“सरकार द्वारा Companies Act, 2013 में प्रस्तावित बड़े बदलाव : कारोबार-मित्र तथा डिजिटल-अनुरूप बनाने की दिशा में कदम”
प्रस्तावित बदलावों की पृष्ठभूमि
भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से विकसित हो रही है, डिजिटल व्यवसायों का विस्तार हो रहा है और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के दबाव में “किज़ीकरण”, वैश्विक पूँजी आकर्षित करने, एमएसएमई-उद्यमों को सशक्त बनाने तथा बेहतर कॉर्पोरेट शासन सुनिश्चित करने जैसे कई लक्ष्य सामने हैं। ऐसे में यह स्पष्ट हुआ है कि वर्तमान Companies Act, 2013 और उसके तहत लागू होने वाले नियम-प्रावधान कुछ मायनों में समय की मांग के अनुरूप नहीं हैं।
सरकार ने इस कड़ी में कहा है कि कंपनी कानून को “बिजनेस-और-डिजिटल-फ्रेंडली” बनाने की दिशा में काम किया जा रहा है ताकि भारत में कंपनियों के लिए संचालन सरल हो सके, फाइलिंग-प्रक्रियाएँ कम हो जाएँ, ग्लोबल प्रतिस्पर्धा क्षमता बढ़े, और साथ ही World Bank के “Ease of Doing Business” (विशेष रूप से ‘Business-Ready’ इंडेक्स) में भारत की रैंकिंग बेहतर हो सके।
संक्षिप्त रूप में मुख्य पृष्ठभूमि निम्नलिखित है:
- डिजिटलisation तथा ई-फाइलिंग के माध्यम से अनुपालन सरल करना ।
- कॉर्पोरेट संचालन-व्यवस्थाओं में पारदर्शिता एवं जवाबदेही बढ़ाना ।
- कंपनियों के विलय-मिलाप, पुनर्गठन (restructuring) आदि प्रक्रियाओं को तेज़ और सहज बनाना ।
- छोटे, स्टार्टअप एवं एमएसएमई से लेकर बड़े उद्यमों के लिए अनुपालन-बोझ कम करना ।
- वैश्विक निवेश आकर्षित करना, विदेशी पूँजी के प्रवाह को बढ़ावा देना ।
- कॉर्पोरेट-गवर्नेंस, पर्यावरण-सामाजिक-शासन (ESG) जैसे आज के ज़रूरी आयामों को कंपनी कानून के भीतर समाहित करना।
इन पृष्ठभूमियों में सरकार ने हाल के महीनों में Ministry of Corporate Affairs (MCA) द्वारा कई नियम-संशोधन जारी किए हैं तथा आगे बिल लाने की तैयारी बताई जा रही है।
मुख्य प्रस्तावित एवं लागू बदलाव
नीचे प्रमुख बदलाव बिंदुवार दिए गए हैं — कुछ पहले से लागू हो चुके हैं (उदाहरण-स्वरूप Rules द्वारा), कुछ प्रस्तावित हैं कि संसद के शीत सत्र में बिल के रूप में आएँगे।
1. ई-फाइलिंग और डिजिटल रूपांतरण
- Companies (Accounts) Second Amendment Rules, 2025 के अंतर्गत यह लागू हुआ है कि कंपनियों को अब अपनी फाइलिंग्स में extracts (उदाहरण-स्वरूप बोर्ड रिपोर्ट का सार) और ऑडिट रिपोर्ट्स को PDF सहित ई-फॉर्म के माध्यम से जमा करना होगा।
- Companies (Incorporation) Amendment Rules, 2025 में यह व्यवस्था आई है कि Form INC-22A (ACTIVE-Active Company Tagging Identities & Verification) को नया ई-Form बनाया गया है ताकि कंपनियों की पहचान, टैगिंग और सत्यापन बेहतर हो सके।
