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“ऑनलाइन गेमिंग कानून पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख — केंद्र सरकार से मांगा विस्तृत जवाब”

“भारत में ऑनलाइन गेमिंग पर केंद्र की जवाबदेही — Supreme Court of India ने Promotion and Regulation of Online Gaming Act, 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र सरकार को व्यापक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया”

प्रस्तावना

हाल ही में भारत में ऑनलाइन गेमिंग उद्योग एक नए मुकाम पर खड़ा पाया गया है — जहाँ एक ओर इसे उच्च वृद्धि के अवसर के रूप में देखा जा रहा था, वहीं दूसरी ओर इसे सामाजिक, आर्थिक और विधि-संबंधी खतरों का भी स्रोत माना जाने लगा है। इसी पृष्ठभूमि में, संसद ने Promotion and Regulation of Online Gaming Act, 2025 (आगे “ओनलाइन गेमिंग एक्ट” या केवल “एक्ट” कहेंगे) पारित किया। इस अधिनियम को चुनौती देने वाली अनेक याचिकाएँ विभिन्न उच्च न्यायालयों में दायर थीं। अब इन याचिकाओं को एकीकृत करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को “विस्तृत जवाब” (comprehensive reply) देने का निर्देश दिया है। इस लेख में हम इस घटना-विकास, अधिनियम का महत्व, पक्षों के तर्क, न्यायिक दृष्टिकोण, चुनौतियाँ एवं आगे का मार्ग विस्तार से देखेंगे।


अधिनियम का पृष्ठभूमि एवं प्रमुख प्रावधान

  1. पृष्ठभूमि
    भारत में ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफार्म — विशेष रूप से “रियल-मनी गेम्स” (प्रतिदान या दांव में खेले जाने वाले गेम्स), फैंटेसी स्पोर्ट्स, ई-स्पोर्ट्स मंच — पिछले कई वर्षों में तेज़ी से विकसित हुए। इन प्लेटफार्मों पर बड़े पैमाने पर लेन-देने, विज्ञापन, और उपयोगकर्ताओं का आकर्षण देखा गया। लेकिन साथ ही चिंताएँ उठीं कि कुछ प्लेटफार्म अनियंत्रित तरीके से दांव-बाजी, सट्टेबाजी, अप्रवासी लेन-देने, बच्चों और युवाओं की भागीदारी जैसी समस्याओं को जन्म दे रहे हैं।

    इस सन्दर्भ में केंद्र सरकार ने ऑनलाइन गेमिंग उद्योग को नियंत्रित करने तथा उपयोगकर्ता-हितों की रक्षा करने हेतु 2025 में इस अधिनियम को लाया।

  2. प्रमुख प्रावधान
    अधिनियम के अंतर्गत निम्नलिखित बातें प्रमुख हैं:

    • “ऑनलाइन मनी गेम्स” को निषिद्ध करना एवं बैंकीय सेवाएँ तथा विज्ञापन संबंधी प्रतिबंध लगाना।
    • विभिन्न राज्यों में पहले से विद्यमान गेमिंग, सट्टा या सट्टेबाजी संबंधी कानूनों के अनुरूप इस अधिनियम का समन्वय सुनिश्चित करना।
    • प्लेटफार्मों को उपयोगकर्ता डेटा-सुरक्षा, ग्राइवेन्स रैड्रेसल मैकेनिज़्म आदि सुनिश्चित करने का दायित्व देना। (अधिनियम में आगे नियम-प्रावधान की रूपरेखा है)
    • राज्य-केंद्र संबंध एवं न्यायिक नियंत्रण की दृष्टि से एकाधिकारित मामला उत्पन्न न हो, इसलिए विभिन्न याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने का निर्णय लिया गया।

सुप्रीम कोर्ट में विकास: याचिकाएँ तथा निर्देश

  1. याचिकाओं का स्वरूप
    कई प्रमुख ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों, फैंटेसी स्पोर्ट्स ऑपरेटरों तथा व्यक्तिगत गेमर्स ने अधिनियम की वैधता को चुनौती दी है। उदाहरण के लिए, Head Digital Works Private Limited व अन्य द्वारा दायर याचिका में यह कहा गया कि उनके व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित हो चुके हैं।

