IndianLawNotes.com

एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ : पर्यावरण संरक्षण और न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय

एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ : पर्यावरण संरक्षण और न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय

प्रस्तावना

भारतीय न्यायपालिका ने समय-समय पर पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विशेष रूप से एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ (M.C. Mehta v. Union of India) मामलों ने देश में पर्यावरणीय न्यायशास्त्र (Environmental Jurisprudence) की मजबूत नींव रखी। सुप्रीम कोर्ट ने इन मामलों में गंगा नदी प्रदूषण, ताजमहल पर वायु प्रदूषण, औद्योगिक अपशिष्ट और वाहन प्रदूषण जैसे विषयों पर कड़े निर्देश दिए। इन निर्णयों ने न केवल भारत में पर्यावरण संबंधी कानूनों को नई दिशा दी बल्कि “जनहित याचिका (PIL)” को भी पर्यावरणीय अधिकारों की रक्षा हेतु सबसे प्रभावी हथियार बना दिया।


एम.सी. मेहता कौन थे?

एम.सी. मेहता एक प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और अधिवक्ता हैं जिन्होंने भारत में पर्यावरणीय अधिकारों की रक्षा हेतु अनेक जनहित याचिकाएँ दायर कीं। वे मानते थे कि स्वच्छ वायु, स्वच्छ जल और प्रदूषण-मुक्त पर्यावरण प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के अंतर्गत संरक्षित है।


गंगा नदी प्रदूषण मामला (M.C. Mehta v. Union of India, 1988)

गंगा नदी भारत की जीवन रेखा कही जाती है, लेकिन औद्योगिक इकाइयों और सीवेज के कारण यह अत्यधिक प्रदूषित हो गई थी। एम.सी. मेहता ने इस समस्या को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।

न्यायालय के निर्देश

  1. गंगा किनारे स्थित टेनरी (चमड़ा उद्योग) और अन्य फैक्ट्रियों को प्रदूषण नियंत्रण उपकरण लगाने का आदेश।
  2. जो उद्योग प्रदूषण नियंत्रण मानकों का पालन नहीं करेंगे, उन्हें बंद कर दिया जाएगा।
  3. नगरपालिकाओं और राज्य सरकार को गंदे नालों के शोधन हेतु सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) स्थापित करने का निर्देश।
  4. अदालत ने कहा कि स्वच्छ जल और स्वच्छ पर्यावरण अनुच्छेद 21 का अभिन्न हिस्सा है।

इस फैसले ने भारत में जल प्रदूषण रोकने की दिशा में ठोस कदम उठाने की नींव रखी।


ताजमहल प्रदूषण मामला (Taj Trapezium Case, 1996-97)

विश्व धरोहर ताजमहल वायु प्रदूषण की चपेट में आ गया था। “ताज ट्रैपेजियम जोन (TTZ)” नामक क्षेत्र में स्थित 292 उद्योगों से निकलने वाला धुआँ और गैसें संगमरमर की सतह को पीला और क्षतिग्रस्त कर रही थीं।

न्यायालय के निर्देश

  1. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ताजमहल की सुरक्षा केवल आगरा की ही नहीं बल्कि पूरे देश और विश्व की जिम्मेदारी है।
  2. TTZ क्षेत्र के उद्योगों को या तो प्राकृतिक गैस (CNG/LPG) का प्रयोग करने या फिर उन्हें बंद करने का आदेश।
  3. प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को वैकल्पिक स्थल पर स्थानांतरित करने का निर्देश।
  4. प्रदूषण नियंत्रण हेतु वाहनों पर भी सख्ती की गई और अनफिट वाहनों को हटाने का आदेश दिया गया।

इस निर्णय से वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए सख्त मानक बने और ताजमहल की सुरक्षा सुनिश्चित हुई।


औद्योगिक अपशिष्ट और वाहन प्रदूषण मामले

एम.सी. मेहता ने केवल गंगा और ताजमहल के लिए ही नहीं, बल्कि अन्य कई पर्यावरणीय समस्याओं पर भी याचिकाएँ दायर कीं।

1. औद्योगिक अपशिष्ट मामला

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि औद्योगिक इकाइयों को “पोल्यूशन कंट्रोल डिवाइस” लगाना अनिवार्य है।
  • जो उद्योग पर्यावरण कानूनों का पालन नहीं करते, उन्हें बंद करने या भारी जुर्माना लगाने का आदेश।
  • “प्रदूषक भुगतान सिद्धांत (Polluter Pays Principle)” को लागू किया गया, जिसके अनुसार प्रदूषण करने वाला ही उसकी सफाई और क्षतिपूर्ति का जिम्मेदार होगा।

2. वाहन प्रदूषण मामला

  • सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण पर गंभीर चिंता व्यक्त की।
  • आदेश दिया गया कि सार्वजनिक परिवहन को धीरे-धीरे CNG पर स्थानांतरित किया जाए।
  • पेट्रोल में लेड (Lead) के प्रयोग को बंद करने और अनफिट वाहनों को हटाने के निर्देश दिए।

न्यायिक सिद्धांत और योगदान

एम.सी. मेहता मामलों से भारतीय न्यायपालिका ने कई नए पर्यावरणीय सिद्धांतों को मान्यता दी—

  1. पोल्यूशन पेज़ प्रिंसिपल (Polluter Pays Principle) – प्रदूषण फैलाने वाला व्यक्ति/उद्योग ही क्षति की भरपाई करेगा।
  2. सस्टेनेबल डेवलपमेंट (Sustainable Development) – विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखना।
  3. पब्लिक ट्रस्ट डॉक्ट्रिन (Public Trust Doctrine) – प्राकृतिक संसाधन जनता की धरोहर हैं और राज्य को उनकी सुरक्षा करनी होगी।
  4. अनुच्छेद 21 का विस्तार – स्वच्छ वायु, जल और प्रदूषण-मुक्त वातावरण को जीवन के अधिकार का हिस्सा घोषित करना।

महत्व और प्रभाव

  1. इन मामलों के बाद भारत में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 और अन्य कानूनों का कड़ा अनुपालन हुआ।
  2. नगरपालिकाओं और राज्य सरकारों को सीवेज व औद्योगिक अपशिष्ट प्रबंधन पर अधिक ध्यान देना पड़ा।
  3. प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को वैकल्पिक ऊर्जा और तकनीक अपनाने को मजबूर होना पड़ा।
  4. जनहित याचिका को पर्यावरण न्याय का सशक्त माध्यम माना गया।
  5. इन फैसलों ने भारत में ग्रीन ज्यूडिशियरी (Green Judiciary) की अवधारणा को मजबूत किया।

निष्कर्ष

एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ के मामलों ने भारतीय पर्यावरणीय न्यायशास्त्र को नई दिशा दी। गंगा प्रदूषण, ताजमहल प्रदूषण और औद्योगिक अपशिष्ट से संबंधित फैसलों ने स्पष्ट कर दिया कि आर्थिक विकास कभी भी पर्यावरण के विनाश की कीमत पर स्वीकार्य नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण केवल सरकार का ही नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है (अनुच्छेद 51A(g) के अंतर्गत)।

इन निर्णयों ने भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को यह संदेश दिया कि “स्वच्छ पर्यावरण ही स्वस्थ जीवन की कुंजी है।”



सारांश बिंदुवार (Revision Points)

  • गंगा प्रदूषण मामला (1988)
    • गंगा किनारे की टेनरी और उद्योगों को प्रदूषण नियंत्रण उपकरण लगाने का आदेश।
    • सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) लगाने का निर्देश।
    • स्वच्छ जल को अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) का हिस्सा माना।
  • ताजमहल प्रदूषण मामला (1996-97, TTZ केस)
    • ताजमहल की सुरक्षा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जिम्मेदारी मानी गई।
    • उद्योगों को गैस आधारित ईंधन अपनाने या स्थानांतरण का आदेश।
    • वाहनों पर सख्ती और प्रदूषण कम करने के उपाय।
  • औद्योगिक अपशिष्ट और वाहन प्रदूषण
    • प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को बंद करने या जुर्माना लगाने का आदेश।
    • “Polluter Pays Principle” लागू किया गया।
    • दिल्ली में CNG आधारित सार्वजनिक परिवहन अनिवार्य किया गया।
  • मुख्य न्यायिक सिद्धांत
    1. Polluter Pays Principle – प्रदूषण करने वाला ही क्षति की भरपाई करेगा।
    2. Sustainable Development – विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन।
    3. Public Trust Doctrine – प्राकृतिक संसाधन जनता की धरोहर।
    4. अनुच्छेद 21 का विस्तार – स्वच्छ वायु और जल जीवन के अधिकार का हिस्सा।
  • महत्व
    • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 का प्रभावी अनुपालन।
    • उद्योगों और नगरपालिकाओं पर कड़ा नियंत्रण।
    • जनहित याचिका को पर्यावरण संरक्षण का प्रभावी साधन माना गया।
    • भारत में ग्रीन ज्यूडिशियरी की नींव मजबूत हुई।

महत्वपूर्ण पर्यावरणीय एवं सामाजिक न्याय से जुड़े केस – बिंदुवार सारांश

1. ओलेम गैस लीक केस (Oleum Gas Leak Case, 1985 – M.C. Mehta v. Union of India)

  • पृष्ठभूमि: दिल्ली स्थित श्रीराम फूड एंड फर्टिलाइज़र फैक्ट्री से ओलेम गैस रिसाव हुआ।
  • निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि औद्योगिक गतिविधियों में शामिल कंपनियों की पूर्ण जिम्मेदारी (Absolute Liability) होगी, चाहे दुर्घटना लापरवाही से हो या न हो।
  • मुख्य सिद्धांत:
    • Absolute Liability Doctrine (पूर्ण दायित्व का सिद्धांत)।
    • “प्रदूषक भुगतान सिद्धांत” (Polluter Pays Principle) की नींव।
  • महत्व: यह मामला भारत में औद्योगिक दुर्घटनाओं के लिए कठोर जिम्मेदारी तय करने वाला पहला बड़ा निर्णय था।

2. विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (Vishaka v. State of Rajasthan, 1997)

  • पृष्ठभूमि: राजस्थान में भंवरी देवी के साथ कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की घटना।
  • निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा हेतु विशाखा दिशा-निर्देश (Vishaka Guidelines) बनाए।
  • मुख्य सिद्धांत:
    • अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत सम्मानपूर्वक काम करने का अधिकार
    • अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन (CEDAW) का उपयोग।
  • महत्व: महिलाओं की सुरक्षा हेतु बाद में यौन उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम, 2013 बनाया गया।

3. सुभाष कुमार बनाम बिहार राज्य (1991)

  • निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्वच्छ जल और प्रदूषण-मुक्त वातावरण का अधिकार अनुच्छेद 21 का अभिन्न हिस्सा है।
  • मुख्य सिद्धांत:
    • जीवन के अधिकार में स्वच्छ पर्यावरण शामिल।
  • महत्व: पर्यावरणीय अधिकारों को मौलिक अधिकारों से जोड़ा गया।

4. वेल्लोर सिटीजन्स वेलफेयर फोरम बनाम भारत संघ (1996)

  • पृष्ठभूमि: तमिलनाडु में टेनरी उद्योग से पर्यावरण प्रदूषण।
  • निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने सस्टेनेबल डेवलपमेंट (Sustainable Development) और प्रिकॉशनरी प्रिंसिपल (Precautionary Principle) को भारतीय कानून का हिस्सा माना।
  • महत्व: पर्यावरण संरक्षण और विकास में संतुलन की अवधारणा स्थापित हुई।

5. टी.एन. गॉदावरमन बनाम भारत संघ (1995 से जारी)

  • पृष्ठभूमि: देशभर में वनों की अंधाधुंध कटाई।
  • निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने वनों की परिभाषा को व्यापक रूप में लिया और उनकी सुरक्षा हेतु कई आदेश दिए।
  • महत्व: इस केस ने भारत में ग्रीन जजमेंट्स की सबसे लंबी श्रृंखला उत्पन्न की।

6. इंडियन काउंसिल फॉर एनवायरनमेंट-लीगल एक्शन बनाम भारत संघ (1996)

  • निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रदूषक कंपनियों को प्रदूषण से हुई क्षति की पूरी भरपाई करनी होगी।
  • मुख्य सिद्धांत: Polluter Pays Principle का कड़ा अनुपालन।

संक्षिप्त सारांश – मुख्य न्यायिक सिद्धांत

  • Absolute Liability (पूर्ण दायित्व) – ओलेम गैस लीक केस।
  • Right to Clean Environment – सुभाष कुमार केस।
  • Polluter Pays Principle – इंडियन काउंसिल केस।
  • Sustainable Development – वेल्लोर सिटीजन्स केस।
  • Workplace Safety for Women – विशाखा केस।
  • Forest Protection & Green Judgments – गॉदावरमन केस।