- पारदर्शिता बढ़ाने हेतु कंपनियों को अपने डिजिटल खातों, बही-खातों, सॉफ्टवेयर में audit-trail आदि सुनिश्चित करना होगा — उदाहरणस्वरूप एक लेख में कहा गया है कि “उड़ान ट्रैक” फीचर वाला अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर होना चाहिए।
2. रिपोर्टिंग तथा खुलासे (Disclosure) में बदलाव
- नया नियम यह लाया गया है कि बोर्ड रिपोर्ट में Sexual Harassment of Women at Workplace (Prevention, Prohibition and Redressal) Act, 2013 के अंतर्गत जितनी शिकायतें आईं, कितनी निस्तारित हुईं, कितनी 90 दिन से अधिक लंबित हैं — ये जानकारी शामिल होनी अनिवार्य है।
- मातृत्व लाभ अधिनियम (Maternity Benefit Act) आदि के अनुपालन की स्थिति भी कंपनियों को अपने बोर्ड रिपोर्ट में बयान करनी होगी।
- वर्ष-आर्थिक विवरणों के साथ-साथ संबद्ध एवं सहयोगी कंपनियों (associate/ subsidiary) के प्रमुख लोकेल तथा गठबन्धनों की जानकारी फाइलिंग के समय पूछी जाएगी।
3. विलय-मिलाप (Mergers/Demergers) एवं पुनर्गठन में सहजता
- MCA द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि Sections 233 के तहत “फास्ट-ट्रैक” विलय-मिलाप (fast-track mergers/demergers) की प्रक्रिया का दायरा बढ़ाया गया है — अब अन्य कंपनियों को भी इस प्रक्रिया का लाभ मिलने लगा है।
- इसके अंतर्गत प्रक्रिया की जटिलताओं को कम किया जा रहा है, समय-सीमा को घटाया जा रहा है और कपंनियों के पुनर्गठन में सहजता लाई जा रही है।
4. अनुपालन-शुल्क, दंड तथा प्रवर्तन-प्रक्रियाएँ
- एक लेख में बताया गया है कि 2025 में Companies Act में “tiered penalty system” (पेनल्टी को कंपनियों के आकार तथा उल्लंघन की गंभीरता के अनुसार विभाजित) लाया गया है।
- फाइलिंग में देरी, स्टेटकमेंट न देना, नियमों का उल्लंघन — इन पर प्रतिदिन की दर से दण्ड और बड़े व्यावसायिक समूहों के लिए अधिक दंड लगाने का प्रस्ताव है।
5. विदेशी निवेश तथा अधिग्रहण (Foreign Investment / Ownership)
- विदेशी व्यक्तियों (foreign individuals) के लिए भारतीय सूचीबद्ध कंपनियों में निवेश (Investment) की सीमा बढ़ाने पर प्रस्तावित बदलाव हैं — उदाहरणस्वरूप एक लेख में कहा गया है कि व्यक्तिगत विदेशी निवेशक के लिए सीमा 5% से 10% तक बढ़ाने की बात है।
- साथ ही, Reserve Bank of India एवं अन्य स्रोतों के अनुसार यह प्रस्तावित है कि विदेशी‐नियंत्रित कंपनियों (foreign-owned & controlled entities) की व्यवस्था और उस पर नियामक नियंत्रण सख्त किया जाए।
6. अन्य नियम-विधान में बदलाव
- फॉर्म-विन्यास (e-Forms) को V2 पोर्टल से V3 पोर्टल में स्थानांतरित करने जैसी तकनीकी सुधारें की जा रही हैं, ताकि फाइलिंग अनुभव सरल हो और प्रोसेसिंग तेज हो सके।
- Companies (Compromises, Arrangements and Amalgamations) Amendment Rules, 2025 के अंतर्गत विलय-मिलाप नियमों में तकनीकी संशोधन किए गए हैं।
क्यों ये बदलाव महत्वपूर्ण हैं?
