“कमाई की क्षमता हो तो पति से गुज़ारा भत्ता क्यों? – दिल्ली हाई कोर्ट का अहम फैसला”

“कमाई की क्षमता हो तो पति से गुज़ारा भत्ता क्यों? – दिल्ली हाई कोर्ट का अहम फैसला”


भूमिका:
दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि यदि कोई महिला योग्य और आत्मनिर्भर है तथा कमाने की क्षमता रखती है, तो वह अपने पति से अंतरिम गुज़ारा भत्ता (maintenance) की मांग नहीं कर सकती। यह फैसला महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता, कानूनी समानता और न्याय के सिद्धांतों की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जा रहा है।


प्रसंग:
यह मामला उस समय सामने आया जब एक महिला, जो अपने पति से अलग रह रही थी, ने दिल्ली की अदालत में अपने पति से अंतरिम भरण-पोषण भत्ता (maintenance under CrPC Section 125) की मांग की। निचली अदालत ने उसकी याचिका खारिज कर दी थी, जिसे उसने हाई कोर्ट में चुनौती दी।


कोर्ट की टिप्पणी:
जस्टिस चंद्रधारी सिंह की एकल पीठ ने दिनांक 19 मार्च 2025 को यह आदेश पारित किया, जिसमें कहा गया:

“धारा 125 CrPC का उद्देश्य केवल निर्भर पत्नी, बच्चे या माता-पिता को भरण-पोषण देना है, न कि इस प्रावधान का दुरुपयोग कर आत्मनिर्भर व्यक्ति को बैठे-बिठाए पैसा दिलाना।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि यह प्रावधान “बेरोजगारी या परजीवीपन को बढ़ावा देने के लिए नहीं है।” कानून का उद्देश्य ज़रूरतमंदों को राहत देना है, न कि सक्षम व्यक्तियों को लाभ देना।


महिला की पृष्ठभूमि:

  • महिला ने ऑस्ट्रेलिया से पोस्ट ग्रेजुएशन (PG) की डिग्री प्राप्त की है।
  • विवाह से पूर्व वह दुबई में कार्यरत थी और अच्छा वेतन कमा रही थी।
  • अदालत ने पाया कि महिला के पास शैक्षिक योग्यता, अनुभव और रोजगार की संभावनाएं हैं, और वह भरण-पोषण के लिए पूरी तरह पति पर निर्भर नहीं है।

निष्कर्ष:
इस फैसले के ज़रिए कोर्ट ने यह संदेश दिया है कि कानून का सहारा केवल उन लोगों को मिलना चाहिए जो वास्तव में असहाय या ज़रूरतमंद हैं। यदि कोई महिला आत्मनिर्भर है और कमाने की क्षमता रखती है, तो वह अपने पति से भरण-पोषण की मांग नहीं कर सकती। यह निर्णय समानता, न्याय और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने वाला है।


संबंधित मामला:
इसके अतिरिक्त, दिल्ली की एक अदालत ने हाल ही में क्रिकेटर युजवेंद्र चहल और उनकी पत्नी धनश्री वर्मा की तलाक की अर्जी को मंजूरी दे दी है। हालांकि यह मामला उपरोक्त निर्णय से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित नहीं है, फिर भी यह दर्शाता है कि वैवाहिक मामलों में अदालतें कानूनी पहलुओं को संवेदनशीलता और निष्पक्षता के साथ निपटा रही हैं।


समाप्ति:
दिल्ली हाई कोर्ट का यह निर्णय भविष्य के मामलों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल (precedent) बनेगा, जिसमें यह सिद्धांत स्थापित किया गया है कि केवल असहायता ही सहायता की पात्रता तय करेगी, न कि केवल पत्नी होने का दर्जा।

अगर आप चाहें तो मैं इस निर्णय की प्रति (PDF आदेश), CrPC की धारा 125 की विस्तृत व्याख्या या इससे जुड़े अन्य न्यायिक दृष्टांत भी प्रदान कर सकता हूँ।