    एक अन्य याचिका में एक शतरंज खिलाड़ी ने बताया कि ऑनलाइन प्रतियोगिताओं में उसकी आय स्रोत बना हुआ था, जो अब प्रभावित हुआ है।

    इसके अलावा, मानवीय एवं सामाजिक दृष्टिकोण से एक पीआईएल (PIL) भी दायर है — Centre for Accountability and Systemic Change (CASC) द्वारा — जिसमें कहा गया है कि अनेक ऐप एस-स्पोर्ट्स/सोशल गेम्स के नाम पर सट्टेबाजी का काम कर रहे हैं और बच्चों-युवाओं की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं हो रही।

  2. सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
    • 4 नवम्बर 2025 को, एक बेंच जिसमें न्यायाधीश J. B. Pardiwala व K. V. Viswanathan शामिल थे, ने केंद्र सरकार को मुख्य याचिकाओं पर “विस्तृत जवाब” दाखिल करने के लिए कहा।
    • कोर्ट ने कहा कि जवाब दाखिल होने के बाद याचिकाकर्ताओं को पहले से जोड़ी गई प्रति (copy) मिल जाए तथा यदि वे किसी प्रतिक्रिया (rejoinder) देना चाहें, तो जल्द करें।
    • अगली सुनवाई की तारीख 26 नवम्बर 2025 तय की गई।
    • याचिकाओं को विभिन्न उच्च न्यायालयों (दिल्ली, कर्नाटक, मध्य प्रदेश हाई-कोर्ट) से ट्रांसफर किया गया है ताकि एकसमान निर्णय हो सके।
  3. अदालती टिप्पणी एवं दिशानिर्देश
    सुनवाई के समय न्याय्मिक टिप्पणी इस प्रकार रही:

    • जस्टिस श्री पर्दीवाला ने टिप्पणी की:

      “भारत एक अजीब देश है — आप एक खिलाड़ी हैं, आपका यही माध्यम उपार्जन का स्रोत है और इसलिए आप प्रक्रिया में शामिल होना चाह रहे हैं. क्या यह बेटिंग या सट्टा नहीं है?”

    • कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यदि कोई खेल प्रत्यक्ष आयोजन (टीournament) में भाग ले रहा है, तो वह इस अधिनियम के दायरे से बाहर हो सकता है।

पक्षों के तर्क

  1. याचिकाकर्ताओं का तर्क
    • अधिनियम में “खेल कौशल-आधारित” (skill-based) और “सट्टा-आधारित” (chance-based) गेम्स के बीच स्पष्ट अंतर नहीं बनाया गया है; इस कारण अधिनियम व्यावसायिक प्लेटफार्मों तथा उन खिलाड़ियों पर भी व्यापक प्रतिबंध लगा रहा है जो कानूनी रूप से सक्रिय थे।
    • उद्योग का तर्क है कि अधिनियम की सामान्य निषिद्धता (blanket ban) से रोजगार अवसर प्रभावित हुए हैं, नवोन्मेष ठप हुआ है, निवेश बाहर गया है।
    • खिलाड़ियों का कहना है कि ऑनलाइन माध्यम उनके पेशे या आजीविका का स्रोत बन गया था — अब उसकी नींव हिल गई है। उदाहरण के लिए, शतरंज खिलाड़ी द्वारा पेश की गई याचिका।
    • तकनीकी मंचों का तर्क है कि अधिनियम राज्य-स्तर के नियमों के साथ मेल नहीं खाता, जिससे संघ-राज्य संविदान अस्त-व्यस्त हो सकता है।
  2. केंद्र सरकार / अधिस्थापन पक्ष का तर्क
    • सरकार का दावा है कि अधिनियम का उद्देश्य ऑनलाइन गेमिंग के माध्यम से हो रही अनियंत्रित सट्टेबाजी, मनी लॉन्ड्रिंग, बच्चों-युवाओं की भागीदारी एवं सामाजिक जोखिमों को नियंत्रित करना है।
    • यह अधिनियम प्राथमिकतः “मनी गेम्स” पर लागू होता है — यानी वह गेम जिसमें पैसे का दांव या पुरस्कार लग रहा हो। सरकार का कहना है कि खेल-प्रतियोगिताएं (tournaments) प्रतिभागी शुल्क व पुरस्कार के नियमों में वैध हो सकती हैं, इसलिए इनसे अधिनियम प्रभावित नहीं।
    • सरकार ने विभिन्न उच्च न्यायालयों में अलग-अलग याचिकाओं के चलते असंगत फैसलों से बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट को मामलों का समेकन कराने का अनुरोध किया था।

संवैधानिक और विधि-संबंधित प्रश्न

  1. व्यावसायिक आजीविका का अधिकार (Article 19(1)(g))
    याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि अधिनियम उन खिलाड़ियों एवं प्लेटफार्मों को निष्क्रिय कर रहा है जिनका व्यवसाय या आजीविका ऑनलाइन गेमिंग आधारित थी — जो संघीय संविधान के आर्टिकल 19(1)(g) के तहत “किसी पेशे, व्यवसाय वा व्यापार को करने का अधिकार” है।

    सरकार द्वारा यह तर्क दिया जा रहा है कि इस अधिकार पर प्रतिबंध तभी संवैधानिक होगा जब वह ‘निष्पादन (reasonable)’, ‘निकट-मार्ग (proportional)’ एवं ‘उद्देश्य-उन्मुख (objectives)’ हो। सहायक न्यायनिर्णय एवं विनियमन-मानदंड इसके निर्धारण में महत्वपूर्ण होंगे।

  2. कौशल बनाम सट्टा (Skill vs. Chance) विभाजन
    भारतीय न्यायव्यवस्था में यह प्रश्न लंबे समय से चर्चा में रहा है कि एक खेल कौशल-आधारित है या यह सट्टा-आधारित है। यदि खेल में सट्टेबाजी का प्रमुख तत्व है, तो उस पर प्रतिबंध लग सकता है; लेकिन यदि मुख्य रूप से कौशल-विधान स्वीकार्य है, तो प्रतिबंध लगाना संवैधानिक रूप से विवादित हो सकता है। इस अधिनियम में इस विभाजन की स्पष्ट व्यवस्था नहीं पाई गई है, इसलिए याचिकाकर्ता इसे संवैधानिक प्रश्न के रूप में उठा रहे हैं।
  3. संघ-राज्य विभाजन तथा समन्वय
    राज्यों के पास पहले से ही गेमिंग, सट्टा-जीविका, अन्य संबंधित विधियाँ हैं (उदाहरण के लिए, राज्य गेम्स एक्ट, सट्टेबाजी अधिनियम)। इस मामले में यह देखने की जरूरत है कि संघीय अधिनियम किस हद तक राज्यों की शक्तियों को प्रभावित करता है; अधिनियम एवं विभिन्न राज्यों के कानूनों का समन्वय कैसे होगा—यह एक संवैधानिक दृष्टिकोण बड़ा प्रश्न है।
  4. निषिद्धता की सीमा एवं अनुपातिकता (Prohibition & Proportionality)
    अधिनियम द्वारा लगाई गई प्रतिबंधात्मक व्यवस्था (जैसे: बैंकिंग सेवाओं, विज्ञापनों, लेन-देने का निषेध) का अनुपातिक होना आवश्यक है। यदि प्रतिबंध अत्यधिक हो जाए और सामान्य व्यवसाय को निष्प्रभावी कर दे, तो उसे संवैधानिक रूप से चुनौती मिलने की संभावना है।
  5. आर्थिक प्रभाव एवं उद्योग-निवेश
    इस अधिनियम के परिणामस्वरूप उद्योग पर होने वाला असर — नौकरियों में कटौती, निवेश में संकोच, नवोन्मेष का क्षय — इन आर्थिक एवं नीति-प्रासंगिक सवालों को न्याय-मंच पर ले जा सकता है।

संभावित प्रभाव एवं चुनौतियाँ

  1. उद्योग एवं रोजगार पर प्रभाव
    अधिनियम के लागू होते ही ऑनलाइन मनी-गेमिंग प्लेटफार्मों में गतिविधि ठप हो गई है, व्यवसायी एवं प्लेटफार्म ऑपरेटर्स के लिए चिंता का विषय बन गया है। याचिकाकर्ताओं ने बताया है कि “हमारा व्यवसाय एक माह से बंद है”।

    इससे अप्रत्यक्ष रूप से गेमर्स, प्रतियोगी-खिलाड़ी, वितरक, प्लेटफार्म-कर्मचारी एवं संबंधित सप्लाई-शृंखला प्रभावित हो गई है।

  2. उपभोक्ता-सुरक्षा एवं सामाजिक दृष्टिकोण
    अधिनियम की एक मंशा ‘उपभोक्ता-सुरक्षा’, ‘मनी-लॉन्ड्रिंग’, ‘सट्टेबाजी’ की रोक, बच्चों-युवाओं की रक्षा की है। ऑनलाइन प्लेटफार्मों पर जिन्हें नियंत्रित करना मुश्किल रहा है — विज्ञापन-दोष, गुमनाम लेन-देने, ट्रांसफर-रिस्क आदि — ये विषय अब न्याय-मंच पर आए हैं।
  3. नवोन्मेष एवं वैश्विक प्रतिस्पर्धा
    भारत में गेमिंग उद्योग को “उभरता क्षेत्र” माना जा रहा था। लेकिन यदि निषिद्धता या अत्यधिक प्रतिबंधात्मक नियम बने, तो निवेश बाहर जा सकता है, नवोन्मेष धीमा हो सकता है। प्लेटफार्मों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा के लिए नियम-स्थान मिलना जरूरी है।
  4. निष्पादन एवं अन्वयन चुनौतियाँ
    अधिनियम लागू करने में अनेक तकनीकी, कार्मिक, नियामक चुनौतियाँ होंगी — जैसे ऐप्स, प्लेटफार्मों की सूची बनाना, बैंकिंग लेन-देने को ट्रैक करना, विज्ञापन-प्रवृत्तियों को नियंत्रित करना। इसके लिए सक्षम इंफ्रास्ट्रक्चर व नियामक तंत्र आवश्यक होगा।
  5. याचिकात्मक प्रक्रिया एवं न्यायिक प्रवाह
    सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्देश दिए जाने से यह मामला जल्दी सुनवाई की दिशा में गया है। लेकिन यथार्थ में अदालत में लंबित समय, जवाब दाखिल करना, फिर जवाब-प्रतिक्रिया, तर्क-सुनवाई, निर्णय — इन सब में समय लगेगा। इन प्रक्रियाओं के बीच उद्योग एवं खिलाड़ियों पर असमय प्रभाव पड़ सकता है।

आगे की दिशा एवं संभावित परिदृश्य

  1. सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई एवं निर्णय-प्रवाह
    26 नवम्बर 2025 को अगली सुनवाई निर्धारित है। इस सुनवाई में केंद्र द्वारा जवाब दाखिल किया जाना है, और याचिकाकर्ताओं को प्रतिक्रिया (rejoinder) देने का अवसर मिलेगा। इसके बाद, विस्तृत तर्क-वितर्क, उद्योग-प्रभाव, संवैधानिक दलीलें, कानूनी विश्लेषण सामने आएंगे।

    सुप्रीम कोर्ट का निर्णय कई मायनों में महत्वपूर्ण होगा — चाहे वह अधिनियम को संवैधानिक घोषित करे, या कुछ प्रावधानों को अमान्य ठहराए, या राज्य-केंद्र समन्वय के लिए दिशा-निर्देश दिए जाएँ।

  2. राज्योँ के समन्वय एवं राज्य-कानूनों का समुचित असर
    यदि राज्यों में पहले से गेमिंग-सट्टेबाजी संबंधी कानून मौजूद हैं, तो उन्हें इस केंद्रीय अधिनियम के अनुरूप समायोजित करना होगा। राज्यों के पक्ष में यह दलील हो सकती है कि उनके क्षेत्रों में स्थानीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विशिष्ट नियम बने थे। केंद्र-राज्य समन्वय, उपयुक्त प्रवर्तन तंत्र और विवादों का समुचित समाधान जरूरी होगा।
  3. उद्योग नीति-निर्माण एवं नवोन्मेष को बढ़ावा
    यदि सुप्रीम कोर्ट ने अधिनियम को कुछ सीमाओं के भीतर स्थिर कर दिया, तो सरकार एवं नियामक निकायों को गेमिंग उद्योग को सुरक्षित, पारदर्शी एवं नवोन्मेष-अनुकूल बनाने के लिए नीति-निर्माण करना होगा। नियामक लाइसेंसिंग, डेटा-सुरक्षा, प्रमाणीकरण, उपयोगकर्ता-सुरक्षा निर्देश व निगरानी तंत्र स्थापित करना जरूरी होगा।
  4. उपभोक्ता-सुरक्षा व समावेशी दृष्टिकोण
    गेमर्स, विशेष रूप से युवा एवं छोटे खिलाड़ी, जिनकी आजीविका या सहभागिता प्लेटफार्मों पर रही है, उनकी स्थिति पर नीति-निर्माताओं एवं न्यायालय को संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाना होगा। अधिनियम के क्रियान्वयन में यह ध्यान देना आवश्यक है कि समुदाय-वर्गों को अनुचित रूप से वंचित न किया जाए।
  5. नियामक उपायों का प्रभाव-मापन
    अधिनियम लागू होने के बाद उसका प्रभाव-मापन महत्वपूर्ण होगा — जैसे कितने प्लेटफार्म बंद हुए, कितने नए निवेश रुके, उपयोगकर्ताओं की प्रतिक्रिया क्या रही, सट्टेबाजी प्लेटफार्मों का प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रभाव क्या रहा? इन आंकड़ों व विश्लेषणों के आधार पर भविष्य में सुधार-निर्देश दिए जा सकते हैं।

निष्कर्ष

सारांश में, ऑनलाइन गेमिंग उद्योग संबंधित अध्यादेश-विधि-नीति का एक जटिल एवं बहुआयामी क्षेत्र सामने है। केंद्रीय अधिनियम — Promotion and Regulation of Online Gaming Act, 2025 — ने इसे नियंत्रित करने का प्रयास किया है, लेकिन याचिकाकर्ताओं, उद्योग एवं न्यायालय द्वारा उठाए गए संवैधानिक, आर्थिक, विनियामक प्रश्न इसे विवादित भी बना रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र सरकार से “विस्तृत जवाब” मंगवाना इस बात का संकेत है कि न्यायालय इस मामले को गंभीरता से देख रहा है और जल्द-से-जल्द स्पष्ट निर्देश देना चाहता है।

उद्योग, नियामक, नीति-निर्माता एवं खिलाड़ी अब इस सुनवाई के परिणाम पर नमुना लगाए बैठे हैं। इस निर्णय का प्रभाव केवल विधि-क्षेत्र तक सीमित नहीं रहेगा — यह रोजगार, निवेश, नवोन्मेष, उपभोक्ता-सुरक्षा तथा डिजिटल अर्थव्यवस्था के दृष्टि से भी निर्णायक होगा।

फिर भी, यह महत्वपूर्ण है कि इस प्रक्रिया में संतुलन बना रहे — जहाँ अनियंत्रित सट्टेबाजी, मनी-लॉन्ड्रिंग, युवाओं पर विपरीत प्रभाव जैसी समस्याओं को रोका जाए, वहीं खेल-कौशल-आधारित प्लेटफार्मों, खिलाड़ियों और नवोन्मेष को भी उचित अवसर मिले। न्यायालय और नीति-निर्माता दोनों-ही इस संतुलन को ध्यान में रखें, तभी इस क्षेत्र में संतुलित विकास संभव होगा।