ऑफिस आने-जाने में हुई दुर्घटना भी मानी जाएगी ड्यूटी पर हादसा: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय

ऑफिस आने-जाने में हुई दुर्घटना भी मानी जाएगी ड्यूटी पर हादसा: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय


1. भूमिका

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि यदि कोई कर्मचारी अपने कार्यस्थल (ऑफिस) पर आने या वहाँ से घर लौटने के दौरान दुर्घटना का शिकार होता है, तो वह दुर्घटना ‘ड्यूटी पर हुई’ मानी जाएगी। इसका मतलब यह हुआ कि कर्मचारी ऐसे मामलों में कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 (Employees’ Compensation Act, 1923) के अंतर्गत मुआवज़े का हकदार होगा। यह निर्णय लाखों कर्मचारियों और उनके परिवारों के लिए राहतकारी है।


2. निर्णय का संदर्भ

यह निर्णय जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ द्वारा 2024 के अंत में सुनाया गया। मामले में एक कर्मचारी, जो अपने ड्यूटी स्थान की ओर जा रहा था, रास्ते में सड़क दुर्घटना का शिकार हो गया और उसकी मृत्यु हो गई। नियोक्ता (employer) ने यह कहकर मुआवज़ा देने से इनकार कर दिया कि दुर्घटना कार्यस्थल पर नहीं बल्कि रास्ते में हुई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने इस पर निर्णय देते हुए कहा कि—

“यदि कर्मचारी ड्यूटी के लिए यात्रा कर रहा हो या ड्यूटी के बाद लौट रहा हो, तो वह समय भी कार्य का विस्तार माना जाएगा।”


3. कानूनी सिद्धांत: ‘Course of Employment’

सुप्रीम कोर्ट ने “course of employment” यानी सेवा के दौरान की परिभाषा को व्यापक करते हुए कहा कि काम पर आने-जाने की यात्रा भी ड्यूटी का हिस्सा है, यदि वह प्रत्यक्ष रूप से ड्यूटी से जुड़ी हो।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  • कर्मचारी को यदि ऑफिस पहुँचने या वहाँ से लौटने के दौरान दुर्घटना होती है,
  • और यात्रा का उद्देश्य केवल ड्यूटी से संबंधित है,
  • तो उसे ड्यूटी से संबंधित दुर्घटना माना जाएगा।
  • ऐसी स्थिति में कर्मचारी या उसके आश्रित क्षतिपूर्ति के पात्र होंगे।

4. कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 का उद्देश्य

यह अधिनियम उन कर्मचारियों की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है जो काम करते समय घायल हो जाते हैं या जिनकी मृत्यु हो जाती है।

मुख्य प्रावधान:

  • कर्मचारी की मृत्यु पर आश्रितों को मुआवज़ा दिया जाता है।
  • स्थायी या आंशिक विकलांगता की स्थिति में भी क्षतिपूर्ति मिलती है।
  • नियोक्ता के लिए यह अनिवार्य है कि वह कार्य से जुड़ी दुर्घटनाओं में मुआवज़ा दे।

अब, सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के अनुसार, “काम पर आना-जाना” भी काम का हिस्सा माना जाएगा।


5. निर्णय का प्रभाव और लाभ

(i) कर्मचारियों के लिए राहत:

इस निर्णय से लाखों कर्मचारियों को सीधा लाभ मिलेगा, खासकर उन लोगों को जो प्रतिदिन लंबी दूरी तय करके कार्यस्थल तक पहुँचते हैं।

(ii) आश्रितों के लिए न्याय:

यदि कर्मचारी की मृत्यु रास्ते में होती है, तो उनके परिवार को मुआवज़ा मिलेगा। पहले केवल कार्यस्थल पर हुए हादसों में ही मुआवज़ा मिलता था।

(iii) नियोक्ताओं की ज़िम्मेदारी बढ़ी:

अब नियोक्ताओं को काम पर आने-जाने से जुड़ी दुर्घटनाओं को भी गंभीरता से देखना होगा और सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करने होंगे।


6. न्यायालय की टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में यह भी कहा:

“नियोक्ताओं को यह नहीं मानना चाहिए कि कर्मचारी की ज़िम्मेदारी केवल ऑफिस की दीवारों तक सीमित है। आधुनिक कार्यप्रणाली में यात्रा कार्य का विस्तार है।”


7. पूर्ववर्ती निर्णयों का उल्लेख

इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान राज्य परिवहन निगम बनाम सुरेशचंद तथा मणिपाल यूनिवर्सिटी बनाम गोविंदा रेड्डी जैसे मामलों का भी उल्लेख किया, जिनमें आंशिक रूप से ऐसी ही बात मानी गई थी, पर यह निर्णय अब इसे स्पष्ट रूप से स्थापित कर देता है।


8. निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कर्मचारियों के अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। यह निर्णय यह स्थापित करता है कि केवल कार्यस्थल पर नहीं, बल्कि ड्यूटी के लिए यात्रा करते समय भी कर्मचारी की सुरक्षा और मुआवज़े का अधिकार बना रहेगा। इससे न केवल नियोक्ताओं में ज़िम्मेदारी की भावना बढ़ेगी, बल्कि कर्मचारियों में भी विश्वास और सुरक्षा की भावना पैदा होगी।