एर्नेस्ट मनी दंड नहीं, प्रदर्शन की सुरक्षा है: सुप्रीम कोर्ट की धारा 22(2) विशिष्ट राहत अधिनियम पर महत्वपूर्ण व्याख्या

शीर्षक: एर्नेस्ट मनी दंड नहीं, प्रदर्शन की सुरक्षा है: सुप्रीम कोर्ट की धारा 22(2) विशिष्ट राहत अधिनियम पर महत्वपूर्ण व्याख्या

भूमिका:
संपत्ति या अनुबंधों से संबंधित विवादों में “Earnest Money” (प्रारंभिक धनराशि) का कानूनी स्वरूप कई बार विवाद का विषय बनता रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने दिनांक 02 मई 2025 को एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि Earnest Money को दंड (Penalty) नहीं माना जा सकता, बल्कि यह प्रदर्शन की सुरक्षा (Security for Performance) है। साथ ही, न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि Specific Relief Act, 1963 की धारा 22(2) के अंतर्गत, जब तक इस धनराशि की स्पष्ट रूप से मांग नहीं की जाती, तब तक इसकी वापसी का आदेश नहीं दिया जा सकता।

मामले की पृष्ठभूमि:
इस निर्णय से जुड़े प्रकरण में वादी ने एक संपत्ति खरीदने के लिए विक्रेता को एर्नेस्ट मनी के रूप में एक निश्चित राशि अग्रिम रूप से दी थी। बाद में अनुबंध में कुछ अड़चनें आईं, और वादी ने विशेष निष्पादन (Specific Performance) की मांग करते हुए न्यायालय में याचिका दायर की। यद्यपि वादी ने मुकदमे में विशेष निष्पादन की मांग की थी, लेकिन Earnest Money की वापसी के लिए स्पष्ट रूप से कोई मांग नहीं की गई थी।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि –

“Earnest Money is not a penalty imposed upon the defaulting party but a form of security that ensures that the party will perform its part of the contract. Unless it is specifically claimed in the suit under Section 22(2) of the Specific Relief Act, the Court cannot grant its refund.”

अर्थात्, जब तक वादी विशिष्ट रूप से इस राशि की वापसी की मांग नहीं करता, तब तक न्यायालय इसे स्वतः लौटाने का आदेश नहीं दे सकता, भले ही अन्य राहतें जैसे कि विशेष निष्पादन दी जा रही हों।

धारा 22(2) विशिष्ट राहत अधिनियम का अवलोकन:
धारा 22(2) यह प्रावधान करती है कि यदि वादी विशेष निष्पादन की मांग करता है, तो उसे उसी मुकदमे में अन्य संबंधित राहतों – जैसे पुनः कब्जा, क्षतिपूर्ति, या धन की वापसी – की स्पष्ट रूप से मांग करनी होगी। यदि ऐसी मांग नहीं की जाती, तो न्यायालय स्वतः इन राहतों को नहीं दे सकता।

न्यायालय की दृष्टि में Earnest Money का स्वरूप:
न्यायालय ने यह भी दोहराया कि Earnest Money का उद्देश्य पक्षकारों के बीच अनुबंधीय दायित्वों की गारंटी देना है। यह कोई जुर्माना नहीं है, जिसे पक्ष विशेष पर जबरन थोप दिया गया हो, बल्कि एक वैधानिक जमानत है कि वह अनुबंध का पालन करेगा। अगर ऐसा नहीं होता और अनुबंध विफल हो जाता है, तो इस राशि की वापसी तभी संभव है जब वादी इसकी स्पष्ट रूप से मांग करे।

इस निर्णय का प्रभाव और महत्व:
यह निर्णय विशेष रूप से उन मुकदमों के लिए मार्गदर्शक है जहाँ संपत्ति लेन-देन या अनुबंधीय उल्लंघन के मामले सामने आते हैं। यह वादकारियों, अधिवक्ताओं और न्यायाधीशों को स्पष्ट करता है कि वाद पत्र में राहत की हर मांग को स्पष्टता से अंकित किया जाना अनिवार्य है। यह न्यायिक अनुशासन और प्रक्रियात्मक स्पष्टता को भी बढ़ावा देता है।

निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारतीय अनुबंध कानून और विशिष्ट राहत अधिनियम की व्याख्या में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह न केवल Earnest Money की प्रकृति को स्पष्ट करता है, बल्कि यह भी बताता है कि कानूनी प्रक्रियाओं में प्रत्येक मांग को सुस्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करना कितना आवश्यक है। यह निर्णय आने वाले वर्षों में न्यायिक निर्णयों के लिए एक प्रामाणिक मार्गदर्शक सिद्ध होगा।

यह निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि न्यायिक प्रक्रिया में न केवल निष्पक्षता, बल्कि स्पष्टता और प्रक्रियात्मक ईमानदारी भी बनी रहे।