इन प्रस्तावित और लागू बदलावों के माध्यम से सरकार मुख्य रूप से निम्न-लक्ष्यों को पूरा करना चाह रही है:
- व्यवसाय-मित्रता (Business-Friendly Environment) : सरल फाइलिंग, डिजिटल रूपांतरण, कम जटिल प्रक्रिया — यह इसके प्रमुख अंग हैं। इससे कंपनियों को समय और संसाधन की बचत होगी।
- वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता (Global Competitiveness) : जब भारत में कंपनी संचालन सरल होगा और विदेशी निवेश आकर्षित होगा, तो भारतीय कंपनियाँ वैश्विक मंच पर बेहतर प्रतिस्पर्धा कर सकती हैं।
- वित्तीय और पारदर्शी शासन (Financial & Transparent Governance) : बेहतर खुलासे, समय-सीमा अंदर रिपोर्टिंग, ऑडिट ट्रेल जैसी व्यवस्थाएँ भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को कम कर सकती हैं।
- स्टार्टअप्स तथा एमएसएमई का सशक्तीकरण : छोटे एवं नवोदय (startup) उद्यमों के लिए अनुपालन बोझ कम करने के उपाय किए जा रहे हैं, जिससे उनकी गति एवं नवाचार क्षमता बढ़ेगी।
- रैंकिन्ग तथा निवेश माहौल में सुधार : यदि कंपनियों का संचालन आसान हुआ, तो World Bank का “Ease of Doing Business” तथा “Business-Ready” इंडेक्स में भारत की रैंकिंग सुधर सकती है।
- सामाजिक और शासन-आधारित जिम्मेदारी (ESG, Corporate Governance) : जैसे–काम की जगह महिला-यौन उत्पीड़न शिकायतों की रिपोर्टिंग अनिवार्य करना, मातृत्व-लाभ आदि का अनुपालन सुनिश्चित करना — यह सामाजिक जिम्मेदारी को कंपनियों की दैनिक कार्यप्रणाली में लाता है।
संभावित प्रभाव एवं लाभ
इस तरह के बदलावों के परिणामस्वरूप निम्न-प्रभाव देखने को मिल सकते हैं:
- कंपनियों द्वारा फाइलिंग्स की देर कम होगी, जुर्माने एवं दंड-रोकथाम बेहतर होगा।
- निवेशकों (विशेषकर विदेशी) का भरोसा बढ़ेगा, जिससे पूँजी प्रवाह में वृद्धि हो सकती है।
- विलय-मिलाप एवं पुनर्गठन की प्रक्रिया तेज और कम लागत वाला होगी।
- कंपनियों को संचालन-प्रणाली में सुधार करना पड़ेगा — बेहतर शासन, अधिक खुलासे, मानक अनुपालन।
- रिपोर्टिंग एवं फाइनेंशियल ट्रांसparency बढ़ने से कंपनियों का जोखिम-प्रोफाइल बेहतर होगा, जिससे कर्ज/वित्त-उपाय आसान हो सकते हैं।
- स्टार्ट-अप एवं एमएसएमई को कम बोझ के साथ आगे बढ़ने का अवसर मिलेगा।
- डिजिटल-फाइलिंग, ई-प्रोसेसिंग द्वारा प्रशासनिक समय एवं खर्च बच सकते हैं।
चुनौतियाँ एवं विचार-बिंदु
हालाँकि ये बदलाव सकारात्मक हैं, किन्तु उनके क्रियान्वयन-परिप्रेक्ष्य में कुछ चुनौतियाँ और सावधानियाँ भी हैं:
- बदलती प्रक्रिया को कंपनियों और उनके सचिव/प्रशासनिक कर्मचारियों को समय-सीमा में अपनाना होगा — प्रशिक्षण-प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी।
- ई-फाइलिंग, सॉफ्टवेयर, डिजिटल ट्रैकिंग इत्यादि के लिए निवेश की आवश्यकता होगी — खासकर छोटे उद्यमों के लिए यह बोझ बन सकता है।
- तेजी से बदलाव के कारण प्रारंभ में तकनीकी गड़बड़ियाँ, फॉर्म मैपिंग में त्रुटियाँ, पोर्टल समस्या आदि आ सकती हैं।
- अधिक खुलासे और दंड-प्रावधानों से कंपनियों को परिचालन-लगातारन (operational) जोखिम बढ़ सकता है, विशेषकर यदि उन्हें बदलाव की तैयारी नहीं है।
- नियम-प्रावधानों की जटिलता कम करना है लेकिन यह ध्यान रखना होगा कि इससे निवेशक-सुरक्षा (investor protection) कमजोर न पड़े।
- विदेशी निवेश से जुड़े नियमों में जो बदलाव किए गए हैं, उनके साथ प्रबंधन-वितरण (governance) तथा नियंत्रण (control) को भी स्पष्ट करना होगा — नहीं तो उलझने बढ़ सकती हैं।
