बहस है—

A. क्या वह स्वयं को ‘विचारधारा-आधारित शिकार’ दिखाना चाहते थे?

यह उनकी रक्षा रणनीति भी हो सकती है।

B. हमलावरों के पीछे कोई विचारधारात्मक समूह था?

अभी कोई तथ्य नहीं, पर वीडियो से अनुमान लगाना मुश्किल है।

C. क्या वह अपनी पहचान को किसी विशेष नैरेटिव से जोड़ रहे थे?

कई लोगों का मानना है कि नारे लगाने से वे भीड़ को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे थे।

नारा शायद भावनात्मक प्रतिक्रिया भी हो सकता है।


8. कानूनी विश्लेषण : क्या यह ‘आपराधिक हमला’ है?

इस घटना में निम्न धाराएँ बन सकती हैं:

  • IPC 323 : मारपीट
  • IPC 352 : हमला
  • IPC 506 : धमकी
  • IPC 34 : साझा मंशा
  • कोर्ट परिसर में सुरक्षा उल्लंघन (Delhi Court Security Rules)

यदि CCTV फुटेज उपलब्ध हो, तो हमलावरों की पहचान संभव है।


9. वकीलों की छवि पर असर : ‘पेशे का अनुशासन’ सवालों में

भारतीय न्यायपालिका के तीन स्तंभ—

  1. न्यायाधीश
  2. पुलिस
  3. वकील

अगर तीसरा स्तंभ ही अव्यवस्थित हो जाए, तो न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता प्रभावित होती है।

जूता फेंकने की घटना और चप्पल मारने की घटना—
दोनों ही वकीलों की पेशागत नैतिकता पर प्रश्न लगाती हैं।


10. क्या न्याय प्रणाली में असंतोष बढ़ रहा है?

कुछ विशेषज्ञ कहते हैं—हाँ।

कारण:

  • न्यायाधीशों की नियुक्ति पर विवाद
  • लंबित मामलों का बोझ
  • बड़े मामलों में देरी
  • विचारधारात्मक टकराव
  • राजनीतिक दबाव
  • वकीलों में समूहबंदी

ये कारण अदालतों में तनाव का माहौल पैदा करते हैं।


11. सुरक्षा की विफलता—प्रशासन पर सवाल

कड़कड़डूमा कोर्ट में—

  • धातु डिटेक्टर
  • प्रवेश पर्ची
  • CCTV
  • हथियार जांच
  • पुलिस तैनाती

सब होते हैं।

फिर भी हमलावर चप्पल लेकर अदालत तक पहुँचे।
चप्पल हथियार नहीं होती, लेकिन हमला फिर भी हमला है।

प्रशासन को जिम्मेदारी लेनी होगी।


12. आगे की कार्यवाही क्या हो सकती है?

संभावित कदम:

 पुलिस FIR दर्ज कर सकती है

 कोर्ट प्रशासन सुरक्षा बढ़ाएगा

 हमलावरों की पहचान होगी

 बार एसोसिएशन अनुशासनात्मक कार्रवाई करेगा

 सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर सख्त टिप्पणी कर सकता है

यह घटना “नजीर” बन सकती है कि—
कोर्ट परिसर में किसी भी तरह की हिंसा बर्दाश्त नहीं की जाएगी।


13. न्यायपालिका का भविष्य और चिंता

अगर ऐसी घटनाएँ बढ़ती हैं तो:

  • अदालतें असुरक्षित महसूस करेंगी
  • न्यायाधीशों का मनोबल गिर सकता है
  • वकीलों के बीच विभाजन बढ़ेगा
  • न्यायिक गरिमा को क्षति पहुँचेगी
  • कोर्ट का अनुशासन टूटेगा
  • संवैधानिक संस्थाओं में विश्वास कम होगा

यह अत्यंत चिंताजनक स्थिति होगी।


निष्कर्ष : न्यायपालिका, अधिवक्ता और व्यवस्था—सभी को आत्मचिंतन की आवश्यकता

कड़कड़डूमा कोर्ट की घटना केवल एक स्थानीय विवाद नहीं है।
यह संदेश है कि—

 अदालतें सुरक्षित नहीं

वकीलों के बीच अनुशासन टूट रहा

न्यायपालिका में तनाव बढ़ रहा

विचारधारात्मक टकराव अदालत तक पहुँच रहा

वकील राकेश किशोर का जूता फेंकना गलत था, पर उन पर हमला भी समान रूप से गलत है।
हिंसा न तो समाधान है और न ही न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा।

भारत की न्यायपालिका—विश्व की सबसे बड़ी—विचार, मत, असहमति की जगह है, हिंसा और प्रतिशोध की नहीं।

अब समय है कि—

  • वकीलों में अनुशासन वापस आए,
  • न्यायालयों में सुरक्षा बढ़े,
  • और न्याय को हिंसा से मुक्त रखने का संकल्प लिया जाए।