IndianLawNotes.com

“ऑनलाइन मनी-गेम्स कानून पर पहली बड़ी चुनौती: A23 ने दी सुप्रीम कानूनी टक्कर”

ऑनलाइन मनी-गेम्स बैन को टक्कर: A23 ने संवैधानिक चुनौती दायर की

प्रस्तावना

डिजिटल युग में ऑनलाइन गेमिंग तेजी से फैला है और ‘मनी-गेम्स’ अर्थात् वास्तविक पैसे के दांव वाले गेम्स ने एक बड़ी इंडस्ट्री का रूप ले लिया है। लेकिन सरकार और नीति-निर्माताओं ने इन गेम्स के सामाजिक जोखिमों, जुआ, लत, पैसों की हानि तथा मनी-लॉन्ड्रिंग और अपराध-प्रवणता के संदर्भों में चिंता व्यक्त की है। ऐसे में केंद्र सरकार ने हाल ही में एक कड़े कानून के माध्यम से ऑनलाइन मनी-गेम्स को लगभग पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया है। इस नए कानून के खिलाफ सबसे पहला संवैधानिक मुकदमा दर्ज किया गया है, जिसमें प्रमुख गेमिंग प्लेटफॉर्म A23 ने इस प्रतिबंध को संविधान के कई अधिकारों के प्रतिकूल बताया है।
यह लेख उस चुनौती के केंद्र-बिंदुओं, इसके कानूनी व संवैधानिक आयामों, सामाजिक-आर्थिक प्रभावों एवं संभावित परिणामों का विश्लेषण करेगा।


पृष्ठभूमि

भारत में ऑनलाइन गेमिंग तेजी से बढ़ी। विशेष रूप से रमी, पोकर, रियल-मनी फैंटेसी स्पोर्ट्स आदि की लोकप्रियता ने एक नया व्यवसाय मॉडल विकसित किया। लेकिन सरकार ने इन गेम्स को ‘खेल’ से अधिक ‘जुआ’ के दायरे में आने वाला माना।
अगस्त 2025 में संसद ने Promotion and Regulation of Online Gaming Act, 2025 (जिसे आगे “ऑनलाइन गेमिंग अधिनियम” कहा जाएगा) पारित किया, जिसमें ऑनलाइन पैसे-दांव वाले गेम्स — चाहे कौशल-आधारित हों या मौका-आधारित — बैन कर दिए गए।
इस कानून के तहत गेमिंग प्लेटफॉर्म्स को रीयल-मनी गेमिंग का संचालन करने से रोका गया, बैंकिंग और फाइनेंशियल माध्यमों द्वारा ऐसी सेवाओं को सपोर्ट करने पर पाबंदी लगाई गई, विज्ञापन पर बैन लगाया गया।
इस कानून के लागू होते ही बड़ी-बड़ी गेमिंग कंपनियों ने अपनी मनी-गेमिंग गतिविधि तत्काल बंद कर दी।

ऐसे माहौल में A23 ने केरल या कर्नाटक हाई कोर्ट में इस कानून की संवैधानिक वैधता पर चुनौती दायर की है।


कानून की प्रमुख विशेषताएँ

इस अधिनियम में निम्न-मुख्य प्रावधान हैं:

  • ऑनलाइन मनी-गेम को परिभाषित किया गया है: कोई भी गेम, चाहे कौशल-आधारित हो या मौका-आधारित, जिसमें उपयोगकर्ता पैसे/दांव लगाते हों और जीतने पर पैसे या अन्य लाभ प्राप्त हों।
  • ऐसे गेम्स का संचालन, सार्वजनिक रूप से पेश करना, विज्ञापन करना, वित्त-लेन-देन सुविधा देना – सभी निषिद्ध।
  • उल्लंघन पर कड़ी सज़ाएँ निर्धारित की गईं – जैसे ३ वर्ष की जेल तक, भारी जुर्माने।
  • केंद्र सरकार को एक नियामक प्राधिकरण स्थापित करने का उपक्रम।
    यह कानून ग्लोबल स्तर पर तेजी से ब्रह्मांड बना रही गेमिंग-इंडस्ट्री के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करता है।

A23 की चुनौती: तर्क एवं आधार

A23 ने अपनी याचिका में निम्न-प्रमुख तर्क उठाये हैं:

  1. व्यापार का अधिकार (Article 19(1)(g)) का उल्लंघन
    A23 का तर्क है कि गेमिंग प्लेटफॉर्म्स द्वारा मनी-गेम्स संचालित करना एक व्यवसाय है, तथा इस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने से इस मौलिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है।
    उन्होंने कहा है कि सरकार को यदि प्रतिबंध लगाना है तो ‘विनियमन’ करना चाहिए – पूर्ण निषेध नहीं।
  2. भेदभाव एवं समानता का उल्लंघन (Article 14)
    A23 ने कहा है कि अधिनियम ने ‘कौशल-आधारित गेम्स’ (जैसे रमी/पोकर) और ‘मौका-आधारित गेम्स’ के बीच भेद नहीं किया। जबकि न्यायालयों ने पूर्व में कौशल-आधारित गेम्स को व्यवसाय के रूप में स्वीकार किया है। अतः समानता के सिद्धांत का उल्लंघन हुआ है।
  3. केंद्र‐राज्य विधायी क्षेत्र का विवाद
    गेमिंग पर पारंपरिक रूप से राज्य का प्रभुत्व रहा है। A23 तर्क देता है कि केंद्र सरकार ने इस क्षेत्र में हस्तक्षेप किया है, जबकि संवैधानिक रूप से राज्य की सूची में यह विषय आ सकता है।
  4. अनुपात-प्रमाण (Proportionality) का उल्लंघन
    A23 यह दावा करता है कि हानि-रोकने हेतु ‘पूर्ण बैन’ अत्यधिक है, जबकि कम भयंकर उपाय उपलब्ध थे – उदाहरणस्वरूप, केवाईसी, समय-सीमाएँ, जमा-सीमाएँ। इसलिए यह उपाय सबंधित संवैधानिक मानदंडों से गुजारा नहीं उतरता।
  5. पेशेवर कानूनी सुरक्षा एवं वैधानिक प्रक्रिया
    अधिनियम में त्वरित पाबंदियाँ व कड़ी सज़ाएँ हैं, जिनसे व्यवसाय को अचानक बंद होना संभव है; A23 ने यह दावा किया है कि उचित पूर्व सुनवाई एवं हस्तक्षेप प्रक्रिया सुनिश्चित नहीं की गई।

सरकार व प्रतिपक्ष का पक्ष

केंद्रीय सरकार का पक्ष निम्न है:

  • ऑनलाइन मनी-गेम्स के माध्यम से जुआ, लत, बच्‍चों की पहुँच, मनी-लॉन्ड्रिंग एवं अन्य वित्त-अपराधों के जोखिम है। इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर नियम आवश्यक हो गया था।
  • गेमिंग सेक्टर में तब तक अभिसूचित (regulated) व्यवस्था नहीं थी; विभिन्न राज्यों में नियम काफी असंगत थे। इसलिए एक समग्र विधान आवश्यक था।
  • केंद्र ने यह तर्क भी दिया कि सूचना-प्रौद्योगिकी, डिजिटल माध्यम एवं इंटरस्टेट/ओवरसीज़ प्लेटफॉर्म के कारण यह विषय केवल राज्य के नियंत्रण में नहीं रहा।

संवैधानिक प्रश्नों का विश्लेषण

इस विवाद में कई संवैधानिक एवं विधायी विषय जुड़े हैं:

  1. धारा 19(1)(g) – व्यवसाय की स्वतंत्रता
    व्यवसाय या वाणिज्य का अधिकार भारत संविधान में अग्रसारित है; परंतु यह ‘अनियंत्रित’ नहीं है। राज्य अथवा केंद्र इस अधिकार को ‘वाजिब प्रतिबंध’ लगा सकते हैं यदि सार्वजनिक हित, नीति या सामाजिक उद्देश्य हो।
    इस मामले में प्रश्न है कि क्या ‘पूर्ण निषेध’ (blanket ban) उस वाजिब प्रतिबंध के दायरे में आता है या अत्यधिक है।
  2. धारा 14 – समानता का अधिकार
    यदि कानून समान परिस्थिति में भेद करता है – जैसे कौशल-आधारित गेम्स को निषिद्ध करना जबकि ऑफलाइन गेम्स को अनुमति देना – तो यह धारा 14 का उल्लंघन हो सकता है।
  3. केंद्र-राज्य सम्बन्ध एवं विधायी सूची
    संविधान की सातवीं अनुसूची (Seventh Schedule) के अंतर्गत यह देखा जाना है कि गेमिंग / जुआ किस सूची (Union, State या Concurrent) में आता है। पारंपरिक रूप से जुआ-शर्त राज्य सूची में रहा है। यदि केंद्र ने हस्तक्षेप किया है, तो विधायी क्षमता (legislative competence) पर सवाल खड़ा होता है।
  4. वाजिब प्रतिबंध व अनुपात-सिद्धांत (Proportionality)
    संवैधानिक समीक्षा में यह देखा जाता है कि प्रतिबंध का उद्देश्य वैध है, तरीका उचित है, और प्रभाव-प्रभावित (over-inclusive) नहीं है। यदि विधि अत्यधिक या निरुपाय (under-inclusive/over-inclusive) है, तो वह असंवैधानिक हो सकती है।

वर्तमान कानूनी स्थिति एवं बहस

  • A23 ने Karnataka High Court में आवेदन किया है, जहाँ उसने अधिनियम की धारा-2(1)(g), धारा 5-7 व धारा 9 को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की है।
  • हाई कोर्ट ने फिलहाल इस अधिनियम पर स्थायी रोक नहीं लगाई है — मध्यवर्ती सुनवाई में स्थगन (stay) नहीं दिया गया।
  • इस मामले में उद्योग-संस्था, निवेशक, उपयोगकर्ता एवं राज्य-स्तर की नीति-निर्माता तीनों हल्ला में बने हुए हैं।

सामाजिक-आर्थिक प्रभाव

  • इस बैन के कारण हजारों लोगों की नौकरियाँ खतरे में आ गयी हैं, निवेश रुका है, और गेमिंग इंडस्ट्री अचानक बदल रही है।
  • उपयोगकर्ता बिना घरेलू वैध विकल्प के अब अनियमित/ऑफशोर प्लेटफॉर्म पर जाने के लिए प्रेरित हो सकते हैं, जिससे सुरक्षा, उपभोक्ता अधिकार, टैक्सेशन और डेटा-प्रोटेक्शन जैसे जोखिम बढ़ेंगे।
  • दूसरी ओर सामाजिक दृष्टिकोण से यह बैन बच्चों/किशोरों में लत एवं जुआ-खतरे को कम करने का एक उपाय माना गया है।

संभावित परिणामी स्वरूप

  • यदि हाई कोर्ट या अंततः Supreme Court of India इस कानून को आंशिक या पूर्ण रूप से असंवैधानिक घोषित करता है तो गेमिंग-इंडस्ट्री को पुनरुत्थान की राह मिल सकती है;
  • वहीं यदि कानून बरकरार रहता है, तो उद्योग को नये व्यवसाय मॉडल (उदाहरणस्वरूप फ्री-टू-प्ले, विज्ञापन-आधारित) अपनाने होंगे;
  • इस फैसले से केंद्र-राज्य संबंधों में गेमिंग-विषय पर नियंत्रण का स्वरूप भी बदल सकता है।

निष्कर्ष

यह मामला सिर्फ गेमिंग-कम्पनी का मुकदमा नहीं है, बल्कि यह डिजिटल-युग के व्यवसाय, व्यक्तियों के मौलिक अधिकार, संघ-राज्य शक्तियों, सामाजिक-हित तथा उपभोक्ता-सुरक्षा के बीच संतुलन की लड़ाई है। A23 की चुनौती यह बताती है कि एक तेजी से विकसित हो रही इंडस्ट्री को अचानक निषेध के दायरे में लाना संवैधानिक प्रश्न खड़ा करता है।
समाज-नीति-कानून के इस चौराहे पर यह देखा जाना है कि क्या सरकार का दृष्टिकोण “पूर्ण प्रतिबंध” को जायज़ ठहराता है या न्याय-संगत विनियमन मॉडल बेहतर विकल्प है। इस बहस का परिणाम भविष्य में ऑनलाइन गेमिंग, डिजिटल व्यवसाय और नियामक दृष्टिकोण को गहराई से प्रभावित करेगा।