- सामाजिक रिपोर्टिंग (जैसे शिकायतों की संख्या आदि) के लिए उचित डेटा संग्रहण और आंतरिक नियंत्रण व्यवस्था कंपनियों में स्थापित करनी होगी, जो छोटा उद्यम अभी तक नहीं कर पाया है।
- परिवर्तनों का लाभ उठाने के लिए कंपनियों को सक्रिय रूप से अपनी आंतरिक प्रणालियों, सचिवालय, लेखा-विवरण प्रणाली इत्यादि को अपडेट करना होगा।
आगे की दिशा एवं सुझाव
यहाँ कुछ सुझाव दिए जा रहे हैं, जो कंपनियों, मानव संसाधन विभागों, कंपनी सचिवों तथा नीति-निर्माताओं के लिए उपयोगी हो सकते हैं:
- कंपनियों को जल्दी शुरुआत करनी चाहिए : अपने वर्तमान फाइलिंग-अनुपालन, बोर्ड रिपोर्टिंग, ई-फॉर्म्स, सॉफ्टवेयर ट्रैकिंग आदि का स्वास्थ्य-जांच (compliance health check) आज ही कर लें।
- प्रशिक्षण और जागरूकता बढ़ाएँ : बोर्ड, कंपनी सचिव, वित्तीय टीम एवं एमएसएमई के कर्मचारियों को नए नियम-प्रावधानों तथा डिजिटल-पोर्टल परिवर्तन की जानकारी देना जरूरी है।
- डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करें : यदि अभी तक नहीं किया है, तो ई-फाइलिंग, ऑडिट-ट्रेल सॉफ्टवेयर, डेटा मैनेजमेंट सिस्टम्स आदि में निवेश करना चाहिए।
- प्रस्तावित बदलावों का लाभ उठाएँ : उदाहरणस्वरूप फास्ट-ट्रैक विलय-मिलाप की सुविधा, विदेशी निवेश सीमाओं में संभावित ढील आदि — इन अवसरों को पहचानें।
- कोरगवर्नेंस मॉडल पर ध्यान दें : खुलासे बढ़ने हैं, इसलिए अच्छे आंतरिक नियंत्रण, लेखा-वित्तीय प्रबंधन, शिकायत-प्रबंधन, महिला-सुरक्षा आदि की तैयारियों को बढ़ावा दें।
- संभावित दंड-प्रावधानों के प्रति सतर्क रहें : विलंब-फाइलिंग, रिपोर्टिंग की कमी, नियम उल्लंघन पर दंड बढ़ेंगे — इसलिए समयबद्धता सुनिश्चित करें।
- नीति-निर्माताओं एवं उद्योग-संवाद को मजबूत करें : यदि नियम-प्रावधानों के क्रियान्वयन में व्यावहारिक कठिनाइयाँ सामने आती हैं, तो MCA/श्रेष्ठ निकायों तक सुझाव पहुँचाएँ।
- मॉनिटर करें और अपडेट रहें : कंपनी कानून तथा नियम-प्रावधान लगातार बदलते रहने वाले हैं — इसलिए समय-समय पर विशेषज्ञ सलाह लें, अपडेट रहें।
निष्कर्ष
भारत की कंपनी-कानून व्यवस्था में यह परिवर्तन अत्यधिक समय की आवश्यकता थी — एक ऐसे युग में जहाँ व्यवसाय डिजिटल रूप से संचालित हो रहे हैं, वैश्विक पूँजी का प्रवाह तेज है, और निवेशक तथा उपभोक्ता दोनों ही अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही की चाह रखते हैं। प्रस्तावित एवं लागू बदलावों-से – जैसे ई-फाइलिंग, खुलासे बढ़ाना, विलय-प्रक्रियाओं को सरल करना, विदेशी निवेश आकर्षित करना — यह संकेत मिलता है कि सरकार ने “कारोबार-मित्र एवं डिजिटल-अनुरूप” कंपनी-परिस्थिति बनाने का स्पष्ट लक्ष्य रखा है।
हालाँकि, इन बदलावों का वास्तविक लाभ तभी मिलेगा जब कंपनियाँ, विशेष रूप से छोटे एवं मझोले उद्यम, अपनी आंतरिक प्रणाली, प्रबंधन-संरचना, अनुपालन-प्रक्रिया को समय रहते अपडेट करें और बदलाव को अवसर के रूप में देखें। अन्यथा, बदलाव-भार (compliance-burden) नए तनाव का रूप ले सकता है।
अतः यह समय है कि कंपनियाँ सक्रिय रूप से अपने स्वरूप का पुन:विश्लेषण करें, नई चुनौतियों के अनुरूप खुद को तैयार करें, ताकि भारत में कंपनी-कानून संस्थापक का नया अध्याय शुरू हो सके — जहाँ नियम सरल हों, प्रक्रिया तेज हो, विश्वास बढ़े और भारत वैश्विक कारोबारी मानचित्र पर अपनी स्थिति और मजबूत कर सके।