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कंपनियों अधिनियम, 2013 (Companies Act, 2013) LLB Notes

 कंपनियों अधिनियम, 2013 (Companies Act, 2013) LLB Notes

1. कंपनियों अधिनियम, 2013 का उद्देश्य और महत्व स्पष्ट कीजिए।

कंपनियों अधिनियम, 2013 को भारत में कॉर्पोरेट जगत में पारदर्शिता, जवाबदेही और सुशासन (Corporate Governance) स्थापित करने के लिए अधिनियमित किया गया। यह अधिनियम पुराने Companies Act, 1956 का प्रतिस्थापन है, जिसमें समय के साथ बदलती व्यावसायिक आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता नहीं रह गई थी। 2013 अधिनियम में कुल 29 अध्याय और 470 से अधिक धाराएँ हैं।

इस अधिनियम के प्रमुख उद्देश्य हैं:

  1. कंपनियों का गठन और पंजीकरण आसान बनाना।
  2. निवेशकों और शेयरधारकों के अधिकारों की रक्षा करना।
  3. निदेशक और प्रबंधकों को उनके कर्तव्यों और दायित्वों के प्रति उत्तरदायी बनाना।
  4. वित्तीय पारदर्शिता और लेखा-जोखा सुनिश्चित करना।
  5. कॉर्पोरेट गवर्नेंस के सिद्धांत लागू करना।
  6. CSR (Corporate Social Responsibility) के माध्यम से समाज में योगदान।

अधिनियम में वन पर्सन कंपनी (OPC) की अवधारणा, ई-फाइलिंग, नॉन-प्रॉफिट कंपनियों के प्रावधान और CSR व्यय की अनिवार्यता जैसी आधुनिक व्यवस्थाएँ जोड़ी गईं।

इस प्रकार, कंपनियों अधिनियम, 2013 भारतीय अर्थव्यवस्था और कॉर्पोरेट क्षेत्र को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाने और निवेशकों का विश्वास बढ़ाने में अत्यंत महत्वपूर्ण है।


2. कंपनी के गठन और पंजीकरण की प्रक्रिया समझाइए।

कंपनी अधिनियम, 2013 के अनुसार कंपनी एक स्वतंत्र कानूनी इकाई है। कंपनी के गठन हेतु पंजीकरण आवश्यक है, जो कि MCA (Ministry of Corporate Affairs) के पोर्टल पर किया जाता है।

गठन की मुख्य प्रक्रिया:

  1. नाम आरक्षण (Name Reservation):
    कंपनी का नाम तय कर उसे MCA से अनुमोदित कराना होता है।
  2. दस्तावेज तैयार करना:
    • Memorandum of Association (MOA): कंपनी का उद्देश्य और अधिकार क्षेत्र।
    • Articles of Association (AOA): कंपनी संचालन और प्रबंधन के आंतरिक नियम।
  3. रजिस्ट्रेशन हेतु आवेदन:
    SPICe+ फॉर्म के माध्यम से ROC (Registrar of Companies) को आवेदन किया जाता है।
  4. PAN, TAN और DIN प्राप्त करना:
    निदेशकों के लिए DIN (Director Identification Number) और कंपनी के लिए PAN व TAN जारी किया जाता है।
  5. सर्टिफिकेट ऑफ़ इन्कॉरपोरेशन:
    ROC द्वारा जारी यह प्रमाणपत्र कंपनी की कानूनी मान्यता प्रदान करता है।

गठन के बाद कंपनी को प्रॉस्पेक्टस, शेयर जारी करना, और AGM आयोजित करना जैसे प्रावधानों का पालन करना होता है।


3. कंपनी अधिनियम, 2013 में निदेशक की नियुक्ति और योग्यता की विवेचना कीजिए।

कंपनी का संचालन मुख्य रूप से निदेशक मंडल द्वारा किया जाता है। अधिनियम में निदेशकों की नियुक्ति, योग्यता और संख्या का स्पष्ट प्रावधान है।

नियुक्ति प्रक्रिया:

  • निदेशक की नियुक्ति AGM (Annual General Meeting) में शेयरधारकों द्वारा की जाती है।
  • पहली बार निदेशक की नियुक्ति कंपनी गठन के समय MOA/AOA में उल्लेखित नामों के अनुसार होती है।
  • NCLT के आदेश पर भी नियुक्ति हो सकती है।

योग्यता:

  • निदेशक प्राकृतिक व्यक्ति (Natural Person) होना चाहिए।
  • उसकी आयु कम से कम 18 वर्ष होनी चाहिए।
  • दिवालिया, अक्षम या आपराधिक दंडित व्यक्ति निदेशक नहीं बन सकता।

