शीर्षक: ओटीटी प्लेटफॉर्म और सेंसरशिप: स्वतंत्रता बनाम मर्यादा का टकराव
🔷 प्रस्तावना:
डिजिटल क्रांति ने मनोरंजन के क्षेत्र में नई दिशा दी है और ओटीटी प्लेटफॉर्म (Over-The-Top platforms) जैसे नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम, डिज़्नी+ हॉटस्टार, ज़ी5, सोनी लिव आदि ने पारंपरिक मीडिया के दायरे को तोड़ते हुए सामग्री की स्वतंत्रता, विविधता और लोकतांत्रिक पहुँच को नया आयाम दिया है। लेकिन इस रचनात्मक स्वतंत्रता के साथ कई बार सामाजिक मर्यादा, नैतिकता, और सांस्कृतिक संवेदनशीलता के मुद्दे भी उठे हैं। यही वह बिंदु है जहाँ स्वतंत्रता और मर्यादा के बीच संतुलन की आवश्यकता महसूस होती है।
🔷 ओटीटी प्लेटफॉर्म का उदय और प्रभाव:
ओटीटी प्लेटफॉर्म ने दर्शकों को पारंपरिक सेंसरशिप से मुक्त, प्रयोगधर्मी, विविध और क्षेत्रीय भाषाओं की सामग्री प्रदान की है। इसके प्रमुख प्रभाव हैं:
- रचनात्मक स्वतंत्रता:
कलाकारों और निर्देशकों को सामाजिक, राजनीतिक, यौनिक, धार्मिक और मनोवैज्ञानिक मुद्दों को बिना कट-छाँट के प्रस्तुत करने का अवसर मिला। - प्रतिनिधित्व और विविधता:
अल्पसंख्यक, LGBTQ+, महिलाओं, आदिवासियों और वंचित वर्गों की कहानियाँ सामने आईं, जो मुख्यधारा सिनेमा में अक्सर उपेक्षित रहीं। - वैश्विक प्रतिस्पर्धा:
भारतीय दर्शकों को अंतरराष्ट्रीय स्तर की सामग्री तक पहुँच मिली और भारत में भी वैश्विक मानकों की वेब सीरीज और फिल्में बनने लगीं।
🔷 सेंसरशिप की मांग क्यों उठी?
हाल के वर्षों में कुछ ओटीटी सामग्री को लेकर विवाद हुए —
- धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने (जैसे ‘तांडव’)
- अत्यधिक अश्लीलता और गाली-गलौच
- ऐतिहासिक पात्रों की गलत प्रस्तुति
- राष्ट्रविरोधी/विवादास्पद राजनीतिक बयानबाज़ी
इनके कारण कई वर्गों ने ओटीटी कंटेंट पर सेंसरशिप या नियंत्रण की माँग उठाई। धार्मिक, नैतिक और सामाजिक आधारों पर इन प्लेटफॉर्म्स को अधिक उत्तरदायी बनाने की ज़रूरत महसूस की गई।
🔷 भारत में ओटीटी प्लेटफॉर्म पर कानूनी स्थिति:
- कोई केंद्रीय सेंसर बोर्ड नहीं:
फिल्मों की तरह ओटीटी पर प्रसारित होने वाली सामग्री Central Board of Film Certification (CBFC) के अधीन नहीं आती। - IT (Intermediary Guidelines and Digital Media Ethics Code) Rules, 2021:
फरवरी 2021 में सरकार ने नए दिशा-निर्देश जारी किए, जिसके तहत:- ओटीटी प्लेटफॉर्म को तीन स्तरीय शिकायत निवारण तंत्र लागू करना होगा।
- सामग्री को उम्र आधारित रेटिंग देनी होगी (U, 13+, 16+, A)।
- प्रत्येक प्लेटफॉर्म को एक ग्रीवांस ऑफिसर नियुक्त करना होगा।
- एक स्व-विनियमन निकाय और एक सरकारी निगरानी समिति भी होगी।
- आईटी अधिनियम, 2000:
यह कानून किसी भी अश्लील या भड़काऊ डिजिटल सामग्री पर दंडात्मक कार्रवाई की अनुमति देता है।
🔷 स्वतंत्रता बनाम मर्यादा की बहस:
स्वतंत्रता के पक्ष में तर्क | मर्यादा और सेंसरशिप के पक्ष में तर्क |
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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मौलिक अधिकार है (अनुच्छेद 19(1)(a)) | समाज में सांस्कृतिक और नैतिक सीमाओं की रक्षा भी आवश्यक है |
रचनात्मकता पर सरकारी नियंत्रण रचनाकारों को सीमित करता है | हिंसात्मक, अश्लील, और धार्मिक रूप से अपमानजनक सामग्री को रोका जाना चाहिए |
व्यस्क दर्शक स्वयं निर्णय लेने में सक्षम हैं | बच्चों और किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है |
सेंसरशिप रचनात्मक विविधता और सामाजिक आलोचना को बाधित करती है | आपराधिक और राष्ट्रविरोधी तत्वों को मंच देने की छूट नहीं दी जा सकती |
🔷 न्यायपालिका की भूमिका और दृष्टिकोण:
- Supreme Court in Shreya Singhal v. Union of India (2015):
कोर्ट ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को डिजिटल स्पेस में भी मान्यता दी और अनुचित सेंसरशिप का विरोध किया। - Recent PILs and High Court cases:
विभिन्न मामलों में उच्च न्यायालयों ने ओटीटी प्लेटफॉर्म को ज़िम्मेदारीपूर्वक कार्य करने की सलाह दी है, लेकिन पूर्ण सेंसरशिप का विरोध भी किया है। - संतुलन की आवश्यकता:
न्यायपालिका का दृष्टिकोण यह रहा है कि स्वयं-नियमन (self-regulation) और उत्तरदायित्वपूर्ण अभिव्यक्ति के माध्यम से संतुलन स्थापित हो सकता है।
🔷 अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य:
- यूएसए: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अधिकतम स्तर तक सुरक्षित है, सेंसरशिप नहीं है, परंतु कंपनियाँ अपनी नीति लागू करती हैं।
- यूरोप: कुछ सीमित नियम हैं, जैसे बच्चों की सुरक्षा, घृणा भाषण आदि पर नियंत्रण।
- चीन: राज्य द्वारा पूर्ण सेंसरशिप लागू है, लेकिन यह लोकतांत्रिक स्वतंत्रता का उल्लंघन माना जाता है।
भारत को एक संवेदनशील और लोकतांत्रिक मॉडल अपनाना चाहिए जो रचनात्मकता को भी बनाए रखे और मर्यादा की भी रक्षा करे।
🔷 समाधान और सुझाव:
- स्व-नियमन को मजबूत बनाना:
निर्माता और प्लेटफॉर्म खुद जिम्मेदार बनें — निर्देशिका, एज रेटिंग, चेतावनी आदि को अनिवार्य रूप से लागू करें। - नागरिकों की डिजिटल साक्षरता:
दर्शकों को यह सिखाना कि वे क्या देखें और क्या नहीं, विशेष रूप से बच्चों के लिए पैरेंटल कंट्रोल सिस्टम को प्रोत्साहित करना। - निष्पक्ष शिकायत निवारण प्रणाली:
यदि कोई दर्शक आपत्तिजनक सामग्री की शिकायत करे, तो उसका समाधान पारदर्शिता और त्वरितता से हो। - कानून का दुरुपयोग न हो:
धार्मिक या राजनीतिक संवेदनशीलता के नाम पर अभिव्यक्ति को दबाने का प्रयास न हो — यह एक thin line है जिसे विवेकपूर्ण ढंग से समझने की आवश्यकता है।
🔷 निष्कर्ष:
ओटीटी प्लेटफॉर्म ने अभिव्यक्ति की दुनिया को नया आयाम दिया है, लेकिन इसके साथ जिम्मेदारी का भी समावेश होना चाहिए। असीमित स्वतंत्रता सामाजिक ढाँचे को तोड़ सकती है, वहीं कठोर सेंसरशिप लोकतंत्र को कमजोर करती है। अतः आवश्यकता है एक संतुलित दृष्टिकोण की — जहाँ रचनात्मकता सुरक्षित हो, अभिव्यक्ति स्वतंत्र हो और मर्यादा बनी रहे।
ओटीटी का भविष्य केवल तभी उज्ज्वल हो सकता है जब स्वतंत्रता और मर्यादा दोनों का सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व सुनिश्चित हो।