एनडीपीएस अधिनियम के अंतर्गत दर्ज एफआईआर में अंतरिम जमानत: बीमार पिता की देखभाल हेतु एकमात्र पुत्र को अंतरिम राहत – पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का मानवीय निर्णय

शीर्षक: एनडीपीएस अधिनियम के अंतर्गत दर्ज एफआईआर में अंतरिम जमानत: बीमार पिता की देखभाल हेतु एकमात्र पुत्र को अंतरिम राहत – पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का मानवीय निर्णय


परिचय:

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय (Punjab & Haryana High Court) ने Ninder Singh Baba v. State of Punjab [CRM-M-16246-2025] मामले में एक महत्वपूर्ण और मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए अंतरिम जमानत (interim bail) प्रदान की। याचिकाकर्ता के विरुद्ध धारा 22 एनडीपीएस अधिनियम (NDPS Act) के अंतर्गत प्राथमिकी (FIR) दर्ज की गई थी। याचिकाकर्ता ने धारा 439 दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत अंतरिम जमानत की याचिका दाखिल की थी, जिसका आधार था कि उसके पिता फेफड़ों की बीमारी और अन्य गंभीर रोगों से पीड़ित हैं, और परिवार में उनके उपचार और देखभाल हेतु कोई अन्य उपलब्ध नहीं है।


मामले की पृष्ठभूमि:

  • याचिकाकर्ता निंदर सिंह बाबा के विरुद्ध NDPS Act की धारा 22 के अंतर्गत मादक पदार्थ रखने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
  • याचिकाकर्ता ने अदालत से अंतरिम जमानत की मांग करते हुए यह दलील दी कि उसके पिता गंभीर फेफड़ों की बीमारी सहित अन्य बीमारियों से पीड़ित हैं, और उनकी देखरेख करने वाला कोई दूसरा व्यक्ति परिवार में नहीं है।
  • याचिकाकर्ता परिवार का एकमात्र पुत्र है, जो चिकित्सा व्यवस्था कराने और अस्पताल ले जाने जैसे दायित्वों के लिए आवश्यक है।

कानूनी मुद्दा:

मुद्दा यह था कि क्या एक अभियुक्त को, जिस पर एनडीपीएस जैसे गंभीर कानून के तहत आरोप हैं, मानवीय आधारों पर अंतरिम जमानत दी जा सकती है, विशेष रूप से जब यह देखभाल और पारिवारिक जिम्मेदारियों से जुड़ा हो?


अदालत का निर्णय:

  1. मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए, न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता केवल इस आधार पर अंतरिम राहत का पात्र है कि उसके बीमार पिता की चिकित्सा व्यवस्था हेतु उसकी उपस्थिति आवश्यक है।
  2. धारा 439 CrPC के तहत प्रस्तुत याचिका को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने अंतरिम जमानत प्रदान की ताकि वह अपने पिता के इलाज की व्यवस्था कर सके।
  3. न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि जमानत का उद्देश्य केवल अभियुक्त को स्वतंत्र करना नहीं होता, बल्कि वह व्यक्तिगत परिस्थितियों और मानवाधिकारों के सन्तुलन को भी ध्यान में रखता है।
  4. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अंतरिम जमानत की अवधि सीमित रहेगी, और याचिकाकर्ता को अदालत द्वारा निर्धारित शर्तों का पालन करना होगा।

निर्णय का महत्व:

  • यह निर्णय दर्शाता है कि भारतीय न्यायालय मानवीय संवेदनाओं और पारिवारिक दायित्वों को भी कानूनी प्रक्रिया में महत्व देते हैं
  • NDPS Act जैसे कठोर कानूनों के मामलों में भी न्यायालय परिस्थिति अनुसार विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग कर सकते हैं, बशर्ते कि यह न्याय के उद्देश्य के विरुद्ध न हो।
  • यह आदेश यह भी स्पष्ट करता है कि न्याय केवल दंडात्मक नहीं, बल्कि सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण भी अपनाता है जब किसी अभियुक्त के परिवार की गरिमा और स्वास्थ्य संकट सामने होता है।

निष्कर्ष:

“Ninder Singh Baba v. State of Punjab” निर्णय एक महत्वपूर्ण उदाहरण है जहाँ उच्च न्यायालय ने कठोर कानूनों की अनुप्रयोग प्रक्रिया में मानवीय दृष्टिकोण का संतुलन बनाया। ऐसे मामलों में अदालत का कर्तव्य केवल कानून का अनुपालन करना नहीं, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक ज़िम्मेदारियों को भी समझना होता है। इस निर्णय ने यह स्थापित किया कि न्यायिक विवेक और संवेदनशीलता का संयोजन न्याय के सच्चे अर्थों की पुष्टि करता है।