संख्या:

  • प्राइवेट कंपनी में न्यूनतम 2 निदेशक।
  • पब्लिक कंपनी में न्यूनतम 3 निदेशक।
  • अधिकतम 15 निदेशक नियुक्त किए जा सकते हैं (विशेष प्रस्ताव से अधिक संख्या संभव)।

महिला निदेशक का प्रावधान:
कुछ बड़ी पब्लिक कंपनियों में कम से कम एक महिला निदेशक की नियुक्ति अनिवार्य की गई है।


4. निदेशकों के कर्तव्य और दायित्वों की व्याख्या कीजिए।

निदेशक कंपनी की “ट्रस्टी” और “एजेंट” दोनों होते हैं। अधिनियम 2013 ने उनके कर्तव्यों को स्पष्ट रूप से निर्धारित किया है।

मुख्य कर्तव्य:

  1. सत्यनिष्ठा और निष्ठा: कंपनी और शेयरधारकों के हित में कार्य करना।
  2. कानूनी अनुपालन: कंपनी अधिनियम और अन्य लागू कानूनों का पालन करना।
  3. हितों का टकराव न होना: व्यक्तिगत लाभ के लिए कंपनी के संसाधनों का दुरुपयोग न करना।
  4. वित्तीय जिम्मेदारी: सही और निष्पक्ष वित्तीय विवरण प्रस्तुत करना।
  5. निष्पक्षता और पारदर्शिता: सभी हितधारकों के साथ समान व्यवहार करना।

दायित्व:
यदि निदेशक धोखाधड़ी, अनियमितता या कर्तव्यहीनता करता है तो:

  • उस पर आर्थिक दंड लगाया जा सकता है।
  • उसे कारावास हो सकता है।
  • उसे निदेशक पद से अयोग्य (disqualified) घोषित किया जा सकता है।

5. कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत लेखा-जोखा और ऑडिट का महत्व स्पष्ट करें।

कंपनी के वित्तीय लेन-देन की पारदर्शिता सुनिश्चित करने हेतु अधिनियम में लेखा-जोखा और ऑडिट का विशेष महत्व है।

लेखा-जोखा (Accounts):

  • प्रत्येक कंपनी को वित्तीय वर्ष में बैलेंस शीट और प्रॉफिट एंड लॉस अकाउंट तैयार करना अनिवार्य है।
  • खातों को न्यायसंगत, निष्पक्ष और सही तरीके से रखा जाना चाहिए।
  • छोटे और मध्यम आकार की कंपनियों के लिए सरलीकृत प्रावधान उपलब्ध हैं।

ऑडिट (Audit):

  • कंपनी को स्वतंत्र ऑडिटर नियुक्त करना आवश्यक है।
  • ऑडिटर का दायित्व है कि वह खातों की सत्यता की पुष्टि करे।
  • ऑडिट रिपोर्ट AGM में प्रस्तुत की जाती है।

ऑडिट और लेखा-जोखा से निवेशकों को पारदर्शी जानकारी मिलती है और धोखाधड़ी की संभावना कम होती है।


6. शेयर और पूंजी संरचना से आप क्या समझते हैं?

शेयर कंपनी की पूंजी का वह अंश है जिसे निवेशकों से जुटाया जाता है। अधिनियम में शेयरों और पूंजी संरचना का विस्तृत प्रावधान है।

शेयर के प्रकार:

  1. इक्विटी शेयर: कंपनी के मालिकाना हक और लाभांश का अधिकार देते हैं।
  2. प्रेफरेंस शेयर: लाभांश और पूंजी वापसी में प्राथमिकता प्रदान करते हैं।

पूंजी संरचना:

  • अधिकृत पूंजी (Authorized Capital): कंपनी द्वारा अधिकतम जारी की जा सकने वाली पूंजी।
  • जारी पूंजी (Issued Capital): वास्तव में जारी किए गए शेयर।
  • भुगतान पूंजी (Paid-up Capital): शेयरधारकों द्वारा चुकाई गई राशि।

अधिनियम ने शेयर जारी करने, हस्तांतरण और शेयरधारकों के अधिकारों के संरक्षण के लिए कड़े नियम बनाए हैं।


7. कॉर्पोरेट गवर्नेंस की अवधारणा और महत्व समझाइए।

कॉर्पोरेट गवर्नेंस का तात्पर्य है कि कंपनी का संचालन नैतिकता, पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ किया जाए।

तत्व:

  1. निदेशक मंडल में स्वतंत्र निदेशक।
  2. वित्तीय पारदर्शिता।
  3. शेयरधारकों के अधिकारों का संरक्षण।
  4. आंतरिक और बाहरी ऑडिट प्रणाली।
  5. हितों के टकराव से बचाव।

महत्व:

  • निवेशकों का विश्वास मजबूत होता है।
  • विदेशी निवेश आकर्षित होते हैं।
  • कंपनी की छवि और ब्रांड वैल्यू बढ़ती है।
  • आर्थिक अपराध और धोखाधड़ी की संभावना घटती है।

अधिनियम, 2013 में कॉर्पोरेट गवर्नेंस के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं जैसे स्वतंत्र निदेशक, महिला निदेशक, CSR खर्च आदि।


8. CSR (Corporate Social Responsibility) से आप क्या समझते हैं?

CSR वह व्यवस्था है जिसके अंतर्गत बड़ी कंपनियों को अपने वार्षिक लाभ का एक निश्चित प्रतिशत सामाजिक कार्यों में खर्च करना अनिवार्य है।

अधिनियम के प्रावधान:

  • जिन कंपनियों का शुद्ध लाभ 5 करोड़ से अधिक या नेटवर्थ 500 करोड़ से अधिक या टर्नओवर 1000 करोड़ से अधिक है, उन्हें CSR लागू करना होता है।
  • ऐसी कंपनियों को अपने औसत शुद्ध लाभ का 2% CSR गतिविधियों पर खर्च करना होगा।

CSR गतिविधियों में शामिल:

  • शिक्षा और स्वास्थ्य।
  • पर्यावरण संरक्षण।
  • ग्रामीण विकास।
  • महिला सशक्तिकरण।

CSR से कंपनियाँ समाज में अपनी जिम्मेदारी निभाती हैं और इससे उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा भी बढ़ती है।


9. कंपनी अधिनियम, 2013 में शेयरधारकों के अधिकारों की विवेचना कीजिए।

शेयरधारक कंपनी के वास्तविक मालिक होते हैं। अधिनियम ने उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए कई प्रावधान किए हैं।

प्रमुख अधिकार:

  1. मताधिकार (Voting Right): AGM/EGM में निर्णय लेने में भागीदारी।
  2. लाभांश का अधिकार: कंपनी के लाभ से हिस्सा प्राप्त करना।
  3. शेयर हस्तांतरण का अधिकार।
  4. सूचना का अधिकार: कंपनी के वित्तीय दस्तावेज और वार्षिक रिपोर्ट देखने का अधिकार।
  5. याचिका का अधिकार: यदि कंपनी संचालन में अनियमितता हो तो NCLT में शिकायत कर सकते हैं।

इन अधिकारों से शेयरधारक कंपनी प्रबंधन पर निगरानी रख सकते हैं।


10. कंपनियों अधिनियम, 2013 में हाल के संशोधन और उनकी उपयोगिता समझाइए।

समय-समय पर अधिनियम में संशोधन किए जाते हैं ताकि यह व्यावसायिक आवश्यकताओं और वैश्विक मानकों के अनुरूप बना रहे।

हाल के संशोधन:

  1. ई-गवर्नेंस को बढ़ावा: डिजिटल फाइलिंग और ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन।
  2. डिफॉल्ट पर कठोर दंड: धोखाधड़ी और फर्जी खातों पर कड़ी कार्रवाई।
  3. स्टार्टअप कंपनियों को राहत: लेखा-जोखा और ऑडिट में छूट।
  4. CSR प्रावधानों में बदलाव: अनुपालन न करने पर दंड।
  5. इनसोल्वेंसी और बैंकरप्सी को जोड़ा गया।

उपयोगिता:

  • व्यावसायिक माहौल सरल और पारदर्शी होता है।
  • निवेशकों का विश्वास मजबूत होता है।
  • भारतीय कंपनियाँ वैश्विक प्रतिस्पर्धा में सक्षम बनती हैं।

11. कंपनी अधिनियम, 2013 में “वन पर्सन कंपनी (OPC)” की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।

वन पर्सन कंपनी (OPC) की अवधारणा कंपनी अधिनियम, 2013 में पहली बार जोड़ी गई। यह छोटे व्यवसायियों और उद्यमियों के लिए बनाई गई व्यवस्था है ताकि वे बिना साझेदार के भी कंपनी बना सकें।

मुख्य विशेषताएँ:

  1. केवल एक सदस्य कंपनी का गठन कर सकता है।
  2. एक निदेशक पर्याप्त है, लेकिन आवश्यकता होने पर अधिकतम 15 निदेशक नियुक्त किए जा सकते हैं।
  3. OPC का नाम “(OPC) प्राइवेट लिमिटेड” से समाप्त होना चाहिए।
  4. सदस्य की मृत्यु या अक्षमता की स्थिति में नामित व्यक्ति (Nominee) कंपनी का संचालन करेगा।
  5. इसे वार्षिक आम बैठक (AGM) आयोजित करने की आवश्यकता नहीं है।

लाभ:

  • सीमित देयता का संरक्षण।
  • छोटे उद्यमियों के लिए औपचारिक संरचना।
  • बैंकों और निवेशकों से फंड प्राप्त करने में आसानी।

निष्कर्ष:
OPC ने भारत में उद्यमिता को बढ़ावा दिया और व्यक्तिगत व्यवसायियों को कानूनी मान्यता और सुरक्षा प्रदान की।


12. कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत प्राइवेट और पब्लिक कंपनी में अंतर स्पष्ट कीजिए।

प्राइवेट कंपनी:

  • न्यूनतम 2 सदस्य और अधिकतम 200 सदस्य।
  • शेयरों का हस्तांतरण प्रतिबंधित।
  • सार्वजनिक रूप से शेयर जारी नहीं कर सकती।
  • “प्राइवेट लिमिटेड” नाम से समाप्त होती है।

पब्लिक कंपनी:

  • न्यूनतम 7 सदस्य और अधिकतम की कोई सीमा नहीं।
  • शेयरों का हस्तांतरण स्वतंत्र।
  • सार्वजनिक रूप से शेयर जारी कर सकती है।
  • “लिमिटेड” नाम से समाप्त होती है।

अंतर का महत्व:

  • पब्लिक कंपनी बड़े पैमाने पर पूंजी जुटा सकती है जबकि प्राइवेट कंपनी सीमित संसाधनों में कार्य करती है।
  • पब्लिक कंपनी पर नियामकीय नियंत्रण अधिक कड़ा होता है।

13. निदेशक की अयोग्यता और अपदस्थ करने के आधारों की व्याख्या कीजिए।

अयोग्यता (Disqualification):

  1. निदेशक दिवालिया हो।
  2. मानसिक रूप से अस्वस्थ घोषित हो।
  3. गंभीर अपराध में दोषी ठहराया गया हो।
  4. कंपनी अधिनियम के उल्लंघन में दोषी हो।

अपदस्थ (Removal):

  • निदेशक को AGM में साधारण प्रस्ताव द्वारा हटाया जा सकता है।
  • विशेष नोटिस देकर शेयरधारकों की सहमति आवश्यक है।
  • न्यायालय या NCLT भी निदेशक को हटाने का आदेश दे सकता है।

महत्व:
इन प्रावधानों से यह सुनिश्चित होता है कि निदेशक मंडल में केवल योग्य और ईमानदार व्यक्ति ही बने रहें।


14. कंपनी अधिनियम, 2013 में महिला निदेशक की नियुक्ति के प्रावधान समझाइए।

अधिनियम ने कॉर्पोरेट गवर्नेंस और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने हेतु महिला निदेशक का प्रावधान किया।

प्रावधान:

  • सूचीबद्ध (Listed) कंपनियों और बड़ी पब्लिक कंपनियों में कम से कम एक महिला निदेशक की नियुक्ति अनिवार्य।
  • महिला निदेशक की नियुक्ति AGM में या बोर्ड द्वारा की जा सकती है।
  • उसकी जिम्मेदारियाँ अन्य निदेशकों के समान हैं।

महत्व:

  • महिला नेतृत्व को बढ़ावा।
  • निर्णय प्रक्रिया में विविधता।
  • कॉर्पोरेट छवि में सुधार।

15. AGM (Annual General Meeting) और EGM (Extraordinary General Meeting) में अंतर बताइए।

AGM:

  • वर्ष में कम से कम एक बार आयोजित।
  • इसमें वित्तीय रिपोर्ट, ऑडिट रिपोर्ट और लाभांश का निर्णय होता है।
  • निदेशकों की नियुक्ति और पारिश्रमिक तय होता है।

EGM:

  • आवश्यकता पड़ने पर किसी भी समय आयोजित।
  • विशेष परिस्थितियों जैसे विलय, पूंजी पुनर्गठन आदि के लिए।
  • केवल बोर्ड या सदस्यों की मांग पर बुलाया जाता है।

निष्कर्ष:
AGM नियमित बैठक है जबकि EGM विशेष उद्देश्य के लिए। दोनों शेयरधारकों के अधिकार और कंपनी की पारदर्शिता सुनिश्चित करते हैं।


16. कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत ऑडिटर की नियुक्ति और हटाने की प्रक्रिया समझाइए।

नियुक्ति:

  • प्रथम ऑडिटर कंपनी गठन के 30 दिन के भीतर निदेशक मंडल द्वारा नियुक्त।
  • इसके बाद AGM में सदस्य ऑडिटर नियुक्त करते हैं।
  • अवधि अधिकतम 5 वर्ष।

हटाना:

  • AGM में विशेष प्रस्ताव द्वारा हटाया जा सकता है।
  • हटाने के लिए Central Government की अनुमति आवश्यक है।
  • ऑडिटर को हटाने से पहले सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए।

महत्व:
स्वतंत्र ऑडिट से कंपनी की वित्तीय पारदर्शिता और निवेशकों का विश्वास बढ़ता है।


17. कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत स्वतंत्र निदेशक (Independent Director) की भूमिका स्पष्ट कीजिए।

स्वतंत्र निदेशक वह होता है जो कंपनी या उसके प्रमोटरों से किसी भी प्रकार का वित्तीय/पारिवारिक संबंध न रखता हो।

भूमिका:

  1. कंपनी संचालन में निष्पक्षता बनाए रखना।
  2. हितों के टकराव से बचाव।
  3. ऑडिट समिति और CSR समिति में भागीदारी।
  4. अल्पसंख्यक शेयरधारकों के हितों की रक्षा।
  5. प्रबंधन पर नियंत्रण और निगरानी।

महत्व:
स्वतंत्र निदेशक कॉर्पोरेट गवर्नेंस को मजबूत करते हैं और निवेशकों का विश्वास बनाए रखते हैं।


18. NCLT (National Company Law Tribunal) की स्थापना और कार्य बताइए।

NCLT का गठन Companies Act, 2013 के तहत किया गया। यह एक अर्ध-न्यायिक संस्था है।

मुख्य कार्य:

  1. कंपनी के गठन, विलय और पुनर्गठन से संबंधित विवाद।
  2. निदेशकों और शेयरधारकों के विवादों का निपटारा।
  3. कंपनी के विघटन और परिसमापन के मामलों की सुनवाई।
  4. CSR और वित्तीय अनियमितताओं की जांच।
  5. इनसोल्वेंसी और बैंकरप्सी मामलों की सुनवाई (IBC 2016 के तहत)।

महत्व:
NCLT ने कंपनी विवादों के समाधान की प्रक्रिया को तेज और प्रभावी बनाया।


19. कंपनी अधिनियम, 2013 में “कॉरपोरेट फ्रॉड” (Corporate Fraud) के प्रावधान समझाइए।

कॉरपोरेट फ्रॉड का तात्पर्य है किसी भी धोखाधड़ीपूर्ण गतिविधि से जिससे कंपनी, उसके शेयरधारकों या जनता को हानि हो।

उदाहरण:

  • गलत वित्तीय विवरण प्रस्तुत करना।
  • संपत्ति का दुरुपयोग।
  • निवेशकों को गुमराह करना।

प्रावधान:

  • यदि कोई निदेशक या अधिकारी कॉरपोरेट फ्रॉड करता है तो उसे 6 महीने से 10 साल तक कारावास और भारी जुर्माना हो सकता है।
  • गंभीर मामलों में CBI और SFIO (Serious Fraud Investigation Office) जांच करती है।

महत्व:
यह प्रावधान कंपनियों में ईमानदारी और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए किया गया।


20. कंपनी अधिनियम, 2013 में “डिबेंचर” और “प्रेफरेंस शेयर” में अंतर स्पष्ट कीजिए।

डिबेंचर:

  • यह एक प्रकार का ऋण साधन है।
  • धारक को ब्याज (Interest) मिलता है।
  • कंपनी पर मालिकाना हक नहीं देता।
  • दिवालिया होने की स्थिति में डिबेंचर धारकों को पहले भुगतान होता है।

प्रेफरेंस शेयर:

  • यह शेयर पूंजी का हिस्सा है।
  • धारक को लाभांश (Dividend) में प्राथमिकता।
  • मालिकाना हक प्रदान करता है लेकिन मतदान अधिकार सीमित।
  • पूंजी वापसी में भी प्राथमिकता।

निष्कर्ष:
डिबेंचर ऋण साधन है जबकि प्रेफरेंस शेयर स्वामित्व साधन। दोनों कंपनी की पूंजी जुटाने के अलग-अलग माध्यम हैं।