“एन.आई. एक्ट की धारा 138 के तहत आरोपी को अपना बचाव करने का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट ने हस्ताक्षर जांच हेतु बैंक रिकॉर्ड की तुलना को दी मंजूरी”

“एन.आई. एक्ट की धारा 138 के तहत आरोपी को अपना बचाव करने का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट ने हस्ताक्षर जांच हेतु बैंक रिकॉर्ड की तुलना को दी मंजूरी”


भूमिका:
भारतीय विधि प्रणाली में Negotiable Instruments Act, 1881 (एन.आई. एक्ट) की धारा 138 के तहत चेक बाउंस मामलों में आरोपियों के लिए एक प्रमुख बचाव यह होता है कि उन्होंने संबंधित चेक पर हस्ताक्षर ही नहीं किए थे, और यह हस्ताक्षर नकली (forged) है। ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि अदालतें आरोपी को बैंक में जमा उसके नमूना हस्ताक्षर (specimen signature) की प्रमाणित प्रति प्राप्त करने और चेक पर किए गए हस्ताक्षर से उसकी तुलना करने की अनुमति दे सकती हैं

यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता, तकनीकी साक्ष्य के उपयोग और आरोपी के निष्पक्ष बचाव के अधिकार को सशक्त करता है।


मामले की पृष्ठभूमि:
धारा 138 एन.आई. एक्ट के अंतर्गत किसी व्यक्ति के खिलाफ अभियोजन तब शुरू होता है जब आरोप हो कि उसने जानबूझकर भुगतान से इनकार किया हो। अभियुक्त ने दावा किया कि चेक पर किया गया हस्ताक्षर उसका नहीं है, और चेक या तो चोरी हुआ या किसी तरह धोखे से प्रस्तुत किया गया।

ऐसे में प्रश्न यह था कि क्या आरोपी को यह अधिकार दिया जा सकता है कि वह अपने बैंक खाते में पहले से उपलब्ध प्रमाणित हस्ताक्षर नमूना प्राप्त करके, उसकी तुलना चेक पर किए गए हस्ताक्षर से करवा सके।


सुप्रीम कोर्ट की मुख्य टिप्पणियाँ और विश्लेषण:

  1. साक्ष्य अधिनियम की धारा 73 का प्रयोग:
    अदालतों को अधिकार है कि वे हस्ताक्षर की तुलना कर सकें – चाहे वह न्यायाधीश स्वयं करें, या हस्ताक्षर विशेषज्ञ की सहायता से। यदि आरोपी का दावा यह है कि हस्ताक्षर नकली है, तो यह न्याय का तकाज़ा है कि उसे तुलना का अवसर मिले।
  2. धारा 391 और 482 CrPC का प्रयोग:
    • धारा 391 CrPC: अपीलीय न्यायालय अतिरिक्त साक्ष्य स्वीकार कर सकता है यदि वह न्याय की मांग हो।
    • धारा 482 CrPC: उच्च न्यायालय को अंतर्निहित शक्तियां प्राप्त हैं, जिससे वह न्याय की रक्षा के लिए आवश्यक आदेश दे सकता है।
  3. धारा 118 और 138 एन.आई. एक्ट – प्रतिकूल धारणा (Presumption):
    एन.आई. एक्ट चेक धारक के पक्ष में यह मानता है कि चेक वैध है, और ऋण या देनदारी के लिए जारी किया गया था। लेकिन यह प्रत्यावर्तनीय (rebuttable) धारणा है, जिसे आरोपी साक्ष्य प्रस्तुत कर चुनौती दे सकता है – जैसे कि हस्ताक्षर में विसंगति
  4. प्रमाणित हस्ताक्षर की प्रति – वैध रक्षा उपकरण:
    सुप्रीम कोर्ट ने माना कि बैंक से प्रमाणित सैंपल हस्ताक्षर प्राप्त करना एक वैध प्रक्रिया है, और अदालत उस प्रमाण का उपयोग आरोपी की वास्तविक हस्ताक्षर से तुलना हेतु कर सकती है।

अदालत का निष्कर्ष:

जब कोई आरोपी धारा 138 के अंतर्गत लगाए गए आरोपों के विरुद्ध यह कहता है कि चेक पर हस्ताक्षर उसके नहीं हैं, तो उसे यह अधिकार होना चाहिए कि वह अपने बैंक खाते से प्रमाणित हस्ताक्षर प्राप्त कर उसकी तुलना कर सके। यह प्रक्रिया न्यायपूर्ण बचाव के लिए आवश्यक है।


न्यायिक दृष्टिकोण और महत्व:
यह निर्णय स्पष्ट करता है कि भारतीय न्याय व्यवस्था अभियुक्त को निष्पक्ष सुनवाई और तकनीकी बचाव के सभी औजार प्रदान करती है। साथ ही, यह स्पष्ट करता है कि:

  • न्याय केवल अभियोजन को लाभ नहीं पहुंचाता, बल्कि आरोपी के अधिकारों की भी रक्षा करता है।
  • तकनीकी प्रमाण (जैसे हस्ताक्षर की तुलना) न्यायिक निर्णय को अधिक सटीक और पारदर्शी बनाते हैं।

निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय Negotiable Instruments Act की व्याख्या को और व्यापक बनाता है। यह स्पष्ट संदेश देता है कि न्यायालय निष्पक्षता को सर्वोपरि रखते हुए आरोपी को हर वैध तरीका अपनाने की अनुमति देगा, जिससे वह अपने ऊपर लगे गंभीर आरोपों का युक्तियुक्त बचाव कर सके।

यह निर्णय चेक बाउंस मामलों में आरोपी और अदालतों दोनों के लिए एक नई न्यायिक दिशा प्रदान करता है।