“ऑर्डर 18 नियम 17 CPC के तहत गवाह को पुनः बुलाने का अनुरोध खारिज — पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का फैसला: दीदार सिंह बनाम रिपुदमन सिंह (2025)”

लेख शीर्षक:
“ऑर्डर 18 नियम 17 CPC के तहत गवाह को पुनः बुलाने का अनुरोध खारिज — पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का फैसला: दीदार सिंह बनाम रिपुदमन सिंह (2025)”

लेख:
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने दीदार सिंह बनाम रिपुदमन सिंह [CR-1975-2025 (O&M)] मामले में यह महत्वपूर्ण निर्णय दिया कि सिविल प्रक्रिया संहिता (Code of Civil Procedure), 1908 की Order 18 Rule 17 की शक्ति का उपयोग केवल अत्यंत आवश्यक और दुर्लभ परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए। यह प्रावधान किसी मामले में रिक्त स्थान (lacunae) को भरने के लिए नहीं है।

📝 मामले की पृष्ठभूमि:

  • याचिकाकर्ता ने PW-7 (डॉक्टर) को पुनः जिरह (further cross-examination) के लिए recall करने हेतु आवेदन दायर किया।
  • कारण बताया गया कि पूर्व में जिरह के दौरान चिकित्सीय शब्दावली (medical terminology) को लेकर कुछ चूक हो गई, जिसे अब स्पष्ट करने की आवश्यकता है।
  • याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यह अनजाने में हुई त्रुटि (inadvertent mistake) थी और इसलिए गवाह को फिर से बुलाना आवश्यक है।

⚖️ न्यायालय का निर्णय:

  • अदालत ने स्पष्ट किया कि Order 18 Rule 17 CPC एक सीमित उपयोग वाली प्रक्रिया है और इसका उपयोग केवल तभी किया जा सकता है जब न्याय के हित में गवाह को पुनः बुलाना अनिवार्य हो।
  • न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता ने सिर्फ इतना बताया है कि कुछ चिकित्सा शब्दों को स्पष्ट करना है, लेकिन इसके अलावा कोई ठोस कारण या विशेष परिस्थिति नहीं बताई गई।
  • इसलिए, इसे ऐसा प्रयास माना गया जो कि मामले में रिक्त स्थान भरने (filling in lacuna) के उद्देश्य से किया गया है, जो कि न्यायिक रूप से स्वीकार्य नहीं है।
  • इस आधार पर अदालत ने आवेदन को अस्वीकार (dismiss) कर दिया।

📌 महत्वपूर्ण कानूनी निष्कर्ष:

  • Order 18 Rule 17 CPC का उद्देश्य न्यायालय को अपने विवेक से गवाह को पुनः बुलाने की अनुमति देना है, परंतु इसका उपयोग पक्षकारों की भूल सुधारने के लिए नहीं किया जा सकता।
  • विशेषज्ञ गवाहों (expert witnesses) के मामले में, केवल तकनीकी शब्दों की स्पष्टीकरण के लिए उन्हें दोबारा बुलाना गैर-जरूरी और प्रक्रिया का दुरुपयोग माना जाएगा।
  • एक बार गवाह के परीक्षण की प्रक्रिया पूरी हो जाने पर, उसके बाद की पुनः जिरह का आधार मजबूत और विशिष्ट होना चाहिए, न कि सामान्य या अस्पष्ट।

📚 न्यायालय की टिप्पणी:

“गवाही के बाद गवाह को पुनः बुलाने की मांग केवल इस आधार पर स्वीकार नहीं की जा सकती कि कुछ शब्द ठीक से नहीं पूछे गए। यह प्रावधान मामले में कमियाँ भरने के लिए नहीं, बल्कि न्याय के हित में सीमित प्रयोजनों के लिए है।”

निष्कर्ष:

यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि न्यायिक कार्यवाही में अनुशासन और प्रक्रिया की पवित्रता को बनाए रखना आवश्यक है।
दीदार सिंह बनाम रिपुदमन सिंह में उच्च न्यायालय का निर्णय उन मामलों के लिए दृष्टांत (precedent) है, जहां गवाहों को बिना पर्याप्त आधार के दोबारा बुलाने का प्रयास किया